[ संजय गुप्त ]: लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवन घाटी में चीनी सेना ने जो हरकत की उसे भारत भूल नहीं सकता। भूलना भी नहीं चाहिए, क्योंकि चीन की धोखेबाजी के कारण हमारे 20 जवान बलिदान हुए। भारत और साथ ही भारतीय सेना की यह नैतिक सोच रहती है कि जब तक उकसाया न जाए तब तक दूसरे पक्ष पर हमला न किया जाए। इस सोच से पूरी दुनिया परिचित है और इसीलिए वह चीन के इस आरोप पर यकीन नहीं कर रही कि गलवन घाटी की घटना के लिए भारत जिम्मेदार है। विश्व समुदाय इसी नतीजे पर पहुंचा है कि चीन ने शरारत की।

चीन भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में है

चीन अभी भी शरारत पर आमादा है और एलएसी पर यथास्थिति कायम करने को लेकर बनी सहमति पर अमल करने से इन्कार कर रहा है। वह एलएसी पर न केवल अतिक्रमण करना चाह रहा है, बल्कि अपने सैनिकों का जमावड़ा बढ़ा रहा है। उसके जवाब में भारत को भी ऐसा ही करना पड़ रहा है। माना जा रहा कि चीन गलवन घाटी में सामरिक बढ़त हासिल करने के लिए भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में है। गलवन घाटी के साथ-साथ वह एक अन्य इलाके पैंगोंग सो में भी अतिक्रमण करने की ताक में है। इसी तरह वह दौलत बेग ओल्डी इलाके में यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा है।

चीन की चिंता का कारण है दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को सड़क मार्ग से जोड़ना

भारत ने काराकोरम हाईवे के बेहद करीब दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को न केवल आधुनिक बना दिया है, बल्कि उसे हर मौसम में इस्तेमाल होने वाले सड़क मार्ग से भी जोड़ रहा है। यही चीन की चिंता का कारण है। चीन इसके बावजूद एलएसी पर यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा कि 1962 में हथियाया गया इलाका अभी भी उसके कब्जे में है। इसके अलावा उसके पास गुलाम कश्मीर का वह हिस्सा भी है जिसे पाकिस्तान ने उसे सौंप दिया था। चीन सीमा विवाद सुलझाने की बात तो करता है, लेकिन उसका इरादा इसे सुलझाने का बिल्कुल भी नहीं जान पड़ता।

चीन की हरकतों के चलते कांग्रेस मोदी सरकार को घेरने में जुटी है

चीन की हरकतों के चलते भारत में यह भाव प्रबल हो रहा है कि उसे सबक सिखाया जाना चाहिए, लेकिन इस सबके बीच कांग्रेस मोदी सरकार को घेरने में जुटी है। उसके नेता और खासकर राहुल गांधी सरकार पर उलटे-सीधे आरोप लगाने के जोश में यह भूल रहे हैं कि चीन से सीमा विवाद के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार यदि कोई है तो वह कांग्रेस नेतृत्व।

नेहरू ने चीन के खतरनाक मंसूबों की अनदेखी की

नेहरू ने चीन के खतरनाक मंसूबों की न केवल अनदेखी की, बल्कि 1962 में उसके द्वारा कब्जाई गई जमीन को हासिल करने की कोई कोशिश भी नहीं की। राहुल गांधी ऐसे-ऐसे आरोप उछालने में लगे हुए हैं जिनका कोई सिर-पैर नहीं। ऐसा लगता है कि वह उस अवतार में आ गए हैं जो उन्होंने राफेल विवाद को तूल देते वक्त अपनाया था।

राहुल गांधी देश के साथ कर रहे आत्मघाती व्यवहार

वह ठीक वैसा ही विचित्र और राजनीतिक तौर पर आत्मघाती व्यवहार कर रहे हैं जैसा सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के वक्त कर रहे थे। वह ऐसा दिखा रहे हैं कि एलएसी का सच केवल उन्हें ही पता है। उनके रवैये से तो सबसे ज्यादा खुशी चीन को ही होगी। यह दयनीय है कि जब देश चीन की इस चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट हो रहा तब राहुल गांधी उसके मनमाफिक बातें कर रहे हैं।

