विचार: मनरेगा की जगह जरूरी था जी राम जी, परिवर्तन ही जीवन का नियम
जी राम जी कानून रोजगार गारंटी का विस्तार करके, वित्तीय अनुशासन को मजबूत करके, तेज भुगतान सुनिश्चित करके, काम को कृषि चक्रों के साथ जोड़कर और फोकस को अल्पकालिक राहत से टिकाऊ ग्रामीण विकास की ओर ले जाकर रोजगार और ग्रामीण विकास को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकल्प दिखाता है।
HighLights
जी राम जी कानून मनरेगा की जगह लेगा
125 दिन के रोजगार की गारंटी
टिकाऊ संपत्ति निर्माण पर जोर दिया गया
निरंजन कुमार/ गुंजन अग्रवाल। भारतीय दर्शन के अनुसार परिवर्तन ही एकमात्र स्थिरता है। प्रसिद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी का भी कथन है- ‘परिवर्तन ही जीवन का नियम है। जो केवल अतीत या वर्तमान की ओर देखते हैं, वे निश्चित रूप से भविष्य में चूक जाते हैं।’ तेजी से बदलती 21वीं सदी में ‘यंग इंडिया’ की जरूरतों, आकांक्षाओं और विकसित भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने ‘विकसित भारत: जी राम जी-2025’ (विकसित भारत गारंटी फार रोजगार एवं आजीविका मिशन, ग्रामीण) कानून बनाया है।
हर दीर्घकालीन नीति की 15-20 वर्षों में समीक्षा और मूल्यांकन की जरूरत होती है। इतने समय में परिवार, समाज और देश एक पूरी पीढ़ी का बदलाव देख लेता है। नई पीढ़ी कुछ नई जरूरतों एवं आकांक्षाओं के साथ आती है। वर्तमान भारतीय समाज ‘मिलेनियल्स’, ‘जेन जी’ और ‘जेन अल्फा’ सभी को साथ लेकर चल रहा है। हम गत 15 वर्षों में पेन-पेपर की दुनिया से निकल डिजिटल युग और एआइ में प्रवेश कर चुके हैं।
समय की जरूरत के अनुरूप पुरानी दीर्घकालीन योजनाओं को नए आधुनिक परिवेश में ढालना जरूरी होता है। इन्हीं कारणों से 2005 से प्रभावी ‘नरेगा’ (जिसे 2009 में ‘मनरेगा’ कहा गया) की जगह मोदी सरकार ने ‘वीबी: जी राम जी’ कानून का श्रीगणेश किया। स्वाधीनता के बाद से ही जरूरत के हिसाब से विभिन्न योजनाओं के स्वरूप में बदलाव किए जाते रहे हैं।
1960 के दशक में तत्कालीन सरकार ने ग्रामीण रोजगार योजनाओं की शुरुआत की और ‘ग्रामीण श्रमशक्ति कार्यक्रम’ लागू किए गए। समय की मांग के अनुरूप समय-समय पर विभिन्न सरकारें इनमें फेरबदल करती रहीं। परिणामस्वरूप देश में ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम’, ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम (जवाहर रोजगार योजना, 1993)’, ‘संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना’ और ‘रोजगार आश्वासन योजना’ इत्यादि लागू की गईं। 2005 में ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ (नरेगा) कार्यक्रम शुरू किया गया। 2009 में इसमें महात्मा गांधी का नाम जोड़कर ‘नरेगा’ से ‘मनरेगा’ कर दिया गया।
नए और तेजी से बदलते आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी परिदृश्य में मनरेगा एक प्रभावी योजना के तौर पर खरी साबित नहीं हो पा रही थी। साथ ही इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा था। इसके अतिरिक्त मनरेगा एक कल्याणकारी गरीबी उन्मूलन कानून के रूप में सीमित था, जबकि आज का ग्रामीण युवा ‘विकसित भारत-2047’ के सपनों को साकार करने के लिए संकल्पित है। इन्हीं सबको ध्यान में रखकर जी राम जी बिल लाया गया। जी राम जी कानून की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह कृषि चक्रों के साथ सही तालमेल और ज्यादा रोजगार की गारंटी देता है।
