विचार: अभी खत्म नहीं हुआ आतंक के खिलाफ युद्ध, दुश्मन भले ही कुछ कमजोर हो गया है, फिर भी वह वार करने में सक्षम
यह लड़ाई सिर्फ पुलिस, सशस्त्र बलों या खुफिया एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर भारतीय की लड़ाई है। सरकार और विपक्ष को एक साझा उद्देश्य के साथ मिलकर काम करना चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए। नागरिकों को भी देश को अंदर से कमजोर करने वाली नफरत और गलत सूचनाओं के खिलाफ सतर्क, जिम्मेदार और एकजुट रहना चाहिए।
HighLights
आतंकी घटना की साजिश बहुत सावधानी से रची गई
अशोक कुमार। दिल्ली में लाल किले के पास हुए शक्तिशाली विस्फोट ने फिर याद दिला दिया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की जंग अभी खत्म नहीं हुई है। आपरेशन सिंदूर के कुछ ही महीने बाद यह आतंकी घटना इसकी पुष्टि करती है कि लड़ाई बस एक नए चरण में प्रवेश कर गई है। दुश्मन हालांकि कमजोर हो गया है, फिर भी वार करने में सक्षम है। चिंताजनक बात यह है कि लाल किले की आतंकी घटना की साजिश बहुत सावधानी से रची गई।
विस्फोट से कुछ घंटे पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर फरीदाबाद की दो रिहायशी इमारतों में लगभग 3,000 किलोग्राम विस्फोटक बरामद किया। इनमें 350 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट भी था। यह एक ऐसा उर्वरक होता है, जिसे आसानी से एक घातक बम में बदला जा सकता है। इस बरामदगी ने संभवतः एक और भी बड़ी त्रासदी को टाल दिया।
आतंकवाद के इस कृत्य में डाक्टरों की संलिप्तता यह बताती है कि कट्टरपंथ अब विश्वविद्यालयों, अस्पतालों जैसी उन जगहों में भी घुस रहा है, जिन्हें कभी सुरक्षित माना जाता था। लाल किला विस्फोट कांड की शुरुआत बीते 27 अक्टूबर को हुई, जब श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टर दिखाई दिए। सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को डा. आदिल की पहचान करने में मदद मिली, जिसे बाद में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से गिरफ्तार किया गया।
जब जांचकर्ताओं ने अनंतनाग के सरकारी मेडिकल कालेज में उसके लाकर की तलाशी ली तो उन्हें वहां से एक असाल्ट राइफल मिली। उससे पूछताछ के दौरान पुलिस को फरीदाबाद में छिपे विस्फोटकों का एक जखीरा मिला, जिससे यह उजागर हुआ कि यह नेटवर्क कश्मीर से लेकर दिल्ली-एनसीआर तक व्यापक रूप से फैला हुआ है। इस नेटवर्क के तार भारत की सीमाओं से परे भी जुड़े रहे हैं। आतंकियों के हैंडलर पाकिस्तान में सक्रिय थे। इस मामले में एक अन्य आतंकी अल फलाह विश्वविद्यालय के डा. मुजम्मिल शकील को भी गिरफ्तार किया गया। विस्फोटकों से लदी कार भी एक डाक्टर उमर मोहम्मद चला रहा था।
अधिकारियों के अनुसार संदिग्ध आत्मघाती हमलावर दिल्ली में घुस आया था और उसने गाड़ी एक मस्जिद के पास खड़ी कर दी थी। सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि जब कार खड़ी थी, तब वह एक बार भी उससे बाहर नहीं निकला। ऐसा लग रहा था कि वह या तो निर्देशों का इंतजार कर रहा था या अपने लक्षित लक्ष्य का। जांचकर्ताओं का मानना है कि फरीदाबाद में हुई गिरफ्तारियों से समूह में दहशत फैल गई होगी। फंसने का अहसास होने पर उमर मोहम्मद ने हताशा या घबराहट में बम विस्फोट कर दिया होगा। हो सकता है कि उसके संचालक ने उसे जिंदा पकड़े जाने के बजाय आत्मघाती हमला करने के लिए राजी किया हो। जो भी हो, यह किसी से छिपा नहीं कि चरमपंथी समूह युवा शिक्षित दिमागों को यह विश्वास दिलाकर प्रभावित करते हैं कि शहादत एक महान कार्य है।
