विचार: लापरवाही बढ़ा रही सड़क हादसों को, इसका समय से सही समाधान अनिवार्य है
अपने देश में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो देश के विकास के साथ-साथ भविष्य में दोगुनी गति से बढ़ेगी। लिहाजा यातायात पर विशेष ध्यान देते हुए सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना चाहिए और शानदार हाईवे भी बनाए जाने चाहिए। सड़क सुरक्षा भविष्य में बहुत बड़ी प्रशासनिक समस्या होने वाली है। इसका समय से सही समाधान आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।
HighLights
आगरा-नोएडा एक्सप्रेसवे पर भीषण हादसे में कई मौतें हुईं।
घने कोहरे में लापरवाही से बढ़ रहे सड़क हादसे।
जवाबदेही तय कर सड़क सुरक्षा बढ़ाना अनिवार्य।
यशपाल सिंह। देश में हर दिन कोई न कोई बड़ी सड़क दुर्घटना होती है। कभी-कभी तो एक ही दिन कई जानलेवा हादसे होते हैं, जिनमें कई लोग मारे जाते हैं। इधर घने कोहरे के कारण मार्ग दुर्घटनाओं का जोखिम और बढ़ गया है। पिछले दिनों घने कोहरे के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में कई मार्ग दुर्घटनाएं हुईं। इनमे सबसे भंयकर रही आगरा से नोएडा जाने वाले एक्सप्रेसवे पर। यहां एक कार और बस की टक्कर होने के बाद एक के बाद एक कुल 11 गाड़ियां आपस में टकरा गईं, जिनमें छह स्लीपर कोच और दो रोडवेज बसें भी थीं।
टक्कर के बाद कई वाहनों में आग लग गई, जिसमें दर्जन भर लोग जिंदा जलकर मर गए, जिनकी पहचान मुश्किल हो गई। एंबुलेंस, पुलिस, फायर सर्विस अथवा परिवहन से संबंधित कोई इकाई उनकी मदद नहीं कर सकी। डीएनए टेस्ट द्वारा उनके संबंधियों से मिलान कर शवों की पहचान की गई। उन परिवारों की पीड़ा का बयान शब्दों में संभव नहीं। ऐसी हर दुर्घटना के पीछे लापरवाही होती है।
जब रात्रि के घने कोहरे में पैदल यात्रियों को भी चलना दूभर हो जाता है, तब पूरी रफ्तार से बिना आवश्यक सावधानी के स्लीपर या रोडवेज बसों का चलना गंभीर अपराध कहा जाएगा। यदि चालक अत्यधिक ड्यूटी के कारण नींद की झपकी ले रहे थे या वाहनों में आवश्यक फाग लाइटें नहीं थीं, अथवा कोई अन्य तकनीकी कमी थी तो यह बस मालिकों की भी गंभीर लापरवाही मानी जाएगी। पूरा देश जानता है कि दिसंबर और जनवरी के महीने में प्रतिवर्ष पूरे उत्तर भारत में कोहरा पड़ता है, जो अचानक किसी दिन घने, किसी दिन बहुत घने और कभी बहुत हल्का होता है।
आगरा-नोएडा एक्सप्रेसवे पर जिस दिन दुर्घटना हुई, उसके दो दिन पूर्व घने कोहरे के कारण लखनऊ इकाना स्टेडियम में होने वाला क्रिकेट मैच खिलाड़ियों के मैदान में उतर जाने के बाद भी स्थगित करना पड़ा था। मौसम विभाग की चेतावनी भी कोहरे को लेकर थी, परंतु इन गाड़ियों की रफ्तार नियंत्रण और चेकिंग इत्यादि की कोई व्यवस्था नहीं की गई। कम से कम कुछ चेकपोस्टों पर लाउडस्पीकरों से घोषणा कर वाहन चालकों को आगाह किया जा सकता था, लेकिन किसी को चिंता नहीं थी। प्रश्न है कि ऐसा क्यों हुआ?
