विचार: सामने आनी चाहिए नेहरू की चिट्ठियां, प्रधानमंत्री म्यूजियम भी कर चुका है मांग
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्रों पर राष्ट्र या नेहरू-गांधी परिवार के अधिकार को लेकर बहस तेज हो गई है। प्रधानमंत्री संग्रहालय ने राहुल गांधी से इन पत्रों को लौटाने की मांग की है, जो कथित तौर पर 2008 में सोनिया गांधी को दिए गए थे। ये पत्र समकालीन राजनीति और नेहरू के निजी जीवन के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। इनकी सार्वजनिक उपलब्धता से नेहरू पर सार्थक बहस हो सकेगी।
HighLights
नेहरू के निजी पत्रों के स्वामित्व पर बहस तेज।
प्रधानमंत्री संग्रहालय ने राहुल गांधी से पत्र लौटाने को कहा।
ये पत्र नेहरू के जीवन और राजनीति के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।
पीयूष पांडे। देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्रों और दस्तावेजों पर किसका अधिकार है? राष्ट्र का या नेहरू-गांधी परिवार का? यह बहस एक बार फिर गरमा गई है। हाल में जब भाजपा सांसद संबित पात्रा ने संसद में कहा कि नेहरू से जुड़े कागज प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय से गायब हैं तो केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि देश के पहले प्रधानमंत्री से संबंधित कोई दस्तावेज प्रधानमंत्री संग्रहालय से लापता नहीं है।
केंद्रीय मंत्री ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि नेहरू जी के ‘पत्र लापता नहीं हैं’ कहने का अर्थ है कि वे सोनिया गांधी के पास हैं, क्योंकि लापता वह चीज होती है, जिसके विषय में कुछ पता ही नहीं हो। सवाल यह है कि क्या सरकार ने इन पत्रों पर राजनीति की या नेहरू-गांधी परिवार इन खतों को देश के सामने नहीं आने देना चाहता? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या नेहरू-गांधी परिवार के पास मौजूद पत्र अब अस्तित्व में हैं या नहीं?
इसमें कोई शक नहीं है कि जवाहरलाल नेहरू की चिट्ठियां समकालीन राजनीति और समाज का जीवंत दस्तावेज हैं। उनके पत्र आज भी जीवंत हैं, क्योंकि वे भारत की आधुनिक चुनौतियों जैसे सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद, भारत की वैश्विक भूमिका और सामाजिक न्याय के सवाल को संबोधित करते हैं। इसके अलावा इन चिट्ठियों में उनके निजी जीवन की झलक भी है। उनमें से अधिकांश वर्षों तक प्रधानमंत्री संग्रहालय में रखे हुए थे, लेकिन मनमोहन सरकार में अचानक इन चिट्ठियों की मौजदूगी का पता बदल गया।
इस साल अप्रैल में प्रधानमंत्री म्यूजियम की तरफ से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को एक खत लिखा गया। उसमें कहा गया कि राहुल गांधी के परिवार के पास जवाहरलाल नेहरू से जुड़े जो दस्तावेज हैं, वे वापस कर दिए जाएं। प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी सोसायटी के सदस्य रिजवान कादरी ने दावा किया था कि 2008 में यूपीए कार्यकाल में 51 बक्सों में भरकर नेहरू के निजी खत सोनिया गांधी के पास पहुंचाए गए थे।
उनका दावा है कि उन्होंने सितंबर 2024 में भी सोनिया गांधी को खत लौटाने के लिए पत्र लिखा था, लेकिन उनसे कोई जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने राहुल गांधी को पत्र लिखा। रिजवान कादरी ने जिन 51 बक्सों की बात की थी, उनमें नेहरू के वे पत्र रखे हुए हैं, जो उन्होंने एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम और गोविंद बल्लभ पंत जैसी कई नामी शख्सियतों को लिखे थे।
हालांकि ऐसा नहीं है कि इन पत्रों को सार्वजनिक करने की मांग पहली बार की गई है। 2014 में भी ऐसी मांग उठी थी। उस वक्त यूनिवर्सिटी आफ नार्थ कोलंबिया के इतिहासकार सुसान डेनबे ने नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय से 1947 के बाद के नेहरू के पत्र देखने की इच्छा जताई थी, लेकिन उन्हें मंजूरी नहीं मिल पाई। इन खतों को लेकर नेहरू-गांधी परिवार के करीबी ये तर्क देते हैं कि प्रधानमंत्री संग्रहालय ने ऐसे खत परिवार को तोहफे में दे दिए थे और तोहफा वापस कैसे लिया जा सकता है, लेकिन क्या देश के पहले प्रधानमंत्री का पत्र व्यवहार परिवार की जागीर हो सकता है?
अच्छी बात यह है कि अब यह बहस गर्म हो रही है और इस बारे में नेहरू-गांधी परिवार को जवाब देना होगा। नेहरू के कई खत हंगामा मचा सकते हैं। ऐसे कई किस्से हैं, जो इन पत्रों के सनसनीखेज होने का इशारा करते हैं। उदाहरण के लिए जयप्रकाश नारायण को एक बार अपने घर की सफाई में कुछ खत मिले थे, जो उन्होंने इंदिरा गांधी को लौटा दिए थे। एक खत में कमला नेहरू प्रभावती (जेपी की पत्नी) को लिखती हैं-‘तुम भाग्यशाली हो कि तुमसे वह (जेपी) बराबरी से बात करते हैं...।’
एक अन्य खत में कमला नेहरू लिखती हैं-मैंने एक हाउस वाइफ की तरह 35 साल बिताकर बहुत बड़ी गलती की। अगर यह समय मैं भगवान को खोजने में लगाती तो शायद वे भी मिल जाते। जेपी नेहरू को भाई कहते थे। उन्हें लगा कि ऐसे खत बेवजह हंगामा मचा सकते हैं। लिहाजा साथियों के फोटोकॉपी कराने की मांग को भी अनसुना कर दिया। नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच का पत्राचार भी कई शोधार्थी देखना चाहते हैं।
एडविना की बेटी पामेला माउंटबेटन ने अपनी किताब ‘इंडिया रिमेम्बर्ड: ए पर्सनल अकाउंट आफ माउंटबेटंस ड्यूरिंग द ट्रांसफर आफ पावर’ में लिखा है कि नेहरू और एडविना ‘गहरे प्रेम’ में थे और एक-दूसरे का सम्मान करते थे, लेकिन सच यह भी है कि इस रिश्ते को लेकर आज भी अलग-अलग तरह की अटकलें हैं।
जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्रों में कई कहानियां बंद हैं, लेकिन अब वे सोनिया गांधी के घर की किसी तिजोरी में बंद हैं। आज के दौर में जब कई राजनीतिक बहस के केंद्र में जवाहरलाल नेहरू अपने आप आ खड़े होते हैं, तब उनके पत्रों के सार्वजनिक होने की जरूरत पहले से ज्यादा है। इन पत्रों को प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय का हिस्सा बनना चाहिए।
ध्यान रहे कि प्रियंका गांधी वाड्रा संसद में यह कहने से नहीं हिचकतीं कि भाजपा चाहे तो नेहरूजी पर संसद में बहस करा ले। ऐसी किसी बहस से पहले उन्हें नेहरू के खत सार्वजनिक करने चाहिए, ताकि उन पर कभी भी, कहीं भी होने वाली बहस सार्थक और सत्य की रोशनी में हो।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)













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