विचार: भारतीय हितों को बल देने वाला दौरा... पीएम मोदी की जॉर्डन, ओमान और इथियोपिया यात्र
एक तथ्य यह भी है कि भारत-अफ्रीका वार्षिक व्यापार 100 अरब डालर का आंकड़ा पार कर चुका है और अब नई पहल इसे और विस्तार देगी। कुल मिलाकर, मोदी इन तीन देशों के दौरे पर एक तीर से कई निशान लगा रहे हैं। इन यात्राओं से प्राप्त संचित लाभ पश्चिमी एशिया और अफ्रीका में भारत के कद को और ऊंचाई देंगे।
HighLights
पीएम मोदी जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान के दौरे पर हैं
जॉर्डन आइमेक का प्रमुख भागीदार
श्रीराम चौलिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जार्डन, इथियोपिया और ओमान के दौरे पर हैं। सतही तौर पर देखें तो लगता है कि इन तीनों देशों का भारतीय विदेश नीति के लिए कोई विशेष महत्व या सुर्खियां बटोरने वाली अहमियत नहीं है। इसके बावजूद सच्चाई यही है कि कूटनीति समाचारों में सनसनी से प्रेरित नहीं होती है। मोदी की विदेश यात्राओं के गंतव्यों का चयन दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के आधार पर किया जाता है। इस संदर्भ में जार्डन और ओमान भारत के ‘लिंक एंड एक्ट वेस्ट’ रणनीति यानी कि पश्चिमी एशिया से जुड़ाव और सक्रिय रिश्ते बनाने की कवायद के लिहाज से अहम हैं। इसी तरह अफ्रीकी महाद्वीप में पैठ और ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की दृष्टि से इथियोपिया का भी उतना ही महत्व है।
मोदी सरकार ने आर्थिक कूटनीति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। इस उद्देश्य की पूर्ति में जार्डन के साथ साझेदारी बहुत उपयोगी होगी। भारत पहले से ही जार्डन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। मोदी की यात्रा के दौरान आयोजित हो रहा ‘व्यापार मंच’ इस साझेदारी को नए आयाम देगा। जार्डन के उर्वरक और परिधान क्षेत्र में भारतीय निवेश काफी बड़ा है और निर्यात में वृद्धि लाने वाले उद्यमों को बढ़ावा देना दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा। जार्डन के साथ द्विपक्षीय सहयोग से भी अधिक महत्व क्षेत्रीय सहभागिता में है।
जार्डन भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आइमेक) का प्रमुख भागीदार है। जार्डन खाड़ी देशों को रेल लाइनों के माध्यम से इजरायल के हाइफा बंदरगाह से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है, जो यूरोप के साथ व्यापार को सुगम बनाता है। दुर्भाग्यवश अक्टूबर 2023 से इजरायल और हमास के बीच घमासान युद्ध के चलते आइमेक को मूर्त रूप देने की योजना में विलंब हुआ है। हाल की गाजा शांति योजना के कुछ हद तक सफल होने के साथ यह उम्मीद बढ़ी है कि आइमेक आखिरकार लागू किया जा सकता है।
एक उदार अरब देश के रूप में जार्डन ने 1994 में ही इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य कर लिया था। यरूशलम में विवादित अल-अक्सा मस्जिद के संरक्षक के रूप में जार्डन प्रांतीय शांति बहाल करने और आइमेक को शुरू करने में मुख्य भूमिका अदा कर सकता है। वर्ष 2018 में मोदी और जार्डन के किंग अब्दुल्लाह ने दिल्ली में 1,500 इस्लामी विद्वानों, शिक्षाविदों और मौलवियों को संबोधित किया था और उदार इस्लाम को आगे लाकर अतिवाद और आतंकवाद को खारिज करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। इस धुरी पर भारत-जार्डन और करीब आएंगे, क्योंकि जार्डन पाकिस्तान से उत्पन्न हो रहे कट्टरपंथी जिहाद के खतरे से चिंतित है।
