कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी की एक पुरानी तस्वीर पोस्ट कर जिस तरह यह लिखा कि आरएसएस का एक स्वयंसेवक एवं भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता जमीन पर बैठकर मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री बना, उस पर चर्चा होना स्वाभाविक है। इसलिए और भी अधिक, क्योंकि उन्होंने इस फोटो के साथ अपने मन की बात उस समय साझा की, जब कांग्रेस कार्य समिति की बैठक चल रही थी।

उन्होंने उक्त फोटो को प्रभावशाली बताते हुए उसे संगठन की शक्ति का परिचायक भी कहा। उल्लेखनीय केवल यह नहीं कि उन्हें संगठन की शक्ति बताने के लिए यही फोटो उपयुक्त लगी, बल्कि यह भी है कि उन्होंने अपनी पोस्ट को मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ प्रधानमंत्री मोदी को भी टैग किया।

हालांकि इस पोस्ट को लेकर चर्चा का बाजार गर्म होने पर उन्होंने सफाई दी कि मैंने केवल संगठन की तारीफ की है और मैं तो आरएसएस और मोदी जी का घोर विरोधी हूं, लेकिन उनकी बात से यह तो ध्वनित हो ही गया कि वे कांग्रेस की सांगठनिक कमजोरी से बेचैन हैं और यह चाहते हैं कि पार्टी नेतृत्व संगठन पर ध्यान दे।

इसे चंद दिनों पहले की उनकी उस पोस्ट से और अच्छे से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को संबोधित करते हुए लिखा था कि कांग्रेस को सुधारों और विकेंद्रीकरण की जरूरत है। इस पोस्ट में उन्होंने यह अपेक्षा तो जताई थी कि राहुल ऐसा करेंगे, पर इसी के साथ यह भी कहा था कि समस्या यह है कि उन्हें सहमत करना कठिन है।

यह पहली बार नहीं, जब कांग्रेस के किसी नेता ने पार्टी की कमजोरियों को रेखांकित किया हो, लेकिन कहीं कोई बुनियादी बदलाव होता नहीं दिख रहा है। यह इसलिए नहीं हो रहा है, क्योंकि गांधी परिवार चाटुकार नेताओं से घिरा है। कांग्रेस में उसी की पूछ-परख है, जो परिवार का गुणगान करता है। एक समय गांधी परिवार कांग्रेस की ताकत हुआ करता था, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। इंदिरा गांधी के समय तो तब भी गनीमत थी, लेकिन उनके निधन के बाद जब राजीव गांधी पीएम बना दिए गए तो चाटुकार नेताओं का महत्व बढ़ गया और कांग्रेस कमजोर होती चली गई।

इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के चलते 1984 में तो कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की, लेकिन उसके बाद से वह कभी बहुमत नहीं पा पाई। आज सोनिया और राहुल की कांग्रेस उन क्षेत्रीय दलों पर निर्भर है, जो उससे ही टूट कर बने हैं। कांग्रेस की कमान भले ही खरगे के हाथ में हो, लेकिन वास्तविक शक्ति गांधी परिवार के पास ही है और वह संगठन को मजबूत करने के बजाय अपनी नाकामियों का दोष मोदी सरकार और चुनाव आयोग पर मढ़ने में लगा हुआ है।