संजय गुप्त। गोवा के एक नाइट क्लब में लगी आग ने एक बार फिर सार्वजनिक एवं निजी इमारतों समेत हर जगह सुरक्षा की अनदेखी की पोल खोलकर रख दी। यह पहली बार नहीं है, जब किसी इमारत में आग लगने से लोगों की जानें गई हों। देश में रह-रह कर ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं और बड़ी संख्या में लोग उनमें मरते भी रहते हैं। ऐसी हर घटना के बाद सुरक्षा संबंधी कमियां बड़े पैमाने पर उजागर होती हैं। गोवा नाइट क्लब के मामले में भी उजागर हो रही हैं।

उन्हें गिनाते हुए नाइट क्लब पर बुलडोजर चला दिया गया और उसके संचालकों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इस तरह की कार्रवाई करते हुए यही संदेश देने की कोशिश की जाती है कि शासन-प्रशासन सख्त है और वह ऐसी कार्रवाई कर रहा हो, जो नजीर बनेगी, लेकिन ऐसा कठिनाई से ही होता है, क्योंकि एक तो कार्रवाई एक सीमा तक ही होती है और दूसरे अनदेखी के लिए जिम्मेदार अधिकारी सजा से बच जाते हैं।

वे ज्यादा से ज्यादा कुछ समय के लिए निलंबित होते हैं। नतीजा यह होता है कि बार-बार वैसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, जैसी गोवा में देखने को मिली और जिसमें 25 लोगों की जान चली गई। इतनी अधिक जानें इसीलिए गईं, क्योंकि नाइट क्लब में आग से बचाव के कोई उपाय नहीं थे।

वैसे तो कोई इमारत ऐसी नहीं हो सकती, जिसमें आग लगने की आशंका न रहे, लेकिन भारत में आमतौर पर निजी और सार्वजनिक भवनों में सुरक्षा के जो जरूरी उपाय होने चाहिए, वे नहीं किए जाते। भवनों का निर्माण करते समय उनमें सुरक्षा और विशेष रूप से आग से बचाव के उपाय न करना एक अपराध ही है, लेकिन देश में ऐसे अपराध हर कहीं हो रहे हैं और उनकी रोकथाम के लिए संबंधित विभाग और सरकारें सक्रिय नहीं होतीं।

गोवा के नाइट क्लब के बारे में यह सामने आ रहा है कि वह महीनों से बिना लाइसेंस के चल रहा था और उसमें सुरक्षा के उपाय भी नहीं थे। उसका निर्माण भी नियमों के विपरीत किया गया था। जब इस नाइट क्लब का नियमों का उल्लंघन करके निर्माण हो रहा था, तब संबंधित विभाग निष्क्रिय क्यों थे? ऐसा तो हो नहीं सकता कि इस निर्माण के बारे में उन्हें कुछ पता न चला हो। तथ्य यह है कि इस नाइट क्लब के निर्माण और संचालन में बरती जा रही लापरवाही को लेकर कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन उन पर अधिकारियों ने भी ध्यान नहीं दिया।

आखिर उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है? सब जानते हैं कि अवैध निर्माण नगर निकायों और अन्य विभागों की मिलीभगत से होते हैं। इस तरह के निर्माण में आग से बचाव के उपायों के मामले में तो रिकार्ड कुछ ज्यादा ही खराब है।

गोवा की घटना के बाद ऐसी खबरें आ रही हैं कि देश के अन्य शहरों के तमाम रेस्त्रां और बैंक्वेट हाल, होटल आदि ऐसे हैं जहां सुरक्षा और विशेषकर आग से बचाव के पर्याप्त उपाय नहीं हैं। यदि सुरक्षा उपायों का आडिट किया जाए तो शायद ही कोई निजी या सार्वजनिक इमारत निर्माण और सुरक्षा संबंधी नियम-कानूनों की कसौटी पर खरी पाई जाए। जो भी गैर-कानूनी निर्माण होते हैं, उनके प्रति नगर निकाय के अधिकारीगण आंखें मूंदे रहते हैं।

नियम विरुद्ध निर्माण में आर्किटेक्ट और ठेकेदार भी शामिल होते हैं। बहुत कम यह सुनने को मिलता है कि अवैध निर्माण में शामिल रहे किसी आर्किटेक्ट के खिलाफ कार्रवाई हुई हो और उसका लाइसेंस रद किया गया हो। लाइसेंस रद भी किया जाता है, तो कुछ महीने के लिए। ठेकेदारों के खिलाफ भी कभी कोई कठोर कार्रवाई नहीं होती। समय आ गया है कि उन्हें भी अवैध निर्माण के लिए जवाबदेह बनाया जाए। आर्किटेक्ट या ठेकेदार अवैध निर्माण में भागीदार इसीलिए बनते हैं, क्योंकि उन्हें कड़ी कार्रवाई का कोई भय नहीं होता। आखिर उन्हें इसके लिए क्यों नहीं चेताया जाता कि वे अवैध और सुरक्षा उपायों की अनदेखी करने वाला निर्माण न होने दें, अन्यथा दंड के भागीदार बनेंगे।

प्रत्येक बड़ी घटना के बाद हर तरह की कार्रवाई कर यह संदेश देने की कोशिश होती है कि शासन-प्रशासन सख्त है। इससे शासन-प्रशासन की वाहवाही तो हो जाती है, लेकिन आम तौर पर यह सख्ती आगे दुर्घटनाओं को रोकने में सक्षम नहीं होती। यह कहना कठिन है कि गोवा प्रशासन जो कार्रवाई कर रहा है, उससे जो लोग गैर-कानूनी निर्माण या सुरक्षा मानकों की अवहेलना कर रहे हैं, वे सचेत हो गए होंगे। अपने देश में हर तरह के नियम-कानून हैं, पर उनका पालन करने के लिए न तो नागरिक सचेत रहते हैं और न ही उन पर अमल सुनिश्चित कराने वाले सरकारी विभाग।

शायद ही कोई अवैध निर्माण होता हो, जिसमें नगर निकाय के कर्मचारी और अधिकारी पैसे न खाते हों। नगर निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते कई बार तो लोगों को सही ढंग से निर्माण कराने के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। यह भ्रष्टाचार अवैध निर्माण के साथ सुरक्षा उपायों की अनदेखी को बढ़ावा दे रहा है। यह अनदेखी अक्सर जान-माल के नुकसान का कारण बनती है। जब जान-माल का नुकसान हो जाता है, तब भी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई ऐसी कार्रवाई नहीं होती, जिससे उन्हें सबक मिले और अन्य अधिकारियों में डर बैठे।

यह समझा जाना चाहिए कि निर्माण और सुरक्षा उपायों पर अमल की मौजूदा व्यवस्था में जब तक आमूलचूल परिवर्तन नहीं किए जाएंगे, तब तक भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में गोवा नाइट क्लब जैसी दुर्घटनाएं रोकना संभव नहीं। हर वर्ष तमाम ऐसी घटनाएं घटती हैं, जिनमें निर्दोष नागरिक निर्माण और सुरक्षा संबंधी कमियों के कारण जान गंवाते हैं, लेकिन कोई सही सबक सीखने से इन्कार किया जा रहा है।

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में भूकंप के खतरों को कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए जिस तरह यह कहा कि क्या सबको चांद पर बसा दें, उससे भूकंप रोधी उपायों की अनदेखी होने की आशंका है। यह ठीक है कि भूकंप रोधी उपायों की चिंता करना सरकारों का काम है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वे ऐसे उपायों के पालन पर ध्यान दे रही हैं? वे तो सामान्य सुरक्षा उपायों की भी अनदेखी कर रही हैं।