ओमान के साथ भारत की पुरानी सामरिक साझेदारी रही है जो खाड़ी क्षेत्र में सबसे पहले सिरे चढ़ी थी। भारत-ओमान मुक्त व्यापार समझौते से द्विपक्षीय कारोबार को नई ऊर्जा मिलेगी। वर्ष 2022 में संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत ने मुक्त व्यापार समझौता करके आर्थिक साझेदारी के मोर्चे पर ऊंची छलांग लगाई थी और ओमान के संग भी वैसी ही आशाएं हैं। याद रहे कि ओमान में भारतीय मूल के लगभग सात लाख प्रवासी रहते हैं और इसी ‘मानवीय सेतु’ के जरिये पारस्परिक वाणिज्यिक लेनदेन में वृद्धि होगी। प्रारंभिक योजनाओं में तो ओमान आइमेक से बाहर है, लेकिन ओमान के सलालाह, सोहार और दुक्म बंदरगाह अरब सागर तक सीधी पहुंच प्रदान करते हैं।
इन्हें होर्मुज से होकर गुजरने वाले जोखिम भरे मार्ग, जहां ईरान और उसके प्रतिद्वंद्वी अक्सर संघर्षरत रहते हैं, के विकल्प के रूप में आइमेक में एकीकृत किया जा सकता है। अप्रैल 2025 में ओमान और नीदरलैंड के बीच विश्व का सबसे पहला ‘तरल हाइड्रोजन गलियारा’ बनाने की पहल से ओमान स्वचालित रूप से आइमेक के ग्रीन कारिडोर में प्रवेश कर चुका है। भारतीय कंपनियां इन उपक्रमों की हिमायती और लाभार्थी हैं। ओमान भारत का मजबूत रक्षा साझेदार भी है। भारत की तीनों सेनाएं ओमान की सेनाओं के साथ संयुक्त अभ्यास करती हैं।
ओमान का दुक्म बंदरगाह भारतीय नौसेना के समुद्री दस्यु विरोधी अभियानों, वाणिज्यिक जहाजों पर हमलों से निपटने के प्रयासों और पश्चिमी हिंद महासागर में सामुद्रिक शक्ति के तौर पर उपस्थिति के लिहाज से महत्वपूर्ण है। भारतीय वायु सेना को ओमान से अपने जगुआर लड़ाकू विमानों के लिए अतिरिक्त पुर्जे भी मिलने वाले हैं। एक तटस्थ देश के रूप में ओमान भारत को चीन और अमेरिका के अलावा महत्वपूर्ण तीसरे बड़े खिलाड़ी के रूप में देखता है, जो उसकी विदेश नीति को संतुलित करने में मदद करेगा। यह विचार भारतीय रणनीति से मेल खाता है, क्योंकि भारत खाड़ी में स्वयं को प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में लगा है।
इथियोपिया की बात करें तो भारत उसका दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वह भारत को शुल्क मुक्त निर्यात करके कारोबार बढ़ाने का इच्छुक है। भारतीय कंपनियां वहां के शीर्ष तीन विदेशी निवेशकों में शामिल हैं। दवा एवं परिधान क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों की उपस्थिति निरंतर बढ़ने पर है। विनिर्माण में भी भारतीय कंपनियां खासी सक्रिय हैं, जो वहां बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन करती हैं। अफ्रीका में उद्योगीकरण और कौशल विकास के अभाव की पूर्ति भारत कर रहा है, जो चीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के शोषक और कर्ज के जाल में फंसाने वाले उत्पीड़क देश के रवैये से उलट है।
इथियोपिया में ही अफ्रीकी संघ का मुख्यालय है और वह ब्रिक्स का भी पूर्ण सदस्य बन चुका है। वर्ष 2011 में इथियोपिया पहले ही भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर चुका है और अदीस अबाबा में मोदी की उपस्थिति अगले शिखर सम्मेलन की नींव रखेगी। एक तथ्य यह भी है कि भारत-अफ्रीका वार्षिक व्यापार 100 अरब डालर का आंकड़ा पार कर चुका है और अब नई पहल इसे और विस्तार देगी। कुल मिलाकर, मोदी इन तीन देशों के दौरे पर एक तीर से कई निशान लगा रहे हैं। इन यात्राओं से प्राप्त संचित लाभ पश्चिमी एशिया और अफ्रीका में भारत के कद को और ऊंचाई देंगे।
(लेखक जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं)













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