फरीदाबाद के आतंकी माड्यूल में शामिल और दिल्ली में लाल किले के निकट कार में धमाका कर 15 लोगों की जान लेने वाले आतंकी उमर का जो सनसनीखेज वीडियो सामने आया, वह इसकी ही पुष्टि कर रहा है कि वह एक ऐसा आत्मघाती हमलावर बन गया था, जो मजहबी कट्टरता से बुरी तरह ग्रस्त था। इस वीडियो में वह केवल आत्मघाती हमले को जायज ही नहीं ठहरा रहा है, बल्कि इस पर भी जोर दे रहा है कि इस्लाम की उस मान्यता को सही से नहीं समझा जा रहा, जिसके तहत आत्मघाती हमलों को गैर इस्लामी कृत्य कहा जाता है।

उमर आत्मघाती हमलों को जायज बताने वाला पहला आतंकी नहीं। दुनिया भर के आतंकी संगठन आत्मघाती हमलों को जायज बताने के साथ उसे जिहाद यानी एक तरह के मजहबी कृत्य की संज्ञा देते रहते हैं। वास्तव में इसी कारण उनके आत्मघाती हमले थम नहीं रहे हैं। आतंकी डाक्टर उमर के सनसनीखेज वीडियो ने उन इस्लामी संगठनों और मजहबी विद्वानों की चुनौती बढ़ा दी है, जो इस्लामी मान्यताओं का हवाला देकर आतंकवाद के खिलाफ फतवे जारी करने के साथ मुस्लिम युवाओं को मजहबी कट्टरता से बचाने के जतन करते रहे हैं। अब उनका काम और कठिन होगा, लेकिन यह कठिनाई केवल उनके सामने ही नहीं। सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों के सामने भी यही कठिनाई खड़ी हो गई है।

सरकारें और उनका तंत्र एक बार को उन मुस्लिम युवाओं को तो मजहबी कट्टरता का शिकार होने से बचा सकता है, जो अशिक्षित हैं, लेकिन उमर जैसे उच्च शिक्षित युवाओं को सही राह पर लाना एक टेढ़ी खीर है, क्योंकि वे इस्लामी मान्यताओं की अपनी तरह से व्याख्या करने के साथ उसे ही सही बताने पर बल दे रहे हैं। यह सहज ही समझा जा सकता है कि उमर जैसी कट्टरता से उसके साथी भी ग्रस्त होंगे।

यह कोई नई-अनोखी बात नहीं कि जिहादी आतंक एक कट्टर विचारधारा की उपज है। ऐसे आतंक का सामना केवल पुलिस और खुफिया एजेंसी नहीं कर सकतीं। सच तो यह है कि विश्व में कहीं पर कर भी नहीं पा रही हैं। इसका कारण यह है कि जिहादी आतंक से निपटने के तौर-तरीकों पर आम राय नहीं। दुर्भाग्य से भारत में भी ऐसा ही है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि फरीदाबाद आतंकी माड्यूल का भंडाफोड़ होने के बाद से कई ऐसे बयान सामने आ चुके हैं, जो इस माड्यूल में शामिल डाक्टरों के आतंकी बनने के लिए सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराते दिखे। ऐसे गैर जिम्मेदारना बयान केवल सुरक्षा एजेंसियों की समस्या बढ़ाने वाले ही नहीं, बल्कि आतंक की राह पर चलने वालों का दुस्साहस बढ़ाने वाले भी हैं। यदि मजहबी कट्टरता से पनपे आतंकवाद का सामना करना है, तो देश के राजनीतिक वर्ग को उससे निपटने के उपायों पर आम राय कायम करनी ही होगी।