जागरण संपादकीय: नया कालखंड, नए साल से नई उम्मीदें
2025 की विदाई के साथ ही देश उस नए कालखंड में प्रवेश कर रहा है, जब विकसित भारत का लक्ष्य और निकट आ गया है। यह लक्ष्य वास्तव में प्राप्त हो सके, इसके लिए मानसिकता में बदलाव लाना भी आवश्यक है। ऐसा करके ही हम अपनी कार्यसंस्कृति बदल सकेंगे और आने वाले कल की चुनौतियों से पार पा पाएंगे। हम सब मिलकर ऐसा कर सकें, इस आशा के साथ नव वर्ष की शुभकामनाएं।
HighLights
नए साल में चुनौतियों का सामना कर प्रगति करें।
विकसित भारत हेतु कार्यसंस्कृति व नागरिक धर्म आवश्यक।
आत्मनिर्भरता के लिए जन सहयोग और मानसिकता बदलाव जरूरी।
नव वर्ष का आगमन अनेक अपेक्षाओं के साथ होता है। इस अवसर पर सभी शुभ की कामना करते हैं। हम भारत के लोग तो उस संस्कृति के वारिस हैं, जो प्राणिमात्र के कल्याण की बात करती है और समस्त वसुधा को एक कुटुंब की तरह देखती है, लेकिन सर्वत्र शुभ का संचार होने की चाह के बीच यह भी एक यथार्थ है कि व्यक्ति की तरह समाज और राष्ट्र के जीवन में चुनौतियां आती ही रहती हैं। वे इस वर्ष भी आएंगी।
इससे अच्छा और कुछ नहीं कि इस नए वर्ष में हम उनका सही तरह सामना करने में समर्थ हों और तेजी के साथ प्रगति के उस पथ पर आगे बढ़ें, जिसमें सुख, समृद्धि के साथ समरसता भी बढ़े। यह तब संभव होगा, जब एक राष्ट्र के रूप में हमारी कार्यसंस्कृति बदलेगी और उन बुनियादी समस्याओं का समाधान होगा, जो प्रगति की राह में रोड़ा हैं।
वैसे तो किसी भी देश की कार्यसंस्कृति बदलने का दायित्व मुख्यतः शासन और प्रशासन में बैठे लोगों का होता है, लेकिन इस काम में जनता का सहयोग भी आवश्यक होता है। विश्व के कई देशों का इतिहास इसकी ही गवाही देता है कि उनका भाग्योदय तब हुआ, जब वहां के शासकों के साथ आम लोगों ने भी अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए समर्पण भाव से काम किया।
अब भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र है। विशाल आबादी और भिन्न पंथ, भाषा वाले देश की प्रगति के लिए शासन-प्रशासन के साथ आम जनता का रुख-रवैया बदले बगैर बात बनने वाली नहीं है। यह समझा जाए कि जैसे शासक का धर्म होता है, वैसे ही नागरिक का भी। विभिन्न समस्याओं को लेकर शासन-प्रशासन के लोगों को उचित ही कठघरे में खड़ा किया जाता है, लेकिन यह प्रश्न प्रायः अनुत्तरित रहता है कि क्या हम भारत के लोग अपने नागरिक धर्म का निर्वाह सही तरह करते हैं?
हमें अपने अधिकारों के प्रति सजग होना ही चाहिए, लेकिन क्या हम अपने कर्तव्यों को लेकर भी सचेत रहते हैं? यदि हमारी अनेक समस्याओं का समाधान शासन-प्रशासन की ढिलाई के चलते नहीं हो पाता तो कई समस्याएं इसलिए जटिल बनी रहती हैं कि लोगों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता। यदि जन सहयोग का यह अभाव दूर हो सके तो इस नए वर्ष में आत्मनिर्भर भारत की राह और आसान हो सकती है और यह किसी से छिपा नहीं कि आत्मनिर्भरता विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को पाने की कुंजी है।
2025 की विदाई के साथ ही देश उस नए कालखंड में प्रवेश कर रहा है, जब विकसित भारत का लक्ष्य और निकट आ गया है। यह लक्ष्य वास्तव में प्राप्त हो सके, इसके लिए मानसिकता में बदलाव लाना भी आवश्यक है। ऐसा करके ही हम अपनी कार्यसंस्कृति बदल सकेंगे और आने वाले कल की चुनौतियों से पार पा पाएंगे। हम सब मिलकर ऐसा कर सकें, इस आशा के साथ नव वर्ष की शुभकामनाएं।













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