अंततः यह आशंका सच साबित हुई कि दिल्ली में लाल किले के निकट 12 लोगों की जान लेने वाला कार धमाका आतंकी घटना हो सकता है। विस्फोटक से लैस कार का चालक डाक्टर उमर मोहम्मद उन संदिग्ध आतंकियों का साथी निकला, जिनके ठिकानों से लगभग तीन हजार किलो विस्फोटक और घातक हथियार बरामद किए गए थे।

आतंकी दिल्ली में जिस तरह 14 वर्षों बाद एक बड़ी घटना को अंजाम देने में सफल हो गए, उसने मोदी सरकार के साथ पुलिस, खुफिया संगठनों एवं आतंकवाद निरोधक एजेंसियों की चुनौती बढ़ा दी है। सुरक्षा एजेंसियां आतंकियों और उनके ठिकानों तक तो पहुंच गईं, लेकिन वे उनके पूरे नेटवर्क को नाकाम नहीं कर सकीं।

केंद्र सरकार के कठोर रुख को देखते हुए इस पर भरोसा किया जा सकता है कि सुरक्षा एजेंसियां आखिरकार इस पूरे आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने में सक्षम होंगी, लेकिन समस्या केवल एक आतंकी नेटवर्क की नहीं है। हाल में कई ऐसे आतंकी नेटवर्क पकड़े गए हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय होकर आतंक की साजिश रच रहे थे।

स्पष्ट है कि सुरक्षा एजेंसियों और विशेष रूप से आतंक निरोधक एजेंसियों को और अधिक सतर्कता का भी परिचय देना होगा और आपसी सहयोग का भी। कश्मीर के आतंकियों ने जिस तरह फरीदाबाद में ठिकाना बना लिया, उसे देखते हुए यह साफ है कि वे देश में कहीं पर और किसी भी रूप में छिपे हो सकते हैं।

दिल्ली को दहलाने वाली घटना के लिए जिन आतंकियों को जिम्मेदार माना जा रहा है, उनके तार जिस तरह पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं, उस पर हैरानी नहीं। यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आतंकवाद के खिलाफ नई नीति के तहत क्या पाकिस्तान के खिलाफ नए सिरे से कोई कठोर कार्रवाई की जाएगी? यह प्रश्न इसलिए भी, क्योंकि आपरेशन सिंदूर अभी जारी है।

निःसंदेह चुनौती केवल पाकिस्तान को सबक सिखाने की ही नहीं, इसकी भी है कि उसके उकसावे में आकर कश्मीर से लेकर केरल तक आतंक की राह पर चलने वालों पर कैसे लगाम लगे? यह चुनौती केवल सरकार के समक्ष ही नहीं, समाज और विशेष रूप से मुस्लिम समाज के सामने भी है।

यह बड़े संकट का सूचक है कि डाक्टरी की पढ़ाई करने वाले भी आतंकी बनना पसंद कर रहे हैं। इससे आतंक एक नए रूप में उभर रहा है और यह बता रहा है कि मजहबी उन्माद कहीं व्यापक रूप में फैल गया है।

इस गंभीर समस्या का सामना तब संभव है, जब सरकारी तंत्र के साथ मुस्लिम समाज का राजनीतिक, धार्मिक नेतृत्व यह देखने को तैयार होगा कि उसके पढ़े-लिखे युवा भी आतंक का पाठ क्यों पढ़ रहे हैं? निःसंदेह वह ऐसा तभी कर पाएगा, जब आतंक पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों के बहकावे में नहीं आएगा। यह किसी से छिपा नहीं कि अपने देश में आतंकवाद पर कैसी सस्ती राजनीति की जाती है।