जागरण संपादकीय: लकीर पीटने का काम, गोवा अग्निकांड जैसी घटनाओं से कब लेंगे सबक?
गोवा की घटना के बाद पता चल रहा है कि दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में तमाम ऐसे नाइट क्लब, बार और रेस्त्रां हैं, जिनमें सुरक्षा के बुनियादी उपायों का अभाव है। यह स्थिति औसत भारतीयों के गैर जिम्मेदारी वाले रवैये को रेखांकित करने के साथ ही देश की बदनामी का भी कारण बन रही है।
HighLights
गोवा नाइट क्लब के संचालक थाईलैंड से लाए जा रहे हैं
स्थानीय प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई नहीं दिख रही है
यह संतोषजनक है कि भीषण आग की चपेट में आए गोवा के एक नाइट क्लब के संचालकों में शामिल लूथरा बंधुओं को थाईलैंड से देश लाया जा रहा है। इसके पहले इस क्लब के सह संचालक अजय गुप्ता समेत कुछ अन्य लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। अब इसके आसार हैं कि नियमों के विपरीत नाइट क्लब बनाने और उसे संचालित करने वाले इन लोगों को कठोर दंड का भागीदार बनाया जाएगा।
ऐसा जब भी हो, इससे वे 25 जिंदगियां वापस नहीं आ सकतीं, जो नाइट क्लब में आग लगने से खत्म हो गईं। इस घटना के बाद गोवा सरकार की ओर से कठोरता का तो परिचय दिया जा रहा है, लेकिन स्थानीय प्रशासन के उन लोगों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई होती नहीं दिख रही है, जिनकी लापरवाही के चलते नाइट क्लब एक तरह से अवैध ढंग से संचालित हो रहा था। घटना के बाद यह सामने आया कि इस नाइट क्लब के निर्माण से लेकर संचालन के तौर-तरीकों तक में हर स्तर पर नियमों का उल्लंघन किया गया। इसका मतलब है कि कोई यह देखने वाला नहीं था कि नियमों के खिलाफ कोई काम न हो।
यह पहली बार नहीं जब नियम-कानूनों के उल्लंघन के चलते इतने लोगों की जान गई हो और फिर शासन-प्रशासन ने सख्ती दिखानी शुरू की हो। चूंकि सदैव ही ऐसा होता है, इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि अपने देश में हर हादसे के बाद लकीर पीटने का काम कुछ ज्यादा ही होने लगा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि नियम-कानूनों के विरुद्ध निर्माण कराने अथवा किसी प्रतिष्ठान को संचालित करने वालों को कोई सही संदेश नहीं दिया जा पा रहा है।
कभी ऐसा सुनने को नहीं मिलता कि गलत तरीके से निर्माण करने-कराने वालों के साथ नियमों का पालन सुनिश्चित कराने में नाकाम लोगों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई की गई। यह एक तथ्य है कि गोवा ही नहीं, देश भर में निर्माण और सुरक्षा संबंधी नियमों की घोर उपेक्षा होती है। सार्वजनिक स्थलों में आग से बचाव के उपायों की तो कुछ ज्यादा ही अनदेखी होती है। इसी कारण रेस्त्रां, होटल, कारखानों से लेकर अस्पतालों तक में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं।
आखिर ऐसे नियम-कानून बनाने का क्या लाभ, जिन पर अमल ही न हो? अपने देश में कहने को हर क्षेत्र के लिए नियम-कानून हैं और उनका पालन कराने वाले भी, लेकिन रह-रह कर यही देखने को मिलता है कि उन पर सही तरह अमल नहीं होता।
गोवा की घटना के बाद पता चल रहा है कि दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में तमाम ऐसे नाइट क्लब, बार और रेस्त्रां हैं, जिनमें सुरक्षा के बुनियादी उपायों का अभाव है। यह स्थिति औसत भारतीयों के गैर जिम्मेदारी वाले रवैये को रेखांकित करने के साथ ही देश की बदनामी का भी कारण बन रही है।













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