विचार: अटल जी का अनुकरणीय सांसद-धर्म
विपक्ष में रहते हुए भी सत्ता पक्ष के मन में स्थान कैसे बनाया जाता है, यह अटल जी के व्यक्तित्व से सीखना होगा। उनका सांसद-धर्म हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र ‘जीत’ से नहीं, बल्कि संस्थाओं की मर्यादा और संवाद की गुणवत्ता से मजबूत होता है। आज यदि राजनीति को ऊंचा उठाना है, तो सबसे पहले संसद को ‘शोर का अखाड़ा’ नहीं, बल्कि समाधान की पाठशाला बनाना होगा-और यही अटल जी से मिलने वाली सबसे प्रासंगिक सीख है।
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विपक्ष में रहकर भी सत्ता पक्ष के मन में स्थान
डॉ. ब्रजेश कुमार तिवारी। एक ऐसे समय में जब लगातार लोकतांत्रिक अवमूल्यन हो रहा है और सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच दरार बहुत गहरी हो चुकी है, तब अटल जी की जन्म शताब्दी में उनका स्मरण अत्यंत जरूरी हो जाता है। भारत के राजनीतिक इतिहास में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल राजनीतिज्ञ, संवेदनशील प्रशासक, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, भाषाविद्, कवि, पत्रकार, लेखक और बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्होंने यह साबित किया कि देश में गठबंधन सरकारों को भी सफलता से चलाया जा सकता है।
भारत जैसे विशाल और विविध देश में बदलाव ‘घोषणापत्र’ से नहीं, बल्कि उन फैसलों से आता है, जो शासन की प्राथमिकताओं को स्थायी रूप से बदल देते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी का सबसे बड़ा योगदान यही था कि उन्होंने विकास को ‘परियोजनाओं की सूची’ से निकालकर ‘राष्ट्रीय क्षमता’ के रूप में देखना सिखाया। उन्होंने ऐसे कई बड़े फैसले लिए, जिन्होंने भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। उनका परिवर्तनकारी दृष्टिकोण दूरसंचार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में परिलक्षित होता है।
प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाई। वाजपेयी की वाक्पटुता घरेलू मंच तक ही सीमित नहीं थी। 1977-79 के दौरान भारत के विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने 32वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना भाषण हिंदी में भी दिया। अटल जी ने अपने शासनकाल के दौरान कई ऐसी योजनाएं शुरू कीं, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली और जिनका लाभ आज भी हर भारतीय को मिल रहा है। उनके शासनकाल में प्राकृतिक आपदाओं और राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी 8.4 प्रतिशत से ऊपर बनी रही, मुद्रास्फीति चार प्रतिशत से नीचे रही और विदेशी मुद्रा भंडार भी संतोषजनक स्थिति में था। इस सुदृढ़ आर्थिक स्थिति का लाभ यूपीए-1 सरकार को मिला।
शिक्षा के क्षेत्र में वाजपेयी का योगदान सर्व शिक्षा अभियान के रूप में मील का पत्थर साबित हुआ, जो 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने वाली सामाजिक योजना है। 2000 में जहां लगभग 40 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ देते थे, वहीं 2005 तक यह संख्या घटकर लगभग 10 प्रतिशत रह गई। उन्होंने इस योजना को प्रचारित करने वाली थीम लाइन ‘स्कूल चले हम’ स्वयं लिखी थी। अटल जी को जनजातीय मामलों के मंत्रालय, उत्तर-पूर्व क्षेत्र विभाग और सामाजिक कल्याण मंत्रालय को सामाजिक न्याय मंत्रालय में परिवर्तित करने तथा नए विभागों के निर्माण का श्रेय भी दिया जाता है।
‘जय जवान-जय किसान और जय विज्ञान’ का नारा देने वाले अटल जी ने चंद्रयान-1 परियोजना को भी स्वीकृति दी। मई 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। उनकी ठोस उपलब्धियों में भारत की हाईवे-कल्पना का राष्ट्रीयकरण भी है। उन्होंने ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर को राजनीति की भाषा’ बना दिया। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना ने भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद की और यह एनडीए सरकार का एक गौरव बना।
सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्ग ही नहीं, बल्कि उनके दौर में यह समझ भी मजबूत हुई कि विकास तब तक अधूरा है, जब तक गांव बाजार, स्कूल और अस्पताल से नहीं जुड़ते। इसी सोच के तहत प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से गांवों को शहरों से जोड़ा गया। वाजपेयी का दृढ़ विश्वास था कि निर्माण और बुनियादी ढांचे की उन्नति आर्थिक विकास के अग्रदूत के रूप में कार्य करेगी। उनके नेतृत्व में तीन मार्च, 1999 को नई दूरसंचार नीति की घोषणा की गई, जिससे इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया और देश में सस्ते मोबाइल फोन का दौर शुरू हुआ।
उनके प्रमुख नीतिगत निर्णयों में 2003 का राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम भी शामिल है। उनकी सरकार ने औद्योगिक उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों, सूचना प्रौद्योगिकी और औद्योगिक पार्कों की स्थापना की और सही मायनों में मेक इन इंडिया की नींव रखी। वाजपेयी सरकार ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों की शुरुआत की, जिससे बैंकों को उनके गैर-निष्पादित ऋणों (एनपीए) से निपटने में मदद मिली। यह कदम क्रेडिट ब्यूरो की स्थापना की दिशा में भी पहला महत्वपूर्ण प्रयास था। इससे बैंकों के एनपीए में सुधार हुआ और उनकी बैलेंसशीट मजबूत हुई।
विपक्ष में रहते हुए भी सत्ता पक्ष के मन में स्थान कैसे बनाया जाता है, यह अटल जी के व्यक्तित्व से सीखना होगा। उनका सांसद-धर्म हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र ‘जीत’ से नहीं, बल्कि संस्थाओं की मर्यादा और संवाद की गुणवत्ता से मजबूत होता है। आज यदि राजनीति को ऊंचा उठाना है, तो सबसे पहले संसद को ‘शोर का अखाड़ा’ नहीं, बल्कि समाधान की पाठशाला बनाना होगा-और यही अटल जी से मिलने वाली सबसे प्रासंगिक सीख है।
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)





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