विचार: भूटान को चीनी चंगुल से बचाने की चुनौती, महत्वाकांक्षाओं से बचाकर रखना अनिवार्य
नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव की तरह भूटान में भी चीन घुसपैठ करके भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहा है। भविष्य में चीनी कारस्तानियों से निपटने के लिए भारत को भूटानी विशिष्ट वर्ग के साथ-साथ आम लोगों से भी घनिष्ठ संबंध बनाने होंगे। मोदी बार-बार भूटान जाते रहे तो दोनों देशों की मित्रता यूं ही सुदृढ़ होती रहेगी।
HighLights
मोदी की भूटान यात्रा: सामरिक महत्व
चीन का भूटान में अतिक्रमण
श्रीराम चौलिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिन के लिए भूटान के दौरे पर हैं। भूटान क्षेत्रफल में भारत का सबसे छोटा पड़ोसी है, परंतु इसका सामरिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह चीनी कब्जे वाले तिब्बत और भारत के बीच ऊंचे हिमालयों में स्थित महत्वपूर्ण मध्यवर्ती देश है। गत 11 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी का वहां चार बार जाना और इसी तरह भूटान के प्रधानमंत्रियों और राजाओं का लगातार भारत में आगमन का क्रम दर्शाता है कि इस संवेदनशील रिश्ते को उचित ही सर्वोच्च राजनीतिक महत्व दिया जा रहा है। भूटान अगर कमजोर और बेसहारा बन जाए तो विस्तारवादी चीन न केवल उसे निगल जाएगा, बल्कि भारत की सीमा पर एक और मोर्चा खोल देगा।
1950 के दशक में तिब्बत में चीन के अतिक्रमण और वर्तमान में नेपाल में चीन के विस्तार को देखते हुए भारत के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि भूटान को चीनी महत्वाकांक्षाओं से बचाकर रखे। एक अद्वितीय हिमालयी बौद्ध राष्ट्र को आक्रामक महाशक्ति चीन के जबरन कब्जे से बचाना कोई किताबी या सैद्धांतिक मुद्दा नहीं है। ‘सीलाइट’ नामक अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान के अनुसार हाल के वर्षों में चीन ने भूटान की पारंपरिक सीमाओं के भीतर कम से कम 22 कृत्रिम गांव बसाए हैं, जो इस छोटे से देश के लगभग दो प्रतिशत भूभाग पर कब्जा हैं। इन चीनी बस्तियों में सड़कें, सैन्य चौकियां और प्रशासनिक केंद्र भी शामिल हैं, जिससे जमीनी स्तर पर ऐसे नए तथ्य अंकित कर दिए गए हैं, जिन्हें नकारना मुश्किल है।
भूटान के साथ सीमा वार्ताओं के अंतर्गत चीन ने नए दावे भी पेश किए हैं, ताकि भूटान की संप्रभुता धीरे-धीरे घिस जाए और चीनी सेना भारत की सीमाओं को घेर ले। 2017 में डोकलाम में अवैध सड़क निर्माण का प्रयास चीन की दीर्घकालिक योजनाओं का नमूना था। इसी खतरे को रोकने के लिए भारतीय सेना ने 73 दिन तक चीनी फौज से आमना-सामना किया था। अंततः चीन को डोकलाम से पीछे हटना पड़ा था।
भूटान के अस्तित्व के लिए चीन के बढ़ते खतरे के चलते भारत भूटानी सेना के लिए रक्षा उपकरणों के साथ प्रशिक्षण की सुविधाएं बढ़ा रहा है।
2007 में संशोधित भारत-भूटान स्थायी मैत्री संधि के अनुसार दोनों देश “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक गतिविधियों” का मुकाबला करेंगे। चीन द्वारा भूटान में घुसपैठ करने और उसे अपने अधीन लाने के मंसूबों के कारण प्रतिरक्षा भारत-भूटान संबंधों का प्रमुख स्तंभ बना रहेगा। चूंकि भूटान को भारतीय सैन्य सहायता संवेदनशील मामला है, इसलिए उसके बारे में सार्वजनिक रूप से घोषणाएं नहीं होती हैं। इस सबके बाद भी मोदी सरकार भूटान के उत्तर और पूर्व में मंडरा रहे खतरे से अवगत है और उसे जरूरी संसाधन उपलब्ध करा रही है।
भूटान को अपने प्रभाव में लाने के इरादे से चीन उसे आर्थिक प्रलोभन भी दे रहा है। दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसियों में भूटान एकमात्र देश है, जो चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल में शामिल नहीं हुआ है। ऐसे में भूटान की आर्थिक प्रगति, ढांचागत सुधार और आधुनिकीकरण के प्रति भारत का विशेष उत्तरदायित्व है। भूटान की अपनी चौथी यात्रा में मोदी भारत की मदद से बने पुनतसंगचु जलविद्युत परियोजना का अनावरण करेंगे, जिससे भारत को भूटान से बिजली का निर्यात और भूटान में भारतीय कंपनियों का निवेश बढ़ेगा। भारत अपने उत्तर-पूर्वी राज्य असम के कोकराझार से भूटान के प्रतिष्ठित ‘न्यू गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी’ तक 58 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का भी निर्माण कर रहा है, जिससे आपसी कारोबार और पर्यटन का विकास होगा।
अंतरिक्ष उपग्रहों से लेकर वित्तीय प्रौद्योगिकी तक भारत उभरते क्षेत्रों में भूटान की मदद कर रहा है, ताकि उसके विभिन्न राजनीतिक समूह और सामाजिक वर्ग भारत के साथ मित्रता के ठोस लाभ को महसूस कर सकें। वर्षों से भूटान भारतीय सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है। 2025-26 के भारतीय बजट में उसके लिए 2,150 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। मोदी की भूटान यात्रा दुनिया को याद दिलाएगी कि भारत दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के लिए प्रमुख साझीदार बनने के लिए तत्पर है और इस मामले में चीन से प्रतिस्पर्धा करने से नहीं कतराएगा।
विकास और प्रतिरक्षा के अलावा भारत ने संस्कृति और आध्यात्मिकता को अपनी भूटान नीति का तीसरा स्तंभ बनाया है।
भूटान की इस यात्रा के दौरान मोदी एक मठ में भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की पूजा करेंगे, जिन्हें उत्तर प्रदेश के पिपरहवा से वहां भेजा गया है। इसके अलावा भारत की ओर से बौद्ध आध्यात्मिक नेता और भूटानी राष्ट्र के संस्थापक झाबद्रुंग नामग्याल की प्रतिमा भी भूटान को प्रदर्शन के लिए दी गई है।
भूटान की आठ लाख से भी कम आबादी अत्यंत धर्मपरायण है और अपनी अद्वितीय बौद्ध विरासत के संरक्षण के प्रति सचेत है। एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचारक के रूप में उभरकर भारत भूटान के लोगों का दिल और दिमाग जीत रहा है। बिना कहे ही सब समझते हैं कि जहां नास्तिक चीन ने अधिकृत तिब्बत में बौद्ध धर्म के विरुद्ध सांस्कृतिक नरसंहार किया, वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक भारत ने सदियों पुरानी आध्यात्मिक कुंजी को संरक्षित किया। इसीलिए मोदी अपनी इस भूटान यात्रा में एक विशेष ‘वैश्विक शांति प्रार्थना’ समारोह में भी भाग ले रहे हैं, जो दोनों देशों की सरकारें साझा तौर पर आयोजित कर रही हैं।
भारत की रणनीति इन सभी आयामों पर ध्यान देने की है, ताकि भूटानी समाज में कोई भारत विरोधी गुट न सक्रिय होने पाए। यह संयोग नहीं कि भूटान भारत का सबसे स्थिर दक्षिण एशियाई पड़ोसी है। संगठित भारत-विरोधी तत्वों की अनुपस्थिति के फलस्वरूप भूटान में सामाजिक समरसता में खलल नहीं पड़ा है। नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव की तरह भूटान में भी चीन घुसपैठ करके भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहा है। भविष्य में चीनी कारस्तानियों से निपटने के लिए भारत को भूटानी विशिष्ट वर्ग के साथ-साथ आम लोगों से भी घनिष्ठ संबंध बनाने होंगे। मोदी बार-बार भूटान जाते रहे तो दोनों देशों की मित्रता यूं ही सुदृढ़ होती रहेगी।
(लेखक जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं)













कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।