परिचय दास। बिहार से भाजपा विधायक नितिन नवीन को कार्यकारी भाजपा अध्यक्ष बनाया जाना केवल एक संगठनात्मक पदोन्नति नहीं है, बल्कि भाजपा के भीतर चल रही पीढ़ीगत, क्षेत्रीय और रणनीतिक पुनर्संरचना की अभिव्यक्ति है। यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है, जब पार्टी लगातार तीसरी बार केंद्र में सत्ता संभालने के बाद अब दीर्घकालिक राजनीतिक स्थिरता, नेतृत्व के उत्तराधिकार और संगठनात्मक विस्तार की नई चुनौतियों से जूझ रही है। नितिन की राजनीति अपेक्षाकृत शांत, संगठन-केंद्रित और कार्यकर्ता-आधारित रही है।

भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में ऐसे नेताओं की भूमिका अक्सर निर्णायक होती है, क्योंकि पार्टी स्वयं को ‘कैडर आधारित’ संगठन के रूप में प्रस्तुत करती रही है। नितिन का उभार इस दावे को फिर से पुष्ट करता है कि भाजपा में केवल चुनाव जीतने वाले चेहरों को ही नहीं, बल्कि संगठन को चलाने वाले लोगों को भी निर्णायक भूमिकाएं दी जाती हैं। नितिन का चयन यह भी संकेत देता है कि भाजपा अब बिहार को केवल गठबंधन राजनीति के संदर्भ में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय नेतृत्व निर्माण के केंद्र के रूप में भी देख रही है। इस निर्णय का एक और महत्वपूर्ण पहलू पीढ़ीगत परिवर्तन से जुड़ा है।

भाजपा की पहली पीढ़ी का नेतृत्व, जो राम जन्मभूमि आंदोलन, मंडल के बाद की राजनीति और पिछली सदी के अंतिम दशक की वैचारिक लड़ाइयों से निकला था, अब धीरे-धीरे हाशिये पर जा रहा है। दूसरी पीढ़ी, जिसने 2014 के बाद सत्ता और संगठन दोनों को संभाला, अब परिपक्वता के चरण में है। ऐसे में तीसरी पीढ़ी के नेताओं को आगे लाने की आवश्यकता स्वाभाविक है। नितिन तीसरी पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में देखे जा सकते हैं, जो न तो अतीत की वैचारिक लड़ाइयों के बोझ से दबे हैं और न ही केवल सत्ता के सुख से परिभाषित हैं।

भाजपा आज जिस दौर में है, वहां सबसे बड़ी चुनौती विचारधारा को नए संदर्भों में प्रासंगिक बनाए रखने की है। राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक अस्मिता और विकास-ये तीनों स्तंभ भाजपा की राजनीति के केंद्र में रहे हैं, लेकिन बदलते सामाजिक और आर्थिक संदर्भों में इनकी व्याख्या भी बदलनी पड़ रही है। किसी भी बड़े दल में नेतृत्व परिवर्तन या नए पदों का सृजन आंतरिक संतुलन को प्रभावित करता है। नितिन का उभार उन नेताओं के लिए भी एक संदेश है, जो लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह संदेश स्पष्ट है कि संगठन में निरंतर सक्रियता, अनुशासन और नेतृत्व के प्रति निष्ठा का पुरस्कार मिलता है।

विपक्षी दल अक्सर भाजपा पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि पार्टी व्यक्ति-केंद्रित होती जा रही है और संगठनात्मक लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। ऐसे में कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे पद का सृजन और उस पर अपेक्षाकृत कम विवादित, संगठनात्मक पृष्ठभूमि वाले नेता की नियुक्ति, इन आरोपों का आंशिक उत्तर भी है। यह भाजपा की उस छवि को मजबूत करता है, जिसमें वह स्वयं को एक ‘संस्था’ के रूप में प्रस्तुत करती है, न कि केवल व्यक्तियों के समूह के रूप में। इस निर्णय का सामाजिक अर्थ भी है।

नितिन नवीन जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से आते हैं, वह भाजपा के उस प्रयास को दर्शाता है, जिसमें वह अपनी सामाजिक आधारभूमि को लगातार विस्तारित करना चाहती है। पिछले एक दशक में पार्टी ने विविध सामाजिक समूहों को नेतृत्व में स्थान देने की कोशिश की है। नितिन का चयन इसी सामाजिक पुनर्संयोजन का हिस्सा माना जा सकता है। कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद अक्सर पूर्ण राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका की तैयारी के रूप में भी देखा जाता है। यदि नितिन इस भूमिका में सफल रहते हैं तो वे शीर्ष नेतृत्व में एक स्थायी स्थान बना सकते हैं। यह निर्णय बताता है कि भाजपा केवल वर्तमान चुनावी गणित में नहीं उलझी है, बल्कि आने वाले दशक की राजनीति को ध्यान में रखकर अपने नेतृत्व और संगठन को ढाल रही है। नितिन नवीन का उभार इसी दीर्घकालिक सोच का परिणाम और प्रतीक है।

पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि जिन दलों में संगठन कमजोर हुआ, वहां सत्ता टिकाऊ नहीं रह सकी। कांग्रेस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। भाजपा इस अनुभव से सीखते हुए संगठन को निरंतर सक्रिय, अनुशासित और भविष्य के लिए तैयार रखने की रणनीति पर काम कर रही है। नितिन ऐसे समय राष्ट्रीय भूमिका में आए हैं, जब भाजपा को कई स्तरों पर नए प्रश्नों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक विकास की गति, रोजगार, सामाजिक असंतोष, संघीय ढांचे पर उठते सवाल और विपक्ष की धीरे-धीरे बनती एकजुटता।

इसके लिए संगठनात्मक स्तर पर निरंतर संवाद, फीडबैक और रणनीतिक लचीलापन आवश्यक है। ऐसे समय जब राजनीति में ध्रुवीकरण एक स्थायी स्थिति बनता जा रहा है, तब भाजपा द्वारा एक संयमित और संगठन-केंद्रित चेहरा सामने लाना पार्टी की छवि-संतुलन की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। यह उन मतदाताओं के लिए भी एक संदेश है, जो तीखे राजनीतिक संघर्ष से ऊब चुके हैं और स्थिरता, प्रबंधन तथा प्रशासनिक दक्षता को महत्व देते हैं। भाजपा की ताकत हमेशा से उसका कैडर रहा है और कैडर को सक्रिय रखने के लिए ऐसे उदाहरण आवश्यक होते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि नितिन नवीन इस भूमिका को किस तरह परिभाषित करते हैं।

(लेखक नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)