गिरीश्वर मिश्र। पिछले एक दशक में भारत की छवि निश्चित रूप से एक सशक्त देश के रूप में निखरी है। नए वर्ष में इस बदलते भारत के भविष्य के बारे में सोचते हुए हमें देश की समृद्ध प्राचीन सभ्यता और आधुनिक राष्ट्र-राज्य की संकल्पना, दोनों को ध्यान में रखना होगा। लोक की स्मृति में अभी भी नैतिक और न्यायपूर्ण शासन के लिए रामराज्य की अमिट छवि कायम है। इसलिए जहां वैश्वीकरण के अनुकूल आकांक्षाओं को ध्यान में रखना होगा, वहीं नैतिकता, सत्य तथा अहिंसा जैसे मानदंडों की भी चिंता करनी है। देश की प्रगति की कथा को देखें तो उसमें निरंतरता और परिवर्तन दोनों के तत्व मिलते हैं।

इस नए वर्ष में हमें संयत होकर यह विचार करना होगा कि विकसित भारत कैसा होगा, क्योंकि भारतीय समाज में अनेक प्रकार की बहुलताएं हैं, जिसे लेकर कुछ विचारक देश की मौलिक एकता को प्रश्नांकित करते हैं। वे भूल जाते हैं कि भारतीय दृष्टि में बहुलता अंतर्निहित मौलिक एकता का ही प्रकटन होती है-एकम् सद् विप्रा बहुधा वदंति। इसी एकता को खोजना पहचानने का उद्देश्य होना चाहिए। पूरे प्राणी जगत में निकटता को आधार बना कर विविधताओं का सह-अस्तित्व और पारस्परिक संवाद इस भारत का मौलिक सोच रहा है। यह अकारण नहीं है कि परिवार या कुटुंब का रूपक हमारे सोच में केंद्रीय है। देश की एकता, देश को अपनाने के भाव और देशप्रेम के लिए भी यह दृष्टि जरूरी है।

बीता वर्ष भारत के लिए चुनौतियों भरा रहा। अमेरिकी नीति ने भारत के निर्यात, रुपये की हैसियत, निवेश तथा भुगतान संतुलन आदि को लेकर मुश्किलें खड़ी कर दीं। राष्ट्रपति ट्रंप की अमेरिकी हितों को आक्रामक ढंग से आगे धकेलने की नीति ने हमारा अहित किया। इसे देखते हुए स्थिति को संभालने के लिए भारत ने कई कदम उठाए गए। जीएसटी की दरें कम की गईं और श्रम कानूनों में बदलाव लाया गया। यह बड़ी उपलब्धि है कि अंतरराष्ट्रीय अनिश्चितिता की विकट परिस्थितियों में भी भारत की जीडीपी की दर विश्व में अव्वल दर्जे की बनी रही।

खुदरा महंगाई दर भी आठ साल में सबसे कम रही। अच्छी पैदावार, आपूर्ति शृंखला में सुधार, कच्चे तेल की कम कीमतों ने इन परिस्थितियों में मदद की। शेयर बाजार में घरेलू निवेशक हमारी अर्थव्यवस्था की ताकत बने। आयकर रिटर्न के दाखिलों और कर-संग्रह में भी सुधार हुआ। बिजली, शहरी विकास, खनन, और वित्तीय सेवा के क्षेत्र में नई पहलें की गईं। भारत एक बड़ी वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की राह पर अग्रसर है और अनुमान है कि 2030 तक 7.3 ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर जीडीपी के साथ वह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