चीन भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है और देश में उसका अच्छा-खासा निवेश भी है 

चीन भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार तो है ही, देश में उसका अच्छा-खासा निवेश भी है । आधारभूत ढांचे के निर्माण से लेकर बड़े स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने निवेश कर रखा है। इसके अलावा तमाम भारतीय उद्योग कच्चे माल, उपकरणों के लिए उस पर निर्भर हैं। चीन को जवाब देने के मामले में यह बात बार-बार उठ रही है कि हमें उस पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी, लेकिन इसे समझने की जरूरत है कि यह काम रातोंरात नहीं हो सकता। भारतीय उद्योग जगत जिस तरह चीन पर निर्भर है उसे देखते हुए यदि जल्दबाजी में कोई कदम उठा लिया जाता है तो वह हमारे लिए ही नुकसानदायक हो सकता है।

चीनी वस्तुओं के बहिष्कार से भारतीय उद्योग जगत के सामने नई समस्या खड़ी हो सकती है

साफ है कि उन भावनाओं पर लगाम लगाना होगा जिनके तहत यह माहौल बनाया जा रहा कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार तत्काल प्रभाव से शुरू कर दिया जाए। ऐसा करने से लॉकडाउन से बाहर आ रहे भारतीय उद्योग जगत के सामने एक नई समस्या खड़ी हो सकती है-कच्चे माल और उपकरणों के अभाव की।

भारत सरकार चीन पर निर्भरता कम करने के लिए ठोस रणनीति बनाए

वास्तव में आवश्यकता इसकी है कि भारत सरकार चीन पर निर्भरता कम करने के लिए कोई ठोस एवं दीर्घकालिक रणनीति बनाए। इस मामले में भारतीय उद्योग जगत को भी अपने आपको इसके लिए तैयार करना होगा कि आने वाले समय में चीन पर नहीं निर्भर रहना। भारतीय उद्योगों और स्टार्टअप को अपने पैरों पर खड़ा होने के साथ ही चीनी कंपनियों और निवेशकों के विकल्प तलाशने होंगे। आज चीन से ऐसा बहुत सामान आ रहा है जिनके निर्माण की क्षमता भारत के पास है। ऐसे सामानों की पहचान करके जल्द उन्हें देश में ही बनाने की योजना शुरू की जानी चाहिए। आखिर इसका क्या मतलब कि घरेलू जरूरत की वस्तुएं, बिजली की झालर, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां चीन से मंगाई जाएं? वित्त मंत्री ने हाल में इसकी ओर ही इशारा किया था।

चीन की ललकार का प्रतिकार करने के लिए हर भारतीय को तैयार रहना चाहिए

चूंकि चीन एक तरह से भारत को ललकार रहा है इसलिए उसका प्रतिकार करने के लिए हर भारतीय को तैयार रहना चाहिए। उसे अपने अंदर एक जज्बा पैदा कर यह बीड़ा उठाना होगा कि अब चीन के बगैर ही काम चलाना है। इसी के साथ इस पर भी विचार करना होगा कि चीन हमसे आगे क्यों निकल गया? उसके आगे निकलने में उसकी आर्थिक-व्यापारिक नीतियों के साथ वहां के लोगों के समर्पण और अनुशासन की भी एक बड़ी भूमिका है।

लोकतंत्र हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन स्वच्छंदता नहीं

भारत के उत्थान में समर्पण और अनुशासन का परिचय हम भारतीयों को भी देना होगा। नि:संदेह यह गर्व की बात है कि हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन यह भी सही है कि औसत भारतीय नियम-कानूनों के पालन के प्रति उतना सजग-सचेत नहीं जितना उसे होना चाहिए। लोकतंत्र हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन स्वच्छंदता नहीं।

आत्मनिर्भर भारत अभियान चीन का मुकाबला करने में सहायक होगा

हमें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग होने के साथ ही अपने काम को कुशलता से करने के मामले में अपना मिजाज बदलने की जरूरत है। मिजाज में बदलाव हमारे राजनीतिक वर्ग में भी आना चाहिए, क्योंकि तभी चीजें तेजी से बदलेंगी और वह माहौल निर्मित होगा जो आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने और चीन का मुकाबला करने में सहायक होगा।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]