जगतबीर सिंह। बीते दिनों पाकिस्तानी संसद ने सैन्य कमांड संरचना और न्यायिक ढांचे में व्यापक बदलाव के लिए 27वां संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित किया। इस विधेयक में अन्य बदलावों के अलावा संविधान के अनुच्छेद 243 को फिर से लिखा गया है। इसमें सशस्त्र बलों के चीफ आफ डिफेंस फोर्सेज का पद स्थापित किया गया है और ज्वाइंट चीफ्स आफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष का पद समाप्त कर दिया गया है। यह विधेयक इसलिए पारित हो गया, क्योंकि राष्ट्रीय असेंबली यानी संसद के निचले सदन में सत्तारूढ़ गठबंधन के पास बहुमत था और उच्च सदन यानी सीनेट में विपक्ष ने बहिष्कार कर दिया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा।

पाकिस्तान के इतिहास में अनुच्छेद 243 में पांच बार संशोधन किया गया है। 1973 के मूल संविधान में कहा गया था कि संघीय सरकार के पास सशस्त्र बलों का नियंत्रण और कमान होगी। जनरल ज़िया-उल-हक ने इसे संशोधित कर कहा कि सशस्त्र बलों की सर्वोच्च कमान राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी। ऐसा कर नागरिक सरकार से सैन्य नियंत्रण को स्थानांतरित कर दिया गया। 1997 में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसे पलटते हुए सशस्त्र बलों का नियंत्रण संघीय सरकार और संसद को बहाल किया। जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने 2002 में इसे फिर पलट दिया और राष्ट्रपति का प्रभुत्व बहाल किया। 2010 में 18वें संशोधन के तहत एक बार फिर बदलाव हुआ, जिसमें राष्ट्रपति के पद को सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर के रूप में बनाए रखा गया, लेकिन वास्तविक अधिकार संघीय सरकार को सौंपे गए।

अनुच्छेद 243 में प्रस्तावित परिवर्तन के तहत सेना प्रमुख को चीफ आफ डिफेंस फोर्सेज के रूप में मान्यता दी जा रही है और ज्वाइंट चीफ्स आफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष का पद समाप्त किया जा रहा है। यह बदलाव चीफ आफ डिफेंस फोर्सेज यानी सेना प्रमुख को पाकिस्तान की सशस्त्र सेवाओं का सर्वोच्च अधिकारी बना देगा। इस विधेयक में राष्ट्रीय रणनीतिक कमान के कमांडर का पद स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त उन अधिकारियों को व्यापक लाभ प्रदान करने की व्यवस्था है, जिन्हें फाइव-स्टार रैंक में पदोन्नत किया जाएगा, जैसे फील्ड मार्शल, एयर फोर्स के मार्शल या एडमिरल आफ द फ्लीट।

संविधान संशोधन के तहत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति करेंगे, जबकि सेना प्रमुख चीफ आफ डिफेंस फोर्सेज के रूप में अपनी भूमिका निभाएंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय रणनीतिक कमान का कमांडर भी प्रधानमंत्री द्वारा सेना प्रमुख की सिफारिश पर नियुक्त किया जाएगा और उसे सेना से ही चुना जाएगा। वह पाकिस्तान के परमाणु और रणनीतिक संसाधनों की देखरेख करेगा। एक अलग प्रविधान के तहत, जिन अधिकारियों को फाइव-स्टार रैंक में पदोन्नत किया जाएगा, उन्हें आजीवन संवैधानिक सुरक्षा मिलेगी। ये अधिकारी रैंक, विशेषाधिकार और यूनिफार्म जीवनभर बनाए रखेंगे और उन्हें केवल राष्ट्रपति के समान एक महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकेगा।

