राजीव सचान। बहुत दिन नहीं हुए जब विषाक्त कफ सीरप कोल्ड्रिफ के मामले में यह सामने आया था कि नियामक संस्थाओं ने अपना काम सही तरह नहीं किया। इस विषाक्त कफ सीरप के सेवन के चलते मध्य प्रदेश और राजस्थान में 25 से अधिक बच्चों की जान चली गई थी। देश में दवा निर्माण के लिए नियामक संस्था-केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ नियम तय करता है, पर कारखानों को लाइसेंस देने, दवा निर्माण इकाइयों के निरीक्षण और दवाओं के नमूनों का परीक्षण किए जाने जैसे काम राज्य औषधि नियामक प्राधिकरण करते हैं।

राज्यों के ऐसे प्राधिकरणों की क्षमताएं अलग-अलग हैं और सीएसडीएओ के पास ऐसे अधिकार नहीं कि वह राज्यों के प्राधिकरणों के कामकाज की निगरानी रख सके। विषाक्त कफ सीरप से 25 बच्चों की मौतों के बाद ऐसी खबरें आईं कि दवा निर्माण एवं उनके परीक्षण की व्यवस्था को और सक्षम बनाया जाएगा, लेकिन कहना कठिन है कि ऐसा हो सकेगा और उसके नतीजे में कोल्ड्रिफ जैसे मामले फिर सामने नहीं आएंगे। कायदे से दवाओं के निर्माण की प्रक्रिया और उनकी गुणवत्ता की जांच-परख करने वाली संस्थाओं को सक्षम बनाने का बीड़ा तभी उठा लिया जाना चाहिए था, जब कुछ वर्ष पहले गांबिया और उज्बेकिस्तान में भारत में बनी कफ सीरप के सेवन से इन देशों के कई बच्चे मर गए थे।

अपने देश में हर क्षेत्र के लिए नियामक संस्थाएं हैं, लेकिन यह प्रश्न अनुत्तरित है कि क्या वे पर्याप्त सक्षम हैं और अपना काम सही तरीके से कर पा रही हैं? ताजा मामला विमानन सेवाओं की नियामक संस्था डीजीसीए का है। इंडिगो एयरलाइन ने डीजीसीए के बनाए नियमों को लागू करने के स्थान पर उनकी अनदेखी करने का फैसला किया और वह भी तब, जब अन्य एयरलाइंस के साथ उसे भी इसके लिए करीब दो वर्ष का समय मिला था। अन्य एयरलाइंस ने तो डीजीसीए की ओर से पायलटों को आराम के घंटे बढ़ाने संबंधी नियमों पर अमल कर लिया, लेकिन इंडिगो ने ऐसा नहीं किया और वह भी तब जब अन्य एयरलाइंस घाटे में चल रही हैं और इंडिगो मुनाफे में।

इंडिगो ने नए नियमों को मानने के बजाय ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि डीजीसीए को अपने नियमों पर अमल को टालना पड़ा। यह स्थिति इसलिए पैदा हुई, क्योंकि इंडिगो ने बड़ी संख्या में अपनी उड़ानों को रद किया। इसके चलते लाखों यात्री परेशान हुए। उनके समय के साथ धन की तो बर्बादी हुई ही, उनके जरूरी काम भी अटक गए। किसी की परीक्षा छूटी तो किसी का इंटरव्यू या फिर जरूरी मीटिंग अथवा अन्य कोई काम। लाखों विमान यात्रियों को जो आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानी हुई, उसका आकलन करना कठिन है।

इंडिगो ने अपनी उड़ानें रद कर विमान यात्रा को पंगु कर ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि डीजीसीए को उसके समक्ष घुटने टेकने पड़े। उसने विमानन बाजार में अपनी हिस्सेदारी का लाभ उठाकर डीजीसीए को जिस तरह झुकने के लिए बाध्य किया, उससे इस नियामक संस्था के साथ सरकार की भी किरकिरी हुई, क्योंकि डीजीसीए के झुकने का मतलब है भारत सरकार का झुकना। मोदी सरकार को यह आभास होना चाहिए कि इंडिगो प्रकरण से मजबूत सरकार की उसकी छवि को धक्का लगा है। लाखों विमान यात्रियों के सामने जो संकट पैदा हुआ, उससे देश की भी बदनामी हुई, क्योंकि इंडिगो की उड़ानों के रद होने से देश के साथ विदेश के यात्री भी परेशान हुए।

यह खेद की बात है कि डीजीसीए में से किसी ने इसकी सुधि नहीं ली कि इंडिगो उसकी ओर से तय किए गए नियमों का पालन करने की दिशा में कुछ कर रही है या नहीं? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि डीजीसीए में कोई यह देखने वाला नहीं था कि यदि विमानन बाजार में सबसे अधिक हिस्सेदारी रखने वाली इंडिगो उसकी ओर से तय किए गए नियम लागू नहीं करेगी तो अंतरराष्ट्रीय विमानन उद्योग को तो गलत संदेश जाएगा ही, जिन कंपनियों ने उसके नियमों का पालन किया, वे खुद को ठगा हुआ महसूस करेंगी।


एक ऐसे समय जब निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ रही है और आने वाले दिनों में इस भूमिका का और विस्तार होना तय है, तब नियामक संस्थाओं का सक्षम होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। अभी कुछ ही नियामक संस्थाएं ऐसी हैं, जिन्हें सक्षम और सजग कहा जा सकता है। ज्यादातर नियामक संस्थाएं कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही हैं। कोई पर्याप्त अधिकारों से लैस नहीं है तो कोई संसाधनों के अभाव से ग्रस्त है। विभिन्न क्षेत्रों से रह-रहकर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जो यह बताते हैं कि नियामक संस्थाएं किसी गड़बड़ी या मनमानी को रोकने में नाकाम ही अधिक रहती हैं।

यदि नियामक संस्थाएं सक्षम नहीं बनीं तो निजी क्षेत्र की कंपनियां वैसी ही मनमानी कर सकती हैं, जैसी इंडिगो ने की। सरकार को इसकी अनुभूति होनी चाहिए कि यदि नियामक संस्थाएं प्रभावी नहीं बनीं तो निजी क्षेत्र की कंपनियां बेलगाम होंगी और इसके नतीजे में उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता गिरेगी। नियामक संस्थाओं को केवल इसलिए ही प्रभावी नहीं बनना होगा, ताकि उत्पादों एवं सेवाओं की गुणवत्ता सुधरे और उपभोक्ताओं की शिकायतों का समय पर सही ढंग से समाधान हो। उन्हें इसलिए भी प्रभावी बनना होगा, क्योंकि कोई देश अपनी संस्थाओं की सजगता से ही सबल और विकसित बनता है।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)