संपादकीय: आम सहमति की राजनीति, वायु प्रदूषण पर चर्चा के लिए सरकार तैयार
संसद में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर चर्चा के लिए सरकार और विपक्ष के बीच सहमति बन गई है। यह निर्णय प्रदूषण के गंभीर स्तर और नागरिकों के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को देखते हुए लिया गया है। दोनों पक्ष इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार-विमर्श करने और उचित समाधान निकालने के लिए तैयार हैं।
HighLights
संसद में वायु प्रदूषण पर चर्चा के लिए सहमति
सरकार और विपक्ष के बीच बनी सहमति
प्रदूषण के मुद्दे पर विचार-विमर्श होगा
यह सुखद है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने देश में बढ़ते वायु प्रदूषण का जो विषय उठाया, उस पर सरकार चर्चा करने के लिए सहर्ष तैयार हो गई। यह भी सुखद रहा कि राहुल गांधी ने वायु प्रदूषण की गंभीरता को रेखांकित करते हुए यह कहा कि इस मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी को आम सहमति से इस पर चर्चा करनी चाहिए, ताकि देश को दिखाया जा सके कि हम मिलकर काम कर सकते हैं।
वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिसका समाधान सभी को मिलकर करना होगा। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों के साथ आम जनता का सहयोग भी अपेक्षित है। जन सहयोग की अपेक्षा तभी पूरी हो सकती है, जब राजनीतिक वर्ग एकमत और एकजुट होकर कारगर उपाय खोजेगा। वायु प्रदूषण पर सार्थक चर्चा के लिए यह आवश्यक है कि उसके मूल कारणों के निवारण पर ज्यादा जोर दिया जाए। केवल पराली या फिर पटाखों को ही वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।
वायु प्रदूषण के बड़े कारणों में सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल और वाहनों का उत्सर्जन है। इसके अतिरिक्त लकड़ी, उपले, कोयला आदि जलाए जाने से उपजने वाला धुआं भी है। यह गंभीरता से देखा जाना चाहिए कि अपने देश में रसोई गैस का वास्तविक इस्तेमाल कितना होता है?
वायु प्रदूषण की गंभीर हो चुकी समस्या के समाधान के लिए कोई कारगर कदम न उठाए जा सकने का दुष्परिणाम यह है कि प्रदूषण से प्रभावित होने वाले शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।
इससे केवल लोगों की सेहत के लिए ही खतरा नहीं पैदा हो रहा है, बल्कि देश की बदनामी भी हो रही है। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कि आज जब भारत का अंतरराष्ट्रीय कद बढ़ रहा हो, तब वह बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए जाना जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि वायु प्रदूषण पर संसद में न केवल सार्थक चर्चा होगी, बल्कि उससे ऐसी कार्य योजना को तैयार करने का मार्ग भी प्रशस्त होगा, जिस पर अमल के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारें गंभीरता का परिचय देंगी।
वायु प्रदूषण पर चर्चा के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष में जो सहमति बनी, उसे केवल यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। राष्ट्रीय महत्व के अन्य ऐसे विषय भी खोजे जाने चाहिए, जिन पर बिना किसी दोषारोपण के आम सहमति के साथ संसद में चर्चा हो सके। संसद में बिना आरोप-प्रत्यारोप चर्चा की आवश्यकता दोनों ही पक्षों को महसूस करनी चाहिए, क्योंकि अब शायद ही कोई ऐसा मुद्दा होता हो, जो दोषारोपण की भेंट चढ़ने से बच पाता हो।
स्मरण करना कठिन है कि इससे पहले पक्ष-विपक्ष में कब किसी विषय पर आम सहमति बनी थी और दोनों के बीच ऐसी कोई चर्चा हुई थी, जिससे देश को कोई सही दिशा मिली हो।













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