संविधान संशोधन विधेयक पर विपक्षी दलों और नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि यह सेना के पक्ष में सत्ता का संतुलन और अधिक बढ़ाएगा, जबकि नागरिक संस्थाओं के अधिकारों को कमजोर करेगा। 27वें संशोधन विधेयक से न्यायिक ढांचे में भी महत्वपूर्ण बदलाव होंगे। संशोधन के केंद्र में एक नया शीर्ष न्यायालय संघीय संवैधानिक न्यायालय (एफसीसी) है। एफसीसी का अपना एक मुख्य न्यायाधीश होगा, जो तीन साल के निश्चित कार्यकाल के लिए पदासीन होगा और उसकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों से की जाएगी, जिनके पास कम से कम सात साल का अनुभव होगा या बहुत वरिष्ठ वकील होंगे, जिनके पास 20 साल से अधिक का अनुभव होगा।

संविधान संशोधन के बाद मिली शक्तियों के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वे किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित कर सकें। यदि कोई न्यायाधीश इस स्थानांतरण को स्वीकार नहीं करेगा तो उसे स्वतः सेवानिवृत्त माना जाएगा। एफसीसी सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारों को भी संभालेगा। उसके फैसले सभी न्यायालयों, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट पर भी बाध्यकारी होंगे। एफसीसी संघ और प्रांतों के बीच के साथ प्रांतों के बीच विवादों का निपटारा करने का विशेष अधिकार भी रखेगा। इसके अतिरिक्त उसे अधिकार होगा कि वह संविधान की व्याख्या से संबंधित कानूनी प्रश्नों से संबंधित मामले स्वत: उठाए।

27वां संशोधन विधेयक पारित होने से 1980 के दशक के संवैधानिक संघर्षों के बाद से पाकिस्तान की रक्षा कमांड संरचना में सबसे बड़ा बदलाव होने जा रहा है। यह नागरिक-सेना रिश्तों के उस नाजुक संतुलन को फिर से परिभाषित करेगा, जो देश के संविधान में हमेशा से मौजूद रहा है। यह संशोधन सेना की संस्थागत स्वायत्तता यानी निरंकुशता को बढ़ाएगा और उसे नागरिक निगरानी से भी मुक्त करेगा। यह विधेयक विशेष रूप से एक व्यक्ति यानी आसिम मुनीर को लाभ पहुंचाने के लिए लाया गया है, न कि रक्षा संरचना को मजबूत करने के लिए।
विवादित संशोधन विधेयक के पारित होने का मतलब है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं पंगु बनी रहेंगी।

न्यायपालिका, जिसने 26वें संशोधन के बाद अपनी स्वतंत्रता को कमजोर होते देखा है, अब और अधिक कमजोर हो जाएगी। इसी कारण विपक्षी दल इस खतरनाक बदलाव के खिलाफ लोगों से खड़ा होने को कह रहे हैं। यह विधेयक पाकिस्तान की सशस्त्र बलों की भूमिका और शक्ति को बढ़ाएगा, न्यायपालिका को कमजोर करेगा और प्रांतों के वित्तीय अधिकारों को घटाएगा।

इसका प्रभाव दूरगामी होगा और यह सरकार द्वारा अपने अधिकारों को चुनौती देने वाली और विशेष रूप से इमरान खान पार्टी से निपटने के लिए उठाया गया कदम प्रतीत होता है। इस विधेयक के पारित होने के बाद भारत के लिए पाकिस्तान की नागरिक सरकार से किसी तरह की बातचीत का कोई मतलब नहीं रह जाएगा, क्योंकि सारे महत्वपूर्ण अधिकार सेना के पास होंगे। प्रायः यह जो कहा जाता है कि जहां देशों के पास अपनी सेनाएं हैं, वहीं पाकिस्तानी सेना के पास अपना एक देश है, वह और अधिक स्थापित हो जाएगा। अभी फील्ड मार्शल आसिम मुनीर पाकिस्तान के अघोषित शासक हैं। अब वे संवैधानिक रूप से भी उसके शासक बन जाएंगे।


(लेखक सेवानिवृत्त मेजर जनरल हैं)