मनरेगा में जहां केवल 100 दिन की मजदूरी की गारंटी थी, वहीं जी राम जी में ग्रामीण परिवारों को 100 दिन के बजाय 125 दिन के रोजगार की गारंटी है। साथ ही श्रमिकों और किसानों के बीच समन्वय को ध्यान में रखते हुए फसल कटाई और बोओई के समय श्रमिकों को 60 दिनों की छुट्टी का प्रविधान है, ताकि उन्हें कृषि संबंधी रोजगार भी मिले। इससे कृषि में रोजगार को मिलाकर श्रमिक अब कुल 185 दिन रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
मनरेगा की आलोचना होती थी कि यह अल्पकालीन राहत या कम टिकाऊ संपत्ति बनाने तक सीमित है। बिना पूर्व तय मानकों के कार्यक्रमों से संसाधनों का दुरुपयोग बढ़ा। इससे अपेक्षित लाभ और ग्रामीण विकास नहीं हो पाया। मनरेगा में अब तक दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन बुनियादी ढांचा दिखाई नहीं देता। इस कमी को दुरुस्त करते हुए जी राम जी कानून में टिकाऊ संपत्ति निर्माण पर जोर दिया गया है, ताकि सतत विकास हो सके। अब चार स्पष्ट श्रेणियों- जल संरक्षण, आधारभूत संरचना, आजीविका और प्राकृतिक आपदा से जुड़े कार्य तय किए गए हैं। नए कानून में 40 के बजाय 50 प्रतिशत खर्च निर्माण सामग्री पर होगा। इनका निर्णय दिल्ली में बैठे लोग नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर एक ‘ग्राम समिति’ कार्यक्रम तय करेगी।
मनरेगा में मजदूरी भुगतान में देरी की बड़ी समस्या थी। इससे श्रमिक वर्ग परेशान रहता था। जी राम जी में मजदूरी भुगतान साप्ताहिक या पाक्षिक रूप से अनिवार्य होगा। फिर डिजिटल माध्यम से मजदूरी भुगतान का प्रविधान भ्रष्टाचार की संभावना को खत्म करेगा। कई मीडिया रिपोर्ट्स हैं कि मनरेगा में कुछ राज्यों में ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया गया। जी राम जी बायोमीट्रिक अटेंडेंस, संपत्ति की जियो-टैगिंग और रियल-टाइम डैशबोर्ड के उपयोग का प्रविधान करता है। इससे भ्रष्टाचार और फर्जी लाभार्थियों में निश्चित रूप से कमी आएगी।
इसके अलावा मनरेगा की तरह जी राम जी भी कानून श्रमिकों को समय पर काम नहीं मिलने पर उनके बेरोजगारी भत्ता प्रविधानों को जारी रखता है और अधिकार-आधारित हकदारी को प्रशासनिक दक्षता के साथ संतुलित करता है। मनरेगा की एक अन्य कमी थी, केंद्र और राज्यों का अपेक्षाकृत कम समन्वय और राज्यों में जवाबदेही का अभाव। नई योजना में पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत योगदान करेगी, केवल 10 प्रतिशत राज्य देंगे। बाकी राज्यों को केंद्र 60 प्रतिशत देगा। राजनीतिक-मनोवैज्ञानिक आकलन के अनुसार जब अपना पैसा लगता है तो कार्य की गुणवत्ता निश्चित बेहतर होती है।
विपक्षी दलों के विरोध में कहीं न कहीं यह भाव भी है कि नए कानून का नाम ‘राम’ पर क्यों रखा गया है। देश में नई योजनाओं-कार्यक्रमों के लिए नए नाम रखने की परंपरा रही है। जी राम जी नाम से गांधीजी की कहीं अवमानना नहीं होती, क्योंकि नया नाम तो स्वयं गांधीजी के आराध्यदेव प्रभु राम पर आधारित है। जी राम जी कानून रोजगार गारंटी का विस्तार करके, वित्तीय अनुशासन को मजबूत करके, तेज भुगतान सुनिश्चित करके, काम को कृषि चक्रों के साथ जोड़कर और फोकस को अल्पकालिक राहत से टिकाऊ ग्रामीण विकास की ओर ले जाकर रोजगार और ग्रामीण विकास को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकल्प दिखाता है।
(प्रो. कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में डीन प्लानिंग और डॉ. गुंजन लक्ष्मीबाई महाविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका हैं)













कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।