यह निराशाजनक भी है और चिंताजनक भी कि देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी इंडिगो को लेकर उठे सवालों का अभी भी सही तरह समाधान होता हुआ नहीं दिख रहा है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि डीजीसीए ने इंडिगो के मुख्यालय में निगरानी दल बैठा दिया है और उसकी हर उड़ान की निगरानी हो रही है, क्योंकि तथ्य यह है कि यात्रियों को अभी भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह सामान्य स्थिति का सूचक नहीं कि उसकी उड़ानें अब भी रद और स्थगित हो रही हैं?

आखिर जब डीजीसीए ने पायलटों को आराम देने वाले नियमों को लागू करने का फैसला दो माह के लिए टाल दिया तो फिर इंडिगो की विमान सेवाएं पटरी पर क्यों नहीं आ पा रही हैं? प्रश्न यह भी है कि क्या इंडिगो दो महीने बाद डीजीसीए के इन नियमों को लागू करने की स्थिति में होगी? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि इतनी जल्दी पायलटों की भर्ती किया जाना संभव नहीं दिखता।

यह प्रश्न भी अनुत्तरित है कि दंड स्वरूप इंडिगो की उड़ानों में दस प्रतिशत की जो कटौती की गई, उसकी भरपाई करने के लिए अन्य विमानन कंपनियां सक्षम हैं या नहीं? यदि वे सक्षम नहीं होतीं तो फिर विमान यात्रियों के समक्ष पैदा हुआ संकट शायद ही दूर हो, क्योंकि यह समय पर्यटन का है।

इंडिगो की सैकड़ों उड़ानें रद होने के बाद लाखों विमान यात्रियों को जो परेशानी हुई, उससे सरकार अंततः चेती तो, लेकिन आखिर उसे इतना समय क्यों लगा और वह समस्या को समय रहते क्यों नहीं भांप सकी? इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इंडिगो के साथ-साथ डीजीसीए को जवाबदेह ठहराने के लिए क्या किया जा रहा है?

डीजीसीए के पदाधिकारियों ने इसका आकलन क्यों नहीं किया कि इंडिगो तय समय पर नए नियमों का पालन करने के लिए आवश्यक तैयारी कर रही है या नहीं? उनकी निगरानी के दायरे में इंडिगो तो खास तौर पर होनी चाहिए थी, क्योंकि सबसे अधिक विमानों का बेड़ा उसके ही पास है। यदि डीजीसीए तभी चेत जाता, जब इंडिगो की रद होती उड़ानों से उपजा संकट गहरा रहा था तो शायद स्थिति इतनी विकट नहीं होती।

इस नतीजे पर पहुंचने के ठोस कारण हैं कि डीजीसीए ने अपना काम सही तरह नहीं किया। यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि इंडिगो प्रबंधन को कठघरे में खड़ा कर उससे सख्त सवाल पूछने के साथ ही डीजीसीए पदाधिकारियों से भी जवाब-तलब किया जाए।

यह समझा जाना चाहिए कि इंडिगो के साथ ही डीजीसीए की साख को भी बट्टा लगा है। जितना जरूरी यह है कि इंडिगो की कार्यप्रणाली में आमूल-चूल सुधार हो और वह विमानन बाजार में अपनी हिस्सेदारी का बेजा लाभ न उठाने पाए, उतना ही यह भी कि डीजीसीए भी अपना काम सही तरह करे, क्योंकि एक नियामक के रूप में वह विफल साबित हुआ है।