प्रो. गौरव वल्लभ। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का सफर परिवर्तनकारी रहा है। 2017 में शुरू हुई इस व्यवस्था को आलोचकों ने ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहकर खारिज करने का भी प्रयास किया और इस पर नागरिकों तथा व्यवसायों, दोनों पर बोझ डालने का आरोप लगाया। वास्तव में असली ‘गब्बर सिंह टैक्स’ जीएसटी से पहले की अव्यवस्थित व्यवस्था थी। उत्पाद शुल्क, वैट और सेवा करों के एक खंडित जाल ने अकुशलता और बढ़ी हुई लागतों को जन्म दिया था। जीएसटी लागू होने के पहले ट्रक राज्य की सीमाओं पर खड़े रहते थे, छोटी कंपनियां कई फाइलिंग में ही उलझी रहती थीं और उपभोक्ताओं को इसकी कीमत चुकानी पड़ती थी।

जीएसटी ने इसकी जगह देश में एक एकीकृत कर प्रणाली को संभव बनाया, जिससे आवश्यक वस्तुओं पर टैक्स कम हुए और एक अधिक तर्कसंगत ढांचा तैयार हुआ। अब जीएसटी 2.0 के साथ भारत ने एक निर्णायक कदम आगे बढ़ाया है, टैक्स स्लैब को सुव्यवस्थित किया है और दरों में कटौती की है। शुरुआत में जीएसटी में चार स्लैब (5, 12, 18, 28 प्रतिशत) थे। ऐसा उन राज्यों के बीच आम सहमति बनाने के लिए किया गया था, जो नई व्यवस्था के तहत होने वाले संभावित राजस्व नुकसान को वहन करने के लिए तैयार नहीं थे।

इस समझौते ने भारत को जीएसटी युग में प्रवेश करने में मदद की, लेकिन इसने जटिलता और विवादों को भी जन्म दिया, जो जीएसटी की सरलता के मूल दर्शन के विपरीत थे। जीएसटी 2.0 एक स्वाभाविक सुधार का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें दो मुख्य स्लैब (5 और 18 प्रतिशत) और विलासिता तथा अहितकर वस्तुओं के लिए 40 प्रतिशत की कर दर की व्यवस्था की गई है।

यह सुधार भी सही समय पर किया गया है। वैश्विक अनिश्चितताएं और टैरिफ युद्ध व्यवसायों के लिए बाधाएं पैदा कर रहे हैं। अनुपालन बोझ एवं कार्यशील पूंजी की रुकावटों को कम करके और बड़े पैमाने पर उपभोग तथा श्रम-प्रधान क्षेत्रों में टैक्स दरों को आसान बनाकर जीएसटी 2.0 आपूर्ति-पक्ष को ठीक उसी समय सहायता प्रदान करता है जब फर्मों को इसकी आवश्यकता है। अन्य संरचनात्मक सुधारों के साथ जीएसटी 2.0 वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत को एक प्रतिस्पर्धी और स्थिर उत्पादन आधार के रूप में स्थापित करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है।

रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएं और बड़े पैमाने पर उपभोग की जाने वाली वस्तुएं पांच प्रतिशत, जबकि प्रमुख औद्योगिक इनपुट 18 प्रतिशत कर के दायरे में आ गई हैं, जिससे घरों और फर्मों, दोनों की लागत कम होगी। दूध, पनीर और चपाती जैसी मुख्य वस्तुओं के साथ-साथ 33 से अधिक जीवनरक्षक दवाओं को पूरी तरह से कर मुक्त कर दिया गया है। आटोमोबाइल, सीमेंट और इलेक्ट्रानिक्स पर करों में भारी कटौती की गई, जिससे क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा।

त्योहारी सीजन से पहले इसे लागू करने से घरेलू खर्च पर भी अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित होता है। एसबीआइ रिसर्च का अनुमान है कि औसत प्रभावी जीएसटी दर अब शुरुआत के 14.4 प्रतिशत से घटकर लगभग 9.5 प्रतिशत हो गई है। जीएसटी 2.0 के तहत जिन 453 वस्तुओं की दरों में बदलाव किया गया है, उनमें से 413 (91 प्रतिशत) वस्तुओं के कर में कमी आई है, और लगभग 295 वस्तुओं पर कर दर पहले के 12 प्रतिशत से घटकर 5 प्रतिशत या शून्य हो गई है, जो परिवारों को राहत देने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।

जीएसटी सुधारों के कारण कुल अतिरिक्त सकल मांग 1.98 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। समवर्ती आयकर सुधारों के साथ कुल अतिरिक्त मांग 5.31 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है, जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.6 प्रतिशत की वृद्धि करेगी। इससे संभावित रूप से वित्त वर्ष 2025-26 में जीडीपी वृद्धि 6.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2026-27 में 7 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।

दरों में कटौती के अलावा जीएसटी 2.0 कर प्रणाली के काम करने के तरीके को बेहतर बनाने पर भी केंद्रित है। पंजीकरण को स्वचालित बना दिया गया है, रिफंड की प्रक्रिया तेज हो गई है और अस्थायी इनपुट क्रेडिट की अनुमति दी गई है, जिससे उद्यमों के लिए कार्यशील पूंजी पर दबाव घटा है। उल्टे शुल्क ढांचे जैसे लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों का भी समाधान किया गया है, जिससे उन क्षेत्रों को राहत मिली है, जो पहले लागत संबंधी नुकसान झेल रहे थे। एमएसएमई के लिए कागजी कार्रवाई का बोझ घटा है।

सुधार एक सतत प्रक्रिया है। जीएसटी स्वयं 2017 से पहले की खंडित प्रणाली की तुलना में एक सुधार था और जीएसटी 2.0 सरलता तथा निष्पक्षता की ओर एक और कदम है। जैसे-जैसे इसका अनुपालन होगा, नीतिगत सुधार और भी बेहतर हो सकेंगे। जीएसटी 2.0 भारत में एक सरलीकृत, अधिक निष्पक्ष और विकासोन्मुखी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

कर दरों को सोच-समझकर युक्तिसंगत बनाकर और व्यापक संरचनात्मक एवं प्रक्रियागत सुधारों के माध्यम से घरेलू क्रय शक्ति बढ़ाकर जीएसटी 2.0 उपभोग, औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिकी को मजबूती से बढ़ावा देगा। यह समावेशी और आत्मनिर्भर भारत के लिए एक निर्णायक उत्प्रेरक के रूप में भी कार्य करेगा, जो वर्तमान भू-राजनीतिक परिवेश में आर्थिक गति को बढ़ावा देने में सहायक है।

(लेखक प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के अंशकालिक सदस्य और वित्त के प्रोफेसर हैं)