राहुल गांधी ने जिस तरह बर्लिन में वही सब बातें कहीं, जो वे पहले न जाने कितनी बार कह चुके हैं, उससे यही स्पष्ट होता है कि उनके पास कहने के लिए कुछ नया नहीं रह गया है। वे इस समस्या से लंबे समय से ग्रस्त हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसे मुद्दों का अभाव है, जिनका उल्लेख कर जनता का ध्यान आकर्षित न किया जा सके, लेकिन राहुल गांधी जमीनी विषयों की अनदेखी कर सनसनी पैदा करने वाले ऐसे मुद्दों की ही तलाश में रहते हैं, जिनका सार यह होता है कि भाजपा अनुचित तरीके से सत्ता पा गई है।

चौकीदार चोर है से लेकर वोट चोरी और संविधान से लेकर संस्थाओं तक के खतरे में होने की उनकी बार-बार दोहराई जाने वाली बातें यही बताती हैं कि वे न तो कुछ नया सोच पा रहे हैं और न ही जनता की नब्ज पर हाथ रख पा रहे हैं। यह केवल उनकी ही नहीं, उनके आसपास रहने वाले नेताओं के सीमित और संकुचित चिंतन को भी बयान करता है।

राहुल गांधी की मानें तो कांग्रेस ने तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ हरियाणा और महाराष्ट्र के भी चुनाव जीते थे, लेकिन वोट चोरी के चलते बाद के दो राज्यों में भाजपा सत्ता में आ गई। उन्हें उन लोकसभा चुनाव के नतीजों पर भी अविश्वास है, जिसमें भाजपा अपने दम पर बहुमत नहीं पा सकी थी और कांग्रेस की ओर से 99 सीटें हासिल करने के कारण वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने।

राहुल गांधी मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर को भी वोट चोरी का पर्याय बता रहे हैं। बिहार में इस प्रक्रिया के दौरान उन्होंने वोट चोरी के अपने जुमले को खूब उछाला और यहां तक कि वहां वोटर अधिकार यात्रा तक निकाली, लेकिन चुनाव आते-आते जनता के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं रहा। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को भी बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा और सहयोगी दल राजद को भी।

बिहार के जनादेश ने यह साफ रेखांकित किया था कि मतदाताओं को वोट चोरी के आरोप में कोई दम नहीं दिखा, लेकिन राहुल गांधी इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार नहीं। यह मुद्दा जनता की अदालत के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी ठहर नहीं सका, लेकिन किन्हीं कारणों से राहुल गांधी दीवार पर लिखी इबारत पढ़ने को तैयार नहीं। वे वोट चोरी के अपने आरोप के पक्ष में पुष्ट प्रमाण होने का दावा करते हैं, लेकिन अदालत भी नहीं जाते।

इसी तरह वोटर लिस्ट में कमियों की शिकायत करते हैं, लेकिन एसआइआर भी नहीं होने देना चाहते। वे अपनी और कांग्रेस की नाकामी की खीझ चुनाव आयोग समेत अन्य संस्थाओं पर निकाल रहे हैं। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को देश के बाद विदेश में भी बदनाम करने का काम नेता प्रतिपक्ष करे?