विचार: शीघ्र लागू की जाएं चारों श्रम संहिताएं, संतुलित विकास का ढांचा प्रदान करने में सक्षम होंगी
स्वचालन और डिजिटलीकरण के युग में जब पारंपरिक नौकरियां घट रही हैं, तब ये संहिताएं संतुलित विकास का ढांचा प्रदान करने में सक्षम होंगी। चारों श्रम संहिताएं उस महत्वाकांक्षा की रीढ़ हैं, जिसमें आर्थिक गतिशीलता को सामाजिक न्याय के साथ जोड़कर एक विकसित भारत, आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की कल्पना की गई है।
HighLights
श्रम कानूनों का महत्व
श्रम सुधारों की आवश्यकता
संहिताओं के शीघ्र कार्यान्वयन
हिरण्मय पंड्या। भारत के कार्यबल को ऐसे औपचारिक रोजगार में तेजी से जगह मिलनी चाहिए, जहां उचित वेतन और व्यापक सामाजिक सुरक्षा मिले, जिससे विकास के लाभ से सभी को सुरक्षित और सम्मानजनक आजीविका प्राप्त हो। पुराने श्रम नियमों के बने रहने से गुणवत्तापूर्ण रोजगार देने की उद्यमों की क्षमता आंशिक रूप से प्रभावित हुई। इसी के आलोक में राष्ट्रीय श्रम आयोग ने श्रम सुधारों की जो कल्पना की, वह काफी समय से लंबित थी। इन्हें 2019 और 2020 के बीच संसद द्वारा चार श्रम संहिताओं के रूप में पारित किया गया।
ये संहिताएं देश के श्रम परिदृश्य को आधुनिक बनाने और संरचनात्मक असंतुलनों को दूर करने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करती हैं। दशकों पुराने 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को सरल और आधुनिक बनाते हुए चार नई श्रम संहिताओं के निर्माण का उद्देश्य न केवल कानूनों को एकीकृत स्वरूप प्रदान करना है, बल्कि काम को अधिक निष्पक्ष, सुरक्षित और उत्पादक बनाना है।
मजदूरी संहिता, 2019 यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है कि प्रत्येक श्रमिक को श्रम की गरिमा का सम्मान करने वाला न्यूनतम वेतन मिले। पहले न्यूनतम वेतन केवल निर्धारित व्यवसायों तक ही सीमित था, लेकिन अब इसे सभी क्षेत्रों और संगठित और असंगठित के समस्त श्रमिकों पर लागू कर दिया गया है। यह न्यूनतम वेतन का सार्वभौमीकरण श्रमिकों को कानूनी रूप से बुनियादी वेतन का अधिकार देता है। इसके साथ ही पहली बार एक राष्ट्रीय आधार वेतन (फ्लोर वेज) की व्यवस्था की गई है, जिसे केंद्र सरकार जीवन स्तर और क्षेत्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तय करेगी। कोई भी राज्य इससे कम न्यूनतम वेतन नहीं तय कर सकेगा। इससे राज्यों के बीच वेतन असमानता भी घटेगी और देशभर के श्रमिकों को समान अवसर मिलेगा। संहिता यह भी सुनिश्चित करती है कि वेतन की समीक्षा नियमित रूप से हो, ताकि बदलती आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप श्रमिकों की आय प्रासंगिक बनी रहे। इस संहिता के तहत विवादों में प्रमाण प्रस्तुत करने का भार नियोक्ता पर होगा, जिससे उनकी जवाबदेही बढ़ेगी।
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 स्वतंत्र भारत में जन कल्याण के सबसे समावेशी विस्तारों में से एक है। कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम और प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम सहित नौ प्रमुख कानूनों को मिला कर यह एक एकीकृत प्रणाली स्थापित करती है, जो पारंपरिक और नए, दोनों प्रकार के कार्यों को कवर करती है। पहली बार गिग श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को राष्ट्रीय कार्यबल का हिस्सा माना गया है। प्रत्येक श्रमिक को पंजीकृत किया जाएगा, उसे एक विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा संख्या जारी की जाएगी, जिससे स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और मातृत्व सहायता जैसे लाभ का सीधा वितरण संभव हो सकेगा।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशाएं संहिता, 2020 राष्ट्र का निर्माण करने वालों के प्रति देखभाल और जिम्मेदारी का एक संदेश है। प्रतिष्ठान की परिभाषा को व्यापक बनाकर यह संहिता उन लाखों लोगों को सुरक्षा प्रदान करती है, जो पहले सुरक्षा कानूनों के दायरे में नहीं आते थे। प्रत्येक कर्मचारी को अनिवार्य रूप से निर्धारित प्रारूप में नियुक्ति पत्र प्रदान किया जाएगा, जिसमें कर्मचारी का विवरण, पदनाम, श्रेणी, वेतन का ब्यौरा तथा सामाजिक सुरक्षा से संबंधित विवरण सम्मिलित होंगे। व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशाएं संहिता, 2020 श्रमिकों के लिए निःशुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जांच अनिवार्य करती है और नियोक्ताओं से अपेक्षा करती है कि वे इस मद में कर्मचारियों पर कोई वित्तीय बोझ न डालें और सुरक्षित एवं स्वच्छ कार्यस्थल बनाए रखें। यह संहिता लैंगिक समानता की दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रगति करती है। यह महिला श्रमिकों को सभी प्रतिष्ठानों और रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है।
औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 तीन पुराने अधिनियमों को एकीकृत ढांचे में मिला करके नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच संबंधों में स्पष्टता लाती है। इसमें बीस या उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को शिकायत निवारण समितियां गठित करने का प्रविधान है, ताकि विवादों का शीघ्रता से समाधान हो जाए तथा हड़ताल या मुकदमेबाजी की स्थिति न बने। इस संहिता के तहत छंटनी का सामना कर रहे श्रमिक अब 30 दिन का नोटिस और पर्याप्त मुआवजा पाने के हकदार हैं। यह एक मानवीय सुधार है, जो आजीविका सुरक्षा का सम्मान करता है।
विभिन्न विकासशील देशों के उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि श्रम सुधारों ने उनकी आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बदलती वैश्विक आर्थिक परिस्थिति, बढ़ते टैरिफ तथा व्यापार ढांचों में बदलाव को देखते हुए भारत में नई श्रम संहिताओं को जल्द से जल्द लागू करना अत्यंत आवश्यक है। श्रम नियम सरल एवं पारदर्शी होने पर निवेश बढ़ेगा, औपचारिक रोजगार बढ़ेगा तथा श्रमिकों के गरिमापूर्ण अधिकार सुनिश्चित होंगे।
स्वचालन और डिजिटलीकरण के युग में जब पारंपरिक नौकरियां घट रही हैं, तब ये संहिताएं संतुलित विकास का ढांचा प्रदान करने में सक्षम होंगी। चारों श्रम संहिताएं उस महत्वाकांक्षा की रीढ़ हैं, जिसमें आर्थिक गतिशीलता को सामाजिक न्याय के साथ जोड़कर एक विकसित भारत, आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की कल्पना की गई है।
(लेखक भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष हैं)













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