लोकसभा में चुनाव सुधारों पर हुई चर्चा को उपयोगी कहना कठिन ही है। इसमें संदेह है कि ऐसी चर्चा से पक्ष-विपक्ष में कोई सहमति कायम हो सकेगी और चुनाव सुधारों का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। किसी क्षेत्र में सुधारों पर ऐसी चर्चा सार्थक नहीं हो सकती, जिसमें कोई सही सुझाव ही न दिया जाए। चुनाव सुधारों पर चर्चा करते हुए राहुल गांधी ने जो कुछ कहा, उससे यही स्पष्ट हुआ कि उनका एकमात्र उद्देश्य वोट चोरी के अपने पुराने आरोपों को नए सिरे से धार देना और इस बात को दोहराना था कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव-प्रभाव में काम कर रहा है।

वे अपने इन आरोपों को पुष्ट करने के लिए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव नतीजों का तो उल्लेख करते हैं, लेकिन झारखंड और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम की अनदेखी कर देते हैं। इसी तरह वे यह भी भूल जाते हैं कि लोकसभा चुनावों में जहां भाजपा 240 सीटों पर सिमट गई, वहीं कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं और उसके नतीजे में ही उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिला। राहुल गांधी ने मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर पर भी आपत्ति जताई।

उन्होंने बिहार में एसआइआर के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करने के साथ वोटर अधिकार यात्रा भी निकाली थी, लेकिन इससे न तो कांग्रेस को कुछ हासिल हुआ और न ही सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल को। ऐसा इसीलिए हुआ, क्योंकि बिहार के लोगों को एसआइआर में कोई खोट नहीं दिखा। वास्तव में इसी कारण वह चुनावी मुद्दा भी नहीं बन सका।

अच्छा होगा कि राहुल गांधी इस पर ध्यान दें कि वे जिस मुद्दे को तूल देना चाहते हैं, उसे आम जनता कोई महत्व नहीं दे रही है। राहुल गांधी मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों का जिक्र तो करते हैं, लेकिन यह नहीं स्पष्ट करते कि उन्हें ठीक करने के लिए एसआइआर के अलावा और क्या उपाय है? एसआइआर को लेकर उनका विरोध इसके बाद भी जारी है कि सुप्रीम कोर्ट उसे उचित और आवश्यक ठहरा चुका है।

आखिर जो मुद्दा न सुप्रीम कोर्ट के समक्ष टिक पा रहा हो और न ही जनता की अदालत में, उसे लगातार उछालते रहना कितना सही है? राहुल गांधी ने यह भी साबित करने की कोशिश की कि सरकार चुनाव आयोग समेत सभी संस्थाओं पर कब्जा करती जा रही है, लेकिन इसमें भी वे नाकाम ही रहे, क्योंकि उनके पास भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के सवालों का कोई जवाब नहीं था।

यदि राहुल गांधी अपनी राजनीतिक कमजोरियों का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ते रहेंगे तो इससे अपना और अपनी पार्टी का अहित ही करेंगे। यदि कांग्रेस को वांछित राजनीतिक सफलता नहीं मिल पा रही है तो इसका कारण खुद उसकी और विशेष रूप से राहुल गांधी की रीति-नीति है, न कि चुनाव आयोग।