इसका मूल कारण किसी उच्चतम अधिकारी की स्पष्ट जिम्मेदारी का न होना है। इसका कारण यह है कि किसी की जवाबदेही नहीं होती और न ही कोई चिंता करता है। परिवहन विभाग ट्रैफिक पुलिस पर और ट्रैफिक पुलिस परिवहन विभाग पर दोष डालकर शांत हो जाते हैं और कुछ दिन बाद घटना भुला दी जाती है। ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी समझते हैं कि उनकी जिम्मेदारी अब चौराहों तक सीमित है, ताकि यातायात अबाध रूप से चलता रहे।
आगरा-एक्सप्रेसवे पर भयंकर दुर्घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कठोर रुख अपनाते ही दूसरे दिन उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण सक्रिय हो गया। आगरा, लखनऊ, बुंदेलखंड और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर 50 पायलट गाड़ियां तैनात कर दी गईं और 75 संवेदनशील स्थान भी चुन लिए गए, जहां से गाड़ियां काफिले में नियंत्रित गति से चलाना प्रारंभ की गईं। चिह्नित स्थानों पर ब्लिंकर्स लगाए गए। जगह-जगह लाउडस्पीकर लगाकर सतर्क करने की व्यवस्था की गई।
इन चारों एक्सप्रेसवे पर हर 50 किमी की दूरी पर विशेष वाहनों की तैनाती की गई, जिसमें गश्ती वाहन, एंबुलेंस और रेस्क्यू वाहन लगाए गए। गाड़ियों को प्रवेश बिंदुओं पर रोककर रिफ्लेक्टर और फाग लाइटें लगाई गईं। अग्निशमन वाहनों की व्यवस्था की गई। वाहनों की गति सीमा निर्धारित कर उसे लागू किया गया और न मानने वालों के चालान काटे गए। यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यह सब पहले नहीं किया जा सका। पुलिस और प्रशासन दुर्घटना होने के बाद चेतता है। इसका एक कारण यह है कि देश भर में आम तौर पर यातायात पुलिस को शहर के चौराहों तक सीमित कर दिया गया है, जबकि सड़क दुर्घटनाओं को रोकने में पुलिस से अधिक प्रभावशाली योगदान किसी और विभाग का हो ही नहीं सकता।
सभी प्रदेशों में थानों-चौकियों के जरिये हर कहीं यातायात पुलिस की पहुंच है। इससे भी बड़ी बात यह है कि पुलिस 24 घंटे ड्यूटी को उपलब्ध रहती है और किसी भी घटना स्थल पर सबसे पहले वही पहुंचती है। पूरे देश में प्रतिवर्ष लगभग 1,60,000 दुर्घटनाएं होती हैं। मार्ग दुर्घटनाओं में मरने और घायल होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है, पर उनके प्रति अफसोस प्रकट कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। कभी-कभी लगता है कि वाहन चालकों को कानून का कोई भय ही नहीं है। इस व्यवस्था में सुधार तब तक संभव नहीं है, जब तक कि एक विभाग विशेष की जवाबदेही तय नहीं कर दी जाती। जिम्मेदारी जवाबदेही से आती है। यही विभाग अन्य विभागों से समन्वय स्थापित कर पूरे वर्ष बदलते मौसम, त्योहारों, विशेष यात्राओं इत्यादि को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था करने के लिए जिम्मेदार हो।
अपने देश में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो देश के विकास के साथ-साथ भविष्य में दोगुनी गति से बढ़ेगी। लिहाजा यातायात पर विशेष ध्यान देते हुए सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना चाहिए और शानदार हाईवे भी बनाए जाने चाहिए। सड़क सुरक्षा भविष्य में बहुत बड़ी प्रशासनिक समस्या होने वाली है। इसका समय से सही समाधान आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।
(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं)













कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।