सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर पंजाब और हरियाणा से पराली जलाने को लेकर की गई कार्रवाई संबंधी जो रिपोर्ट मांगी, उससे कुछ हासिल होने की उम्मीद कम ही है। इसलिए कम है, क्योंकि एक तो इन दोनों राज्यों में पराली करीब-करीब जलाई जा चुकी है और दूसरे वायु प्रदूषण का एक मात्र कारण पराली दहन नहीं है। विभिन्न अध्ययन यह रेखांकित कर चुके हैं कि वायु प्रदूषण के कारणों में पराली दहन के अतिरिक्त वाहनों का उत्सर्जन और सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल है।

निःसंदेह पराली दहन को रोका ही जाना चाहिए, लेकिन बात तब बनेगी, जब यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि ट्रैफिक जाम के कारण वाहनों से अतिरिक्त विषाक्त उत्सर्जन न हो सके और सड़कों एवं निर्माण स्थलों से धूल के गुबार न उड़ने पाएं। वायु प्रदूषण में वाहन उत्सर्जन और धूल का योगदान पराली से भी अधिक है। बरसात में तो सड़कों एवं निर्माण स्थलों से धूल उड़नी कम हो जाती है, लेकिन वाहन उत्सर्जन बढ़ाने वाला ट्रैफिक जाम वर्ष भर की समस्या है।

इसी कारण उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में सर्दियों के अलावा भी वायु की गुणवत्ता का स्तर खराब बना रहता है। समस्या यह है कि हवा की गुणवत्ता में तनिक सुधार आते ही प्रदूषण रोधी एजेंसियों के साथ सरकारों और सुप्रीम कोर्ट के लिए वायु प्रदूषण कोई समस्या नहीं रह जाता। इसी रवैये के कारण दशकों बाद भी वायु प्रदूषण से छुटकारा नहीं मिल रहा है।

कम से कम सुप्रीम कोर्ट को तो यह समझना होगा कि वायु प्रदूषण से मुक्ति तब मिलेगी, जब उससे निपटने के उपाय वर्ष भर किए जाएंगे और प्रदूषण बढ़ाने वाले सभी कारणों के निवारण पर जोर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली-एनसीआर के साथ शेष देश के पर्यावरण की भी चिंता करनी होगी। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि हवा तब भी जहरीली होती रहती है, जब पराली जलना बंद हो जाती है?

यह रवैया ठीक नहीं कि सर्दियों के आगमन पर पराली जलने की चिंता की जाए और दीवाली पर पटाखों के इस्तेमाल की। इस रवैये में सुधार के साथ यह भी समझा जाना चाहिए कि जब प्रदूषण गंभीर रूप ले लेता है, तब उससे निपटने के लिए किए जाने वाले फौरी उपाय अपर्याप्त ही सिद्ध होते हैं। इसी कारण हवा की गुणवत्ता की सही स्थिति को छिपाया जाता है।

उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सभी कारणों के निवारण वाले उपायों पर ध्यान दे और सरकारों को इसके लिए बाध्य करे कि वे संबंधित एजेंसियों को जवाबदेह बनाएं। उन्हें न केवल यह सुनिश्चित करना होगा कि सड़कों एवं निर्माण स्थलों से धूल न उड़ने पाए, बल्कि यह भी कि यातायात सुगम बना रहे, ताकि वाहन रेंगने के लिए बाध्य न हों।