सामाजिक संरचना की दृष्टि से देश में मध्यम वर्ग का आकार बढ़ रहा है, जिससे खपत और शहरीकरण में वृद्धि और गरीबी में कमी के आसार बन रहे हैं। देश में बुनियादी ढांचा विस्तृत हो रहा है। डिजिटल प्रौद्योगिकी, कृत्रिम मेधा (एआइ), अंतरिक्ष विज्ञान, मेट्रो और बुलेट ट्रेन आदि को लेकर भी प्रगति दर्ज हो रही है। मेड इन इंडिया के तहत मैन्यूफैक्चरिंग, आइटी, स्वास्थ्य सेवा और स्टार्टअप्स में भारी वृद्धि से रोजगार के नए अवसर बढ़ रहे हैं। उत्पादन क्षेत्र में प्रगति की संभावना दिख रही है और स्वदेशी विकास की नीति अपनाई जा रही है। अनुमान है कि 5-जी और रोबोटिक्स के उपयोग का दायरा विस्तृत होता जाएगा। अब आनलाइन खरीदारी और ओटीटी प्लेटफार्म तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। भविष्य में एआइ का प्रभुत्व और भी बढ़ेगा। उसी के साथ साइबर अपराध भी बढ़ सकते हैं। ऐसे में साइबर सुरक्षा बड़ा महत्वपूर्ण सरोकार बन रहा है। यह भी याद रखना जरूरी है कि देश का भविष्य सिर्फ आर्थिक उन्नति के सूचकों तक सीमित नहीं किया जा सकता। आर्थिक विकास को केवल वृद्धि दर के अर्थ में ही नहीं, बल्कि रोजगार के अधिक अवसर, सामाजिक गतिशीलता और आम जनों के जीवन-स्तर में उन्नति के संदर्भ में भी देखना होगा। सबके लिए गुणवत्तापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने के लिए आर्थिकी को ज्ञान-केंद्रित और सामाजिक रूप से ज्यादा उत्तरदायी भी बनाना होगा।

आत्मनिर्भर भारत के लिए अवसर है, पर हम अपनी सीमाओं को भी अनदेखा नहीं कर सकते। युवा भारत को अक्सर एक पूंजी के रूप में घोषित किया जाता है, पर इसके लिए कौशल, स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश करना होगा। कौशल विकास की कमी और युवाओं में बेरोजगारी के चलते समाज में असंतोष पैदा हो रहा है। नई शिक्षा नीति की विसंगतियों को दूर कर उसके कार्यान्वयन के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। शिक्षा की पहुंच, उसकी गुणवत्ता और प्रासंगिकता को लेकर संशय बना हुआ है। इसी तरह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की मुश्किलें भी बढ़ी हैं। मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। अभी भी महिला श्रम-भागीदारी निम्न दर पर है। आय और संपत्ति की असमानता भी बढ़ी है और अनौपचारिक क्षेत्र की असुरक्षा बनी हुई है। साथ ही जाति, वर्ग, लिंग और क्षेत्रीय विषमताएं भी हैं। इन्हें दूर कर बहिष्कृत जनों का समावेश जरूरी होगा, अन्यथा राजनीतिक दलों द्वारा सामाजिक ध्रुवीकरण कर चुनावी लाभ लेने का चक्र चलता रहेगा। हमें बहुलता और राष्ट्रीय एकता को जोड़ना आवश्यक है।

नए वर्ष में यह अनदेखी नहीं की जा सकती कि सीमाओं पर आतंकी तत्वों की ओर से लगातार चुनौती आती रहती है। ऐसे में सतत चौकसी और सावधानी की जरूरत बनी हुई है। इसी तरह प्राकृतिक आपदाओं से मिलते संकेत जलवायु-परिवर्तन और तापमान में लगातार वृद्धि जैसे बदलाव पर्यावरणीय संकट की जटिलता को बता रहे हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा और मूल्य दृष्टि प्रकृति के साथ संतुलन और सह-जीवन पर बल देती आई है। हमें अनिवार्य रूप से उपभोक्तावाद पर लगाम लगाते हुए ऐसी जीवनशैली अपनानी होगी, जो पर्यावरण और सतत विकास के विरुद्ध न हो। भारत का भविष्य उज्ज्वल और संभावनाओं से भरा है, लेकिन उसे गरीबी, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक असमानताओं जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। यह भी जरूरी होगा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का भरोसा बढ़े और सामाजिक संवाद तथा सहिष्णुता को बढ़ावा मिले।

(लेखक पूर्व कुलपति हैं)