जागरण संपादकीय: आतंक की आहट, देश को रहना होगा अलर्ट
एक के बाद एक कई आतंकी गुटों के भंडाफोड़ के बीच दिल्ली की घटना केवल यही नहीं बताती कि सुरक्षा एजेंसियों को और अधिक सतर्क रहना होगा, बल्कि इसकी भी मांग करती है कि मुस्लिम समाज का राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर नेतृत्व करने वाले यह देखें कि किन कारणों से उनके युवा आतंक की राह पर चल रहे हैं?
HighLights
सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहने की चेतावनी
पिछले कुछ दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों से आतंकियों के कई गुटों का जो भंडाफोड़ हुआ, वह चिंतित करने वाला ही है। यह गंभीर चिंता की बात है कि पढ़े-लिखे और यहां तक कि डाक्टर डिग्री धारक भी आतंक के रास्ते पर चल रहे हैं। इसी के साथ यह संतोष की बात भी है कि वे पुलिस और खुफिया एजेंसियों की निगाह में आ जा रहे हैं।
इसके बाद भी यह कल्पना सिहरन पैदा करती है कि यदि खतरनाक इरादों से लैस इन आतंकियों को समय रहते पकड़ा न जाता तो वे किसी बड़ी तबाही का कारण बन सकते थे। इसका एक संकेत गत दिवस दिल्ली में लाल किले के पास एक कार में जोरदार धमाके से मिलता है। कई लोगों को हताहत करने वाले इस धमाके की प्रकृति और उसकी तीव्रता किसी आतंकी करतूत की ओर ही इशारा कर रही है। इसी कारण इस घटना की जांच में आतंक निरोधक एजेंसियां भी जुट गई हैं।
इस दहशत पैदा करने वाली घटना के ठीक पहले गुजरात के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने जिन तीन संदिग्ध आतंकियों को पकड़ा, उनमें एक हैदराबाद का डाक्टर है। उसके दो साथी उत्तर प्रदेश के हैं। उनके पास से तीन पिस्टल और कारतूस के साथ घातक जहर राइसिन बनाने वाली सामग्री मिली है।
इन आतंकियों की गिरफ्तारी के अलावा जम्मू-कश्मीर और हरियाणा पुलिस ने तीन डाक्टरों समेत सात ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने फरीदाबाद में करीब तीन हजार किलो विस्फोटक जमा कर रखा था। इनमें एक महिला डाक्टर भी है। शेष में मौलवी और छात्र हैं। इनके पास से राइफल, पिस्टल, टाइमर आदि भी मिले हैं। साफ है कि अब यह धारणा सही नहीं रही कि अशिक्षित और गरीब मुस्लिम युवा ही आतंक की ओर उन्मुख होते हैं।
पिछले कुछ वर्षों का देश और दुनिया का अनुभव यही बताता है कि अब पढ़े-लिखा मुस्लिम युवा आतंकी बनना अधिक पसंद कर रहे हैं। वे केवल आइएस, अलकायदा, जैश और लश्कर जैसे खूंखार आतंकी संगठनों से ही नहीं जुड़ रहे हैं, बल्कि खुद के आतंकी गुट बनाने का भी दुस्साहस कर रहे हैं।
इसकी अनदेखी न की जाए कि बीते दिनों कर्नाटक की जेल में बंद एक आंतकी मोबाइल से फंड जुटाते मिला तो ग्रेटर नोएडा में एक अन्य मजहबी उन्माद भड़काने वाली किताबों का प्रकाशन करते हुए। यह सही है कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता, लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं कि मजहब की आड़ लेकर भी आतंक के रास्ते पर चला जा रहा है।
एक के बाद एक कई आतंकी गुटों के भंडाफोड़ के बीच दिल्ली की घटना केवल यही नहीं बताती कि सुरक्षा एजेंसियों को और अधिक सतर्क रहना होगा, बल्कि इसकी भी मांग करती है कि मुस्लिम समाज का राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर नेतृत्व करने वाले यह देखें कि किन कारणों से उनके युवा आतंक की राह पर चल रहे हैं?













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