विचार: राजग की प्रचंड जीत से लोगों की बढ़ी उम्मीदें, डबल इंजन की सरकार पर बनेगा दबाव
बिहार में राजग की जीत ने जाति-धर्म की राजनीति को नकारा। लोगों ने नीतीश-मोदी के वादों पर भरोसा किया। राजद के लुभावने वादे अधूरे लगे, जबकि राजग ने महिलाओं को 10,000 रुपये देकर विश्वास जीता। डबल इंजन सरकार का नारा चला। मोदी की लोकप्रियता और नीतीश की कुशल छवि ने जीत दिलाई। महागठबंधन में तालमेल की कमी दिखी। अब लोगों को विकास की उम्मीद है।
HighLights
राजग की जीत, जातिवाद की राजनीति नकार
नीतीश-मोदी पर जनता का भरोसा
विकास की उम्मीदें बढ़ीं
संजय गुप्त। बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जो अप्रत्याशित जीत हुई, उसने बिहार की यह छवि तोड़ने का काम किया कि यहां के मतदाता जाति और मजहब के आधार पर वोट करते हैं। यदि बिहार के नतीजों में सत्ता विरोधी प्रभाव नहीं दिखा तो इसका प्रमुख कारण यह रहा कि यहां के मतदाताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वादों पर अधिक भरोसा किया।
जहां राजद की ओर से महिलाओं को तीस हजार रुपये सालाना और हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी का वादा था, वहीं भाजपा-जदयू के नेतृत्व वाले राजग ने महिलाओं को दस हजार रुपये देने का वादा तो किया ही, उस पर अमल भी शुरू करके यह संदेश दिया कि वह जो कह रहा है, उसे पूरा करने को प्रतिबद्ध है। महागठबंधन का वादा अधिक लुभावना तो था, लेकिन वह पूरा किए जाने लायक नहीं दिख रहा था।
किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देना कैसे संभव है? राजनीति में लोक-लुभावन वादे से अधिक यह महत्व रखता है कि उसे कर कौन रहा है और वह पूरा करने लायक है या नहीं? इस मामले में बिहार की जनता ने नीतीश और मोदी पर अधिक भरोसा किया तो उनके पिछले रिकार्ड के कारण। यह भी स्पष्ट है कि डबल इंजन सरकार के नारे ने बिहार में
असर दिखाया।
जदयू के लिए भाजपा किस तरह एक ताकत और सहारा बनी, इसका प्रमाण यह है कि वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। दूसरी ओर राजद के लिए कांग्रेस बोझ साबित हुई। उसे मात्र छह सीटें मिलीं। यदि भाजपा जदयू की ताकत बनी तो प्रधानमंत्री मोदी की सशक्त नेता की छवि और उनकी सरकार के कामकाज के कारण। राजग की जीत में मोदी की लोकप्रियता एक बड़ा कारण रही।
बिहार की जनता यह देख रही थी कि जहां मोदी के चलते भाजपा देश भर में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करती जा रही है, वहीं कांग्रेस खोती जा रही है। राहुल गांधी ने जहां वोट चोरी का मुद्दा उठाकर बिहार के लोगों को बरगलाने की नाकाम कोशिश की, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषणों से राज्य के लोगों की नब्ज पर हाथ रखा। जब प्रधानमंत्री ने जंगलराज की चर्चा की तो कांग्रेस उस पर सफाई देती दिखी।
जंगलराज की चर्चा से राजद को इसलिए भी नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि उसके कई समर्थकों ने यह दिखाया कि यदि महागठबंधन सत्ता में आया तो कानून एवं व्यवस्था को चुनौती दी जाएगी। राजद की जो छवि लालू यादव के समय बनी, उससे वह अब भी मुक्त नहीं हो सकी है। यह छवि उसके लिए फिर से परेशानी का सबब बनी।
तेजस्वी यादव से उम्मीद थी कि वह बीस साल पुरानी राजद की छवि को तोड़कर एक सार्थक और समन्वय वाली राजनीति की तरफ आगे बढ़ेंगे, पर वे ऐसा कर नहीं सके। वे अपने समर्थकों को संयमित आचरण के लिए भी समझा नहीं सके। इसी का उल्लेख करते हुए मोदी ने आगाह किया कि कट्टा वाली सरकार की वापसी नहीं होनी चाहिए।
राजग की बड़ी जीत में जहां प्रधानमंत्री मोदी की सशक्त नेता की छवि काम आई, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कुशल प्रशासक और बेदाग नेता की छवि भी एक बड़ा आधार बनी। नीतीश ने मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को अपने पक्ष में गोलबंद किया है। इसमें सबसे प्रभावी वर्ग है महिलाओं का। मोदी की तरह नीतीश भी महिलाओं को अपने पक्ष में लाने के लिए सक्रिय हैं।
अपने शासनकाल के प्रारंभ में उन्होंने स्कूली लड़कियों को साइकिल देकर महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया, फिर उन्हें स्थानीय निकायों के साथ नौकरी में आरक्षण देने के साथ उनके हित में अन्य कई फैसले किए। इनमें एक बड़ा फैसला शराबबंदी का रहा। शराबबंदी भले ही प्रभावी ढंग से लागू न हो सकी हो, लेकिन महिलाएं उसे अपने हित