विचार: बड़े खतरे के सामने बांग्लादेशी हिंदू, भारत को रहना होगा अलर्ट
इसी कारण पिछले दिनों सांस्कृतिक केंद्र छायानट पर हमले के दौरान वाद्य यंत्र नष्ट कर दिए गए। बांग्लादेश में जैसे-जैसे भारत विरोध बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुओं के लिए संकट भी बढ़ता जा रहा है। यदि कट्टरपंथी तत्व बांग्लादेश में नई बनने वाली सरकार में साझीदार बन जाते हैं तो वहां हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों के लिए जीना और दूभर हो जाएगा।
HighLights
सांस्कृतिक केंद्र छायानट पर हमला, वाद्य यंत्र नष्ट
भारत विरोध बढ़ने से हिंदुओं पर संकट गहराया
कट्टरपंथी तत्वों के कारण अल्पसंख्यकों का जीवन दूभर
राजीव सचान। बांग्लादेश के मैमन सिंह जिले में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या जिस बर्बर तरीके से की गई, वह इकलौती ऐसी घटना नहीं, जो इस देश में हिंदुओं की दुर्दशा और उनके समक्ष उभर रहे खतरे को दिखाती हो। वे लगातार खतरे में रहे हैं और आगे यह बढ़ता हुआ ही दिख रहा है। ऐसा नहीं है कि पिछले वर्ष अगस्त में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद ही वहां के हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर आफत टूट पड़ी। सच यह है कि भारत विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश के हिंदू कभी चैन से नहीं रह पाए। भारत विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदुओं और विशेष रूप से दलित हिंदुओं की संख्या अधिक थी और इसका कारण दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल थे।
उन्होंने यह मानकर जिन्ना की मुस्लिम लीग का साथ दिया कि नए बने देश में दलित ज्यादा सुरक्षित और अधिकार संपन्न होंगे। उनका पूर्वी पाकिस्तान में अधिक प्रभाव था। मंडल पाकिस्तान के कानून मंत्री तो बने, लेकिन जिन्ना के निधन के साथ ही उनकी उपेक्षा और हिंदुओं की प्रताड़ना का सिलसिला कायम हो गया। मंडल तो इस्तीफा देकर चुपचाप कलकत्ता लौट आए, लेकिन उनके आश्वासन के चलते वहीं रहे गए हिंदू ठगे रह गए। हिंदुओं की प्रताड़ना पाकिस्तान के दोनों हिस्सों में होती रही। पूर्वी पाकिस्तान के हिंदुओं के भागकर भारत आने का जो सिलसिला कायम हुआ, वह कभी थमा नहीं। जब पूर्वी पाकिस्तान अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब वहां से पलायन कर भारत आने वाली अधिकांश आबादी हिंदुओं की ही थी।
पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने के बाद हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों ने चैन की सांस ली, लेकिन इस नए बने देश में भी उनकी प्रताड़ना कम नहीं हुई। कट्टरपंथी तत्व जब-तब उन्हें निशाना बनाते रहते। इसमें एक भूमिका शत्रु संपत्ति कानून की भी रही। इस कानून की आड़ में अल्पसंख्यकों की जमीनों पर कब्जा करना आसान था। यह कानून पाकिस्तान ने बनाया था, लेकिन बांग्लादेश बनने के बाद भी वह अस्तित्व में रहा। इस कानून के कारण हिंदुओं और बौद्धों की लाखों एकड़ भूमि कब्जाई जा चुकी है। अराजक तत्व फर्जी कागजों के जरिये उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति बताकर उस पर कब्जा कर लेते हैं। अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से हिंदुओं की जमीनों से जुड़े लाखों मुकदमे अदालतों में लंबित हैं। हालांकि शेख हसीना सरकार ने इस कानून में संशोधन किए, लेकिन वे अपर्याप्त साबित हुए। माना जाता है कि शेख हसीना की सरकार में हिंदू एवं अन्य अल्पसंख्यक अपने को सुरक्षित पाते थे, लेकिन यह एक हद तक ही सही है।
उनके शासनकाल में भी हिंदुओं का उत्पीड़न होता था। इतना अवश्य है कि खालिदा जिया शासन के मुकाबले कुछ कम होता था। इस कारण वहां से हिंदुओं का पलायन कभी थमा ही नहीं। समर्थ हिंदू विदेश जाते रहे और गरीब भारत भाग आते रहे। शेख हसीना अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने वाले जमाते इस्लामी जैसे कट्टरपंथी समूहों के साथ जिहादी तत्वों को काबू में रखती थीं। उनकी सरकार के तख्तापलट बाद ऐसे तत्व वहां बेकाबू हैं और इसीलिए पिछले 16 महीनों से वहां उनका दमन बढ़ गया है। तख्तापलट के बाद बनी छात्रों की नई पार्टी एनसीपी और इंकलाब मंच जैसे राजनीतिक समूहों की विचारधारा जमाते इस्लामी के निकट ही है। पिछले दिनों मारा गया छात्र नेता उस्मान हादी इंकलाब मंच का ही था। वह कट्टर भारत विरोधी था।
बांग्लादेश के मौजूदा हालात वैसे ही खतरनाक दिख रहे हैं, जैसे शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद दिख रहे थे। उस दौरान हिंदुओं पर जमकर हमले हुए थे। उनके घरों, दुकानों के साथ मंदिरों को भी निशाना बनाया गया था। उस समय भी अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस ने अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए आश्वासन दिए थे और इस समय भी दे रहे हैं, लेकिन वे खोखले ही साबित हो रहे हैं। यह सही है कि बांग्लादेश फिलहाल पाकिस्तान जैसा नहीं है, लेकिन अब उसके उस जैसा ही हो जाने की आशंका है, क्योंकि एक तो फरवरी में चुनाव के साथ संविधान में बदलाव को लेकर भी जनमत संग्रह होना है और दूसरे ऐसे तत्व मुखर हो रहे हैं, जो बांग्लादेश को पूरी तरह इस्लामी देश बनाना चाहते हैं। कुछ तो शरीयत लागू करने की मांग कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में जिहादी तत्वों की संख्या बढ़ी है। वहां अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों को समर्थन करने वाले तेजी से बढ़े हैं। मोहम्मद युनूस की सरकार ने ऐसे तत्वों पर लगाम लगाने के बजाय उन्हें जेल से रिहा करने का काम किया। ऐसा करके उन्होंने कट्टरता के उस जिन्न को बोतल से बाहर कर दिया, जिसे शेख हसीना बंद किए रहती थीं। इस कारण वहां बचे-खुचे सेक्युलर मूल्य भी खतरे में हैं। वहां महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए कहा जा रहा है और गाना-बजाना हराम बताया जा रहा है।
इसी कारण पिछले दिनों सांस्कृतिक केंद्र छायानट पर हमले के दौरान वाद्य यंत्र नष्ट कर दिए गए। बांग्लादेश में जैसे-जैसे भारत विरोध बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुओं के लिए संकट भी बढ़ता जा रहा है। यदि कट्टरपंथी तत्व बांग्लादेश में नई बनने वाली सरकार में साझीदार बन जाते हैं तो वहां हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों के लिए जीना और दूभर हो जाएगा।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)


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