एक बार फिर सुराग पाकिस्तान की ओर इशारा कर रहे हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ लश्कर-ए-तैयबा और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस जैसे आतंकी समूहों को एक साथ लाने के लिए काम कर रही है। इसका उद्देश्य भारत में आतंकी गतिविधियों को पुनर्जीवित करना और जम्मू-कश्मीर से परे भी अशांति फैलाना है। दिल्ली में विस्फोट के समय से पता चलता है कि यह आपरेशन सिंदूर का बदला लेने के लिए था, जो भारत का सफल आतंकवाद-रोधी अभियान था।
पाकिस्तान की नई आक्रामकता वैश्विक राजनीति से भी जुड़ी हुई प्रतीत होती है। हाल में उसने मध्य एशिया में अपनी स्थिति का रणनीतिक लाभ उठाकर अमेरिका के साथ रिश्ते फिर से बनाने में कामयाबी हासिल की है। जब भी पाकिस्तान को वैश्विक समर्थन मिलता है, वह उसका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के जरिए भारत को उकसाने के लिए करता है। हालांकि आज भारत पहले जैसा नहीं रहा। आतंकवाद के प्रति उसकी प्रतिक्रिया अब धीमी या रक्षात्मक नहीं रही। आपरेशन सिंदूर इसका प्रमाण था कि भारत आत्मविश्वास और सटीकता के साथ कार्रवाई करने के लिए तैयार है, फिर भी लाल किला विस्फोट दर्शाता है कि आतंकियों ने भी अपने तरीके बदल लिए हैं। अब वे छोटे, छिपे हुए ठिकानों में काम करते हैं और आम जिंदगी में घुल-मिल जाते हैं, जिससे पुलिस के लिए समय रहते उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए कड़ी सतर्कता की आवश्यकता है। सुरक्षा, सतर्कता केवल जम्मू-कश्मीर या दिल्ली जैसे बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि पूरे देश में होनी चाहिए। आतंकियों के पास से बरामद विस्फोटकों की विशाल मात्रा विनाश के संभावित पैमाने को उजागर करती है। इससे इस आशंका को बल मिलता है कि कई समन्वित विस्फोटों की योजना बनाई गई हो सकती है। इसलिए खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना, शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में निगरानी कड़ी करना और अंतर-एजेंसी समन्वय में सुधार करना महत्वपूर्ण है। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को खुद को आतंकवाद के शिकार के रूप में पेश करते हुए गुप्त रूप से उसका समर्थन करने वाले पाकिस्तान के दोहरे खेल का पर्दाफाश करना भी जारी रखना चाहिए।
जो देश अभी भी पाकिस्तान को आतंकवाद रोधी सहयोगी मानते हैं, उन्हें उसके वास्तविक रिकार्ड की याद दिलानी चाहिए। भारत को संयुक्त राष्ट्र, जी-20 और एफएटीएफ जैसे वैश्विक मंचों का उपयोग आतंकवाद को पनाह देने या उसे वित्तपोषित करने वाले देशों के खिलाफ सख्त अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के लिए करना चाहिए। भारत को अपने अगले कदमों की योजना बनाते समय तत्काल सैन्य या जवाबी कार्रवाई से आगे बढ़ना चाहिए। आज आतंकवाद-निरोध के लिए बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें मजबूत कूटनीति, उन्नत रक्षा और खुफिया प्रणालियां, आंतरिक सामाजिक सामंजस्य और सबसे बढ़कर, अटूट राजनीतिक इच्छाशक्ति शामिल है।
लाल किले की घटना इसकी भी याद दिलाती है कि खतरा अभी भी हमारे बीच छिपा है और कमजोरी तथा विभाजन के क्षणों का इंतजार कर रहा है। यह लड़ाई सिर्फ पुलिस, सशस्त्र बलों या खुफिया एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर भारतीय की लड़ाई है। सरकार और विपक्ष को एक साझा उद्देश्य के साथ मिलकर काम करना चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए। नागरिकों को भी देश को अंदर से कमजोर करने वाली नफरत और गलत सूचनाओं के खिलाफ सतर्क, जिम्मेदार और एकजुट रहना चाहिए।
(लेखक उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी हैं)













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