किसी भी राष्ट्र की प्रगति या दुर्गति के लिए वहां निवास करने वाली जनता पूरी तरह उत्तरदायी होती है। कोई भी राष्ट्र तभी खुशहाल और शक्तिशाली बन सकता है जब जनता के दिलों में अपने देश के प्रति प्रेम हो, क्योंकि अपने देश से प्रेम करने वाली जनता राष्ट्रहित में हर त्याग के लिए हमेशा तैयार रहती है। यदि लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना का अभाव हो तो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता है, बल्कि देश में हमेशा अशांति फैलती रहेगी। ऐसे राष्ट्र में सुख-संपन्नता की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। अपने देश में कानून-व्यवस्था का पालन नहीं करने वाला व्यक्ति राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता। इसलिए हर व्यक्ति का पहला कर्तव्य राष्ट्रहित में पूर्ण निष्ठा रखना और हर हाल में उसका पालन करना है। कोई भी व्यक्ति राष्ट्र से ऊपर नहीं हो सकता है। हर व्यक्ति राष्ट्र के लिए होता है। राष्ट्र किसी व्यक्ति के लिए नहीं होता। हालांकि किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी जनता से होती है। यानी जनता का चरित्र, राष्ट्र के चरित्र को रेखांकित करता है। जिस समाज में नफरत और वैमनस्य का बोलबाला होगा, विश्व में उस देश की छवि नकारात्मक ही होगी। इसके विपरीत जहां लोग आपसी मतभेदों को भुलाकर समानता और त्याग का भाव रखेंगे, उनके देश की छवि सकारात्मक होगी। राष्ट्र प्रेम का मूलमंत्र यही है कि समाज के हर व्यक्ति को समानता का भाव रखना चाहिए। कोई व्यक्ति अपने देश से कितना प्रेम करता है, इसे साबित करने के लिए जरूरी नहीं कि वह अपनी जान की कसम खाए।
जहां जनता के बीच जितना ज्यादा आपसी प्रेम होगा, वहां राष्ट्र प्रेम की भावना उतनी ज्यादा मजबूत और दृढ़ होगी। प्रेम के अभाव में मनुष्य का कोई अस्तित्व ही नहीं है और न ही आपसी प्रेम के बिना राष्ट्र प्रेम की कल्पना की जा सकती है। प्रेम ही वह चीज है, जो इंसान को इंसान से और पूरे देश को जोड़कर रखने में समर्थ है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जब पड़ोसी भूखा मरता हो, तब मंदिर में भोग चढ़ाना पुण्य नहीं, बल्कि पाप है। जब मनुष्य दुर्बल और क्षीण हो, तब हवन में घी जलाना अमानवीय कर्म है। वर्तमान में लोग मैं और मेरा के द्वंद्व में फंस गए हैं। कबीरदास कहते हैं कि जब तक हम दो होंगे, तब तक किसी तीसरे की गुंजाइश बनी रहेगी यानी घृणा, विद्वेष और सांप्रदायिकता की। व्यक्ति, समाज और देश सभी मामलों में कबीरदास की यह बात सत्य साबित होती है।
[ महर्षि ओम ]