मानवीय संबंध
मानवीय संबंध रक्त के भी होते हैं और उससे बाहर भी। यह मन की उदारता और दूर तक देखने की दृष्टि है, जो संबंधों को व्यापक बनाती है।
मानवीय संबंध रक्त के भी होते हैं और उससे बाहर भी। यह मन की उदारता और दूर तक देखने की दृष्टि है, जो संबंधों को व्यापक बनाती है। अनेक लोगों के साथ मन की भावनाओं को जोड़ना संकीर्णताओं से उबारता है। इससे नित नवीन प्रेरणाओं के अवसर उपलब्ध होते हैं और जीवन को समझने में सहायता मिलती है। जब सर्व मंगल की कामना जन्म लेती है, तो स्वयं का कल्याण उसी में निहित होता है। यह भावना जितनी व्यापक होती जाती है, स्वहित उतना ही दृढ़ होता जाता है। मनुष्य का यह स्वाभाविक गुण है कि वह अपने सुख और दुख दोनों को ही बांटना चाहता है। सुख बांटने से बढ़ता है और दुख कम होता है। आज बड़ी संख्या में लोगों की समस्या है कि दुख किसे सुनाएं और सुख की अनुभूतियों को कैसे प्रकट करें। अन्य लोगों की ईष्र्या के कारण सुख की अभिव्यक्ति और उपहास के कारण दुख बताने से लोग प्राय: बचते हैं। इससे वे मानसिक ग्रंथियों का शिकार हो जाते हैं। जीवन असहज हो जाता है। यदि संबंध मजबूत और विस्तृत हों, तो इससे बचा जा सकता है।
संबंध जीवन को दिलचस्प बनाते हैं, किन्तु ऐसा तभी हो पाता है जब उन्हें सहेजने की भावना मन में हो। वास्तव में संबंध बनाना कोई कला नहीं है। किसी भी संबंध में जब निश्छल मन जुड़ता है, तभी वह सार्थक होता है। मन के संबंध के लिए किसी के गुणों को जानना आवश्यक है। मनुष्य का पहला और प्रमुख गुण है कि उसे भी परमात्मा ने ही रचा है। परमात्मा ही उसका भी पालन-पोषण कर रहा है। यह समानता एक बहुत बड़ा आधार है मानवीय संबंधों का। मन जब इस आधार को ग्रहण कर लेता है, तो उसकी उदारता सहज ही प्रकट होने लगती है। इस उदारता से ही संबंध बनते और स्थिर रहते हैं। जब तक यह मूल दृष्टि नहीं है कि सारे संबंध सदैव समस्या बने रहेंगे। मनुष्य इसी में उलझा रहेगा और जीवन विषम बनता जाएगा। निकट के अथवा रक्त संबंध भी दुखदायी साबित होंगे। रक्त संबंधी जैसी अवधारणा तो मनुष्य की रची हुई है। उसे याद ही नहीं है कि ऐसे कितने जीवन वह जी चुका है। कितने ही घर थे, कितने ही माता पिता, भाई बहन, पुत्र किस किस जीवन में रहे हैं, जो कल था वह आज नहीं है,जो आज है वह कल नहीं होगा, किन्तु अंतर्चेतना और उसकी दृष्टि रहेगी, जिसे जाग्रत करना होगा तभी सारा संसार अपना लगने लगेगा।
[ डॉ. सत्येंद्रपाल सिंह ]
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