जागरण संपादकीय: अरावली की परिभाषा, विवाद को शांत करना जरूरी
अरावली क्षेत्र में चूना पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट के साथ-साथ लेड, जिंक, कापर और टंगस्टन जैसे खनिज भी हैं, इसलिए उन्हें पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना हासिल करने के भी जतन किए जाने चाहिए। अरावली को लेकर पर्यावरण और विकास में सटीक संतुलन बनाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
HighLights
अरावली की परिभाषा पर विवाद का समाधान जरूरी
पर्यावरण संरक्षण और विकास में संतुलन आवश्यक
अवैध खनन पर रोक और स्थायी समाधान की खोज
अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को लेकर हो रहे विवाद पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने यह तो स्पष्ट कर दिया कि अरावली क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित है और उसके सिर्फ 0.19 प्रतिशत इलाके में ही खनन होगा, लेकिन इसमें संदेह है कि इसके बाद विवाद शांत हो जाएगा। इसका कारण सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश की गई वह रिपोर्ट है, जो कहती है कि सौ मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली पर्वतमाला माना जाएगा। यदि इस परिभाषा को स्वीकृति मिली तो इसका मतलब होगा कि 99 मीटर ऊंची पहाड़ियां अरावली का हिस्सा नहीं रह जाएंगी। यदि ऐसा होता है तो आशंका है कि अरावली के बड़े क्षेत्र में खनन का रास्ता साफ हो सकता है।
उचित यह होगा कि इस आशंका को दूर किया जाए। इसके लिए यह स्पष्ट करना होगा कि क्या उक्त परिभाषा को मान्यता मिलने की स्थिति में भी अरावली के केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन होगा? कहना कठिन है कि ऐसा ही है या नहीं, लेकिन यह आवश्यक है कि अरावली क्षेत्र में एक तो सीमित खनन ही हो और दूसरे अवैध खनन को हर हाल में वास्तव में रोका जाए। यह एक तथ्य है कि तमाम रोक के बाद भी अरावली क्षेत्र में अवैध खनन होने की खबरें आती रहती हैं।
वन एवं पर्यावरण मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि एनसीआर क्षेत्र में खनन की अनुमति नहीं है और इसे लेकर कई लोगों ने भ्रम फैलाया है, लेकिन एनसीआर से इतर क्षेत्र में खनन के दायरे को लेकर भी तो स्पष्टता आवश्यक है। आम तौर पर अवैध खनन वहीं होता है, जहां वैध खनन की अनुमति होती है। अरावली पर्वतमाला विश्व की सबसे पुरानी पर्वत शृंखला मानी जाती है। यह मैदानी इलाकों को रेगिस्तानी रेत से बचाने के लिए एक अवरोधक की तरह काम करती है।
मान्यता है कि इस पर्वतमाला के चलते ही थार रेगिस्तान हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक नहीं फैल पाया। अरावली की थार रेगिस्तान और शेष क्षेत्र के बीच जलवायु को संतुलित करने और भूजल के प्रबंधन में भी अहम भूमिका है। चूंकि अरावली क्षेत्र कई नदियों का स्रोत है, इसलिए उसमें एक सीमा से अधिक खनन कदापि नहीं होना चाहिए।
इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अरावली के पहाड़ धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और इस तरह प्रदूषण कम करने में योगदान देते हैं। क्या यह किसी से छिपा है कि दिल्ली-एनसीआर के साथ-साथ उसके आसपास प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर होती जा रही है? चूंकि अरावली क्षेत्र में चूना पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट के साथ-साथ लेड, जिंक, कापर और टंगस्टन जैसे खनिज भी हैं, इसलिए उन्हें पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना हासिल करने के भी जतन किए जाने चाहिए। अरावली को लेकर पर्यावरण और विकास में सटीक संतुलन बनाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।













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