राज्यसभा में चुनाव सुधार पर चर्चा करते हुए कांग्रेस ने जिस तरह फिर से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की अपनी मांग पर बल दिया, उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि वह एक ऐसा माहौल बनाने पर काम कर रही है, जिससे देश की चुनाव प्रक्रिया ही संदिग्ध हो जाए। ऐसा माहौल बनाने का उसका मकसद यह प्रचारित करना है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में पड़ चुका है।

ध्यान रहे कि राहुल गांधी देश ही नहीं, विदेश में भी भारतीय लोकतंत्र को खतरे में बता चुके हैं। यह भी छिपा नहीं कि वे लंबे समय से वोट चोरी के मुद्दे को तूल दे रहे हैं। पहले उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के हवाले से वोट चोरी के मसले को उछाला, फिर चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर के बहाने ऐसा करना शुरू कर दिया।

कांग्रेस नेता केवल चुनाव प्रक्रिया पर ही सवाल नहीं उठा रहे हैं, वे यह भी प्रचारित कर रहे हैं कि वह भाजपा से मिला हुआ है और मोदी सरकार के इशारे पर एसआइआर करा रहा है। यह प्रचारित करने के लिए ही पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित कांग्रेस की रैली में चुनाव आयोग और मोदी सरकार, दोनों पर निशाना साधा गया। इस रैली में प्रधानमंत्री के खिलाफ कांग्रेस नेताओं ने आपत्तिजनक नारे लगाकर अपनी खीझ ही उतारी।

चुनाव सुधार के नाम पर ईवीएम पर सवाल उठाना और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग करना एक तरह से देश को बैलगाड़ी युग में ले जाना है। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि जिस कांग्रेस ने ईवीएम के उपयोग की अनुमति दी, वही आज उसके खिलाफ खड़ी है? ईवीएम को संदिग्ध बताने के लिए न जाने कितने लोग हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जा चुके हैं, लेकिन उन्हें मुंह की ही खानी पड़ी है।

इसके बाद भी बैलेट पेपर वाली चुनाव प्रक्रिया को भरोसेमंद बताने की बेतुकी मांग होती रहती है। इस मांग का समर्थन करने वाले अधिक दल नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं। वह यह समझने को तैयार नहीं कि उसकी ओर से ईवीएम को लेकर जो नैरेटिव बनाया जा रहा है, उसमें कोई दम नहीं। यह एक ऐसा घिसा हुआ बेकार का नैरेटिव है, जिसका कहीं कोई असर नहीं।

यदि कांग्रेस अपनी कमजोरियों पर ध्यान देने के बजाय फालतू के मुद्दों को तूल देगी तो उसे कुछ हासिल होने वाला नहीं है, क्योंकि देश के लोग यह भूले नहीं हैं कि जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे, तब किस तरह मतपत्र लूटे जाते थे। राज्यसभा में कांग्रेस की ओर से यहां तक कहा गया कि चुनावी पारदर्शिता के लिए अलग आयोग बने। इसका सीधा मतलब है कि वह संवैधानिक संस्था के रूप में चुनाव आयोग को खारिज कर रही है। आखिर यह संविधान के प्रति कैसी प्रतिबद्धता है?