आस्ट्रेलियाई शहर सिडनी के समुद्र तट पर आतंकियों ने जिस तरह यहूदी समुदाय के लोगों को निशाना बनाया और दस से अधिक लोगों की जान ले ली, उसने जिहादी आतंक के खतरे को खौफनाक रूप में फिर से सामने खड़ा कर दिया। चूंकि हमलावरों की पहचान हो गई है, इसलिए न तो इसमें संदेह रह जाता है कि वे कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा से ग्रस्त थे और न ही इसमें कि उनका मकसद यहूदियों को ही निशाना बनाना था, क्योंकि उन पर तब हमला किया गया जब वे हनुक्का पर्व मनाने के लिए बड़ी संख्या में समुद्र तट पर एकत्रित हुए थे।

आस्ट्रेलिया सरकार ने इस दिल दहलाने वाले हमले को आतंकी कृत्य तो करार दिया, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उस पर यह आरोप लग रहा है कि उसने उन चरमपंथी इस्लामिक समूहों की गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया, जो यहूदियों को धमकाने में लगे हुए थे। इस आतंकी घटना को गाजा में हमास और इजरायल के बीच चली लंबी लड़ाई के परिणाम के रूप में देखा जा रहा है।

इस लंबे संघर्ष ने दुनिया भर में यहूदियों के खिलाफ एक माहौल बनाया। यह माहौल चरमपंथी इस्लामिक समूहों की ओर से ही बनाया गया और इसके चलते अमेरिका में भी यहूदियों पर हमले हुए। इसके अतिरिक्त, पश्चिम के अन्य देशों में भी यहूदियों को निशाना बनाने की छिटपुट घटनाएं हुईं, लेकिन यह कहना समस्या का सरलीकरण करना होगा कि गाजा में इजरायल और हमास के बीच के संघर्ष ने ही कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों को उग्र होने का अवसर दिया है।

यह ध्यान रहे कि पश्चिम के साथ-साथ विश्व के अन्य अनेक देशों में एक लंबे समय से अतिवादी इस्लामिक विचारधारा वाले समूह आतंकी हमले करते रहे हैं। उनमें बड़ी संख्या में लोग मारे भी गए हैं। यह स्वाभाविक है कि आस्ट्रेलिया में हुए आतंकी हमले की वैश्विक स्तर पर निंदा होगी और शोक-संवेदनाएं व्यक्त की जाएंगी, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। दुनिया भर में जिहादी आतंक का खतरा जिस तरह उभर रहा है, उसे देखते हुए विश्व समुदाय को इस खतरे का मिलकर सामना करने की आवश्यकता है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आतंकी घटनाओं का सिलसिला कायम रहने के बावजूद वैश्विक स्तर पर आतंकवाद को परिभाषित नहीं किया जा पा रहा है। इससे भी खराब बात यह है कि आतंकी संगठनों को सहयोग, समर्थन एवं संरक्षण देने वाले देशों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने से बचा जा रहा है। ऐसे देशों में सबसे ऊपर पाकिस्तान का नाम आता है।

विश्व समुदाय को यह समझना होगा कि आतंकवाद का सामना केवल आतंकी गतिविधियों की भर्त्सना करके नहीं किया जा सकता। इस आतंकवाद से निपटने के लिए विश्व समुदाय को एकजुटता के साथ-साथ आवश्यक इच्छाशक्ति का भी परिचय देना होगा।