दिल्ली में आयोजित आतंकवाद रोधी सम्मेलन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संगठित अपराध तंत्र का जो डाटाबेस जारी किया, वह समय की मांग के अनुरूप है। इस डाटाबेस में देश में सक्रिय आतंकी संगठनों और गैंगस्टरों का कच्चा-चिट्ठा है। इसमें गुम और बरामद हथियारों का भी विवरण है। इसे इसलिए तैयार किया गया है, क्योंकि आतंकी संगठनों और माफिया सरीखे अपराधियों के गिरोहों के बीच साठगांठ बढ़ती चली जा रही है।

कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनसे यह इंगित हुआ कि आतंकियों को किसी न किसी स्तर पर अपराधियों का सहयोग मिला। आम तौर पर आतंकी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने में तभी सफल हो पाते हैं, जब उन्हें स्थानीय स्तर पर किसी तरह की मदद मिलती है। यह किसी से छिपा नहीं कि अब आतंकी और गैंगस्टर हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी करने लगे हैं। सीमा पार से ऐसे हथियार आ रहे हैं, जो आतंकियों के साथ बड़े अपराधियों तक भी पहुंच रहे हैं।

कुछ समय पहले ऐसे एक गिरोह का भंडाफोड़ भी किया गया था, जो सीमा पार से आए हथियारों को अपराधियों तक पहुंचाता था। एनआईए की ओर से तैयार उक्त डेटाबेस सभी राज्यों की पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को उपलब्ध होगा। आशा की जा रही है कि इससे आतंकवाद और संगठित अपराध से मिलकर निपटने में सफलता मिलेगी, लेकिन उचित होगा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसा वास्तव में हो। यह इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भी है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जो कुछ भी संभव हो, किया जाना चाहिए।

एक ओर जहां आतंकियों के दुस्साहस का दमन किए जाने की सख्त जरूरत है, वहीं दूसरी ओर बड़े अपराधियों पर भी लगाम लगाने की आवश्यकता है। यह ठीक नहीं कि कुछ अपराधी जेल में रहकर भी अपनी गतिविधियां चलाते रहते हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, इसके कारणों का पता लगाकर उनका निवारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए।

यह सही है कि केंद्र सरकार आतंकवाद का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध है और उसकी इस प्रतिबद्धता के सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं, लेकिन आतंकी खतरे को कम करने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है, क्योंकि वे अपने तौर-तरीके बदलने के साथ आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

आवश्यक केवल यह नहीं कि आतंकी संगठनों और अपराधियों की टोह लेने का काम और कुशलता से किया जाए, बल्कि इसकी भी है कि अदालतें आतंकवाद के मामलों का निपटारा करने में शीघ्रता का परिचय दें। कई ऐसे मामले हैं, जिनमें आतंकियों को सजा सुनाने में जरूरत से ज्यादा देरी हुई। जब ऐसा होता है तो आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल उठते हैं। आतंकवाद एक ऐसा खतरा है, जिस पर चौतरफा प्रहार किया जाना चाहिए।