संजय गुप्त। बांग्लादेश में पिछले वर्ष जुलाई में शेख हसीना सरकार के खिलाफ छेड़े गए छात्र आंदोलन से अशांति और अस्थिरता का जो दौर शुरू हुआ, वह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इस आंदोलन के चलते शेख हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा और उन्हें जान बचाने के लिए भारत में शरण लेनी पड़ी। उनके तख्तापलट के बाद सेना के हस्तक्षेप से वहां बनी अंतरिम सरकार की कमान जब नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने संभाली तो माना यह गया था कि वे अशांति और अस्थिरता दूर कर वहां बन रहे भारत विरोधी माहौल पर भी लगाम लगाने का काम करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।

16 माह बाद भी बांग्लादेश अशांत एवं अस्थिर है और वहां भारत विरोधी तत्व भी बेलगाम हैं। पिछले दिनों वहां जब एक कट्टरपंथी छात्र नेता उस्मान हादी की हत्या कर दी गई तो यह अफवाह फैलाई गई कि उसका हत्यारा भारत भाग गया है। उसके साथ-साथ शेख हसीना को भी सौंपने की मांग कर वहां नए सिरे से भारत विरोधी माहौल बनाया जाने लगा। इसी माहौल में वहां एक हिंदू युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई और फिर उसके शव को सबके सामने जला दिया गया। इसके बाद पुलिस ने स्पष्ट किया कि छात्र नेता के हत्यारे के भारत भाग जाने की कहीं कोई सूचना नहीं।

इसके बाद भी वहां भारत विरोधी तत्व उत्पात मचा रहे हैं। वे भारत के उच्चायोग को निशाना बनाने की कोशिश करने के साथ हिंदुओं पर हमले करने में लगे हुए हैं, जबकि हादी के भाई ने उसकी हत्या के लिए मोहम्मद यूनुस सरकार को ही कठघरे में खड़ा किया है। बीते दिनों वहां एक और हिंदू युवक की हत्या कर दी गई। इसके अलावा हिंदुओं के घरों में आगजनी की जा रही है। इसी तरह की घटनाएं तब भी हुई थीं, जब शेख हसीना का तख्तापलटा गया था।

भारत और बांग्लादेश के बीच बिगड़ते संबंधों के बीच वहां के सबसे बड़े राजनीतिक दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान जिया का 17 साल बाद लंदन से लौटना एक बड़ा घटनाक्रम है। वह पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान एवं पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे हैं। इस समय खालिदा जिया गंभीर रूप से बीमार हैं और अस्पताल में हैं। यदि फरवरी में होने वाले आम चुनावों में बीएनपी जीत हासिल करती है तो तारिक रहमान देश की कमान संभाल सकते हैं, लेकिन इन चुनावों का स्वतंत्र एवं निष्पक्ष कहना कठिन है।

इसका बड़ा कारण यह है कि अंतरिम सरकार ने शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को प्रतिबंधित कर उसे चुनाव लड़ने से रोक दिया है। इतना ही नहीं, उस जमाते इस्लामी को चुनाव लड़ने दिया जा रहा है, जिस पर शेख हसीना ने इसलिए प्रतिबंध लगा रखा था, क्योंकि वह पाकिस्तान समर्थक है। जमात ने बांग्लादेश की लड़ाई के समय पाकिस्तान का साथ दिया था। जमाते इस्लामी के साथ ही बांग्लादेश में अन्य ऐसे कट्टरपंथी तत्व बेलगाम हैं, जो भारत विरोध के साथ हिंदुओं पर दमन के लिए कुख्यात हैं। मोहम्मद यूनुस उन पर लगाम लगाने की कहीं कोई कोशिश करते दिख नहीं दिख रहे हैं।

बांग्लादेश का जन्म भारत की मदद से हुआ था। वहां लंबे समय सत्ता में रहीं शेख हसीना भारत की मित्र थीं। उनके समय में दोनों देशों के संबंधों में मजबूती आई, लेकिन अब वहां भारत विरोधी माहौल है। इसका बड़ा कारण मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार की ओर से भारत विरोधी तत्वों की अनदेखी किया जाना है। वे न तो कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम लगाने में दिलचस्पी ले रहे हैं और न ही भारत से संबंध सुधारने में। ऐसा लगता है कि शेख हसीना के प्रति उनकी नाराजगी भारत विरोध में तब्दील हो गई है।

वे भारत की चिंताओं का समाधान करने के बजाय उन्हें बढ़ाने का काम करते दिख रहे हैं। बांग्लादेश को लेकर भारत की चिंता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि मोहम्मद यूनुस उस पाकिस्तान से संबंध बढ़ाने में लगे हुए हैं, जिसने वहां के लोगों पर कहर ढाया था। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि वे भारत को चिढ़ाने के लिए ही पाकिस्तान को अहमियत दे रहे हैं।

बांग्लादेश में केवल पाकिस्तान का ही हस्तक्षेप बढ़ता नहीं दिख रहा, चीन का प्रभाव भी बढ़ रहा है। मोहम्मद यूनुस पाकिस्तान के साथ चीन को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। उनके रवैए से लगता है भारत से दोस्ती उन्हें पसंद नहीं। भारत से संबंध सुधारने में उनकी अनिच्छा से प्रतीति होती है कि वे बांग्लादेश में भारत के खिलाफ माहौल बनाने के लिए कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय ताकतों को भी अवसर दे रहे हैं। ध्यान रहे शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के समय पश्चिमी ताकतों का हाथ देखा गया था। सच जो हो, भारत के लिए यह ठीक नहीं कि बांग्लादेश में पाकिस्तान के साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय ताकतों की भी भूमिका बढ़ती दिख रही है।

भारत को न केवल बांग्लादेश में खतरे का सामना कर रहे हिंदुओं के बारे में सोचना होगा, बल्कि इस देश में अपने हितों की रक्षा के लिए भी कूटनीतिक कौशल दिखाना होगा। भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि बांग्लादेश में पाकिस्तान की भूमिका बढ़ने न पाए। भारत को बांग्लादेश के हालात पर गहरी निगाह रखने के साथ वहां चुनाव बाद बनने वाली किसी भी परिस्थिति के लिए अपने आप को तैयार रखना होगा।

कहना कठिन है कि चुनाव में क्या होगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि लोकतंत्र के मामले में बांग्लादेश पाकिस्तान की राह पर जाता हुआ दिख रहा है। जैसे वहां जो सत्ता में आ जाता है, वह अपने राजनीतिक विरोधियों के दमन में जुट जाता है, वैसे ही बांग्लादेश में भी होता है। पिछले चुनाव में शेख हसीना ने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी थीं, जिससे खालिदा जिया को चुनावों का बहिष्कार करने के लिए लिए विवश होना पड़ा था।

अब शेख हसीना की पार्टी चाह कर भी चुनाव नहीं लड़ सकती। इन स्थितियों में भारत को बांग्लादेश संबंधी अपनी कूटनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा। वास्तव में बांग्लादेश हो या अन्य कोई देश, भारत को किसी एक पक्ष अथवा राजनीतिक ताकत के प्रति ही निर्भर रहने से बचना होगा। इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान देना होगा कि उसके पड़ोस में लोकतांत्रिक शक्तियों को बल मिले।