डॉ. सुरजीत सिंह। अमेरिका प्रथम की मुहिम के साथ चलने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हर निर्णय चाहे वह अंतरराष्ट्रीय समझौता हो, व्यापार नीति हो या सुरक्षा निर्णय दूसरों पर थोपने की नीति पर केंद्रित रहता है। वैश्वीकरण की गति को धीमा करने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने भारत सहित विश्व के अन्य देशों पर टैरिफ लगाकर व्यापार युद्ध की स्थिति पैदा कर दी। ट्रंप प्रशासन उन अनेक बहुपक्षीय संस्थाओं की या तो फंडिंग कम कर रहा है या उनसे बाहर निकलने की धमकियां देकर उनकी भूमिका को कमजोर करने का प्रयास कर रहा है, जो कथित तौर पर अमेरिका के हित में कार्य नहीं कर रही हैं।

उनकी इस नीति का असर केवल बाहरी दुनिया तक सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका के भीतर भी इसका व्यापक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ रहा है। व्यापार युद्ध ने न केवल विदेशी व्यापार को झटका दिया है, बल्कि अमेरिका के घरेलू बाजार में मूल्य वृद्धि को भी बढ़ावा दिया है।

अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के प्रतिरोध में अन्य देशों द्वारा लगाए जाने वाले जवाबी टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति प्रभावित हो रही है। अमेरिका में न सिर्फ रोजमर्रा की वस्तुएं, बल्कि इलेक्ट्रानिक उपकरण, खिलौने, कपड़े, मशीनें आदि के महंगे होने से अमेरिका में मार्च 2025 के बाद से आयातित सामान की कीमतें लगभग चार प्रतिशत बढ़ी हैं, जबकि घरेलू सामान की कीमतें लगभग दो प्रतिशत बढ़ गई हैं। बढ़ती महंगाई को देखते हुए ट्रंप ने 200 से अधिक वस्तुओं पर से टैरिफ कम करने का फैसला किया है।

अमेरिका में उद्योगों के लिए कच्चा माल महंगा होने से बढ़ती उत्पादन लागत से नौकरियां ही नहीं घट रही हैं, बल्कि किसानों की आय पर भी गहरा असर पड़ रहा है। चीन, कनाडा और यूरोपीय देशों द्वारा प्रतिशोध में लगाए गए टैरिफ के कारण अमेरिकी सोया और मक्का जैसी कृषि वस्तुओं की मांग घटी है, जिससे किसानों की आय में गिरावट आने से सरकार को अरबों डालर की सब्सिडी देनी पड़ रही है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर इसके दुष्परिणाम अब स्पष्ट दिखने लगे हैं।

येल विश्वविद्यालय के बजट अध्ययन केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, टैरिफ और विदेशी प्रतिकारात्मक करों के कारण 2025 में अमेरिका की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर लगभग 0.9 प्रतिशत अंक कम हो रही है। टैरिफ नीतियों के कारण एक आम अमेरिकी परिवार को औसतन 3,800 डालर तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वहीं पेन-वार्टन बजट माडल का विश्लेषण बताता है कि ट्रंप की व्यापारिक नीतियों के कारण अमेरिका की जीडीपी दीर्घकाल में लगभग छह प्रतिशत तक घट सकती है और मजदूरी में लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।

ओईसीडी ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि यदि टैरिफ और एकतरफा व्यापार नीतियां जारी रहीं तो 2026 तक अमेरिका की जीडीपी वृद्धि दर 1.6 प्रतिशत तक गिर सकती है। यह गिरावट न केवल अमेरिका, बल्कि विश्व अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता का कारण होगी, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार का मुख्य इंजन है। आम अमेरिकी इस नीतिगत बदलाव की सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं। उच्च मूल्य, घटती आय और रोजगार के अवसरों में कमी ने अमेरिकी सपने की धारणा को कमजोर किया है।

ट्रंप की मनमानी नीतियों का अमेरिका में विरोध भी शुरू हो चुका है। एक हालिया सर्वेक्षण में लगभग 55 प्रतिशत अमेरिकी नागरिकों ने कहा कि ट्रंप अब एक खतरनाक तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे हैं। वह अपने विरोधियों को निशाना बनाने के लिए सरकारी संस्थाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। यही कारण है कि उनके नेतृत्व में अमेरिका का लोकतांत्रिक ढांचा पहले की अपेक्षा अधिक विभाजित हो गया है। “हैंड्स आफ” और “नो किंग” जैसे आंदोलनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिकी जनता अब अधिक हस्तक्षेप और केंद्रीकृत शक्ति के विरोध में एकजुट हो रही है।

डगमगाती अमेरिकी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में ट्रंप की राष्ट्रवादी नीतियां और अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो रही हैं। “अमेरिका प्रथम” के उनके नारे ने जहां कुछ समय के लिए घरेलू उद्योगों को सहारा दिया, वहीं वैश्विक व्यापारिक साझेदारियों से दूरी ने अमेरिकी बाजार पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। अंतरराष्ट्रीय निवेश घटा है, निर्यात पर दबाव बढ़ा है और डालर की अस्थिरता से आयात महंगा हुआ है। इस बीच बेरोजगारी में वृद्धि और उपभोक्ता कीमतों में लगातार बढ़ोतरी ने मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति को कमजोर कर दिया है।

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत अमेरिकियों का मानना है कि ट्रंप की नीतियों से आर्थिक असमानता बढ़ी है, जबकि श्रमिक वर्ग को उनके वादों का कोई वास्तविक लाभ नहीं मिला। आर्थिक विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों ने अमेरिका की उत्पादन क्षमता को सीमित कर दिया है, जिससे नई नौकरियां सृजित होने के बजाय उद्योगों में छंटनी बढ़ी है। वित्तीय अस्थिरता और महंगाई ने अमेरिकी जनता की चिंता को गहरा किया है।

ट्रंप का राष्ट्रवाद सिर्फ राजनीतिक ध्रुवीकरण ही नहीं, बल्कि आर्थिक असंतुलन का कारण भी बनता जा रहा है। अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए अपनाई गई नीतियां दीर्घकाल में अमेरिका की आर्थिक स्थिरता और वैश्विक विश्वसनीयता, दोनों को कमजोर कर रही हैं। अगर यही रुझान जारी रहा तो “अमेरिका प्रथम” की नीति स्वयं अमेरिका की आर्थिक नींव को हिला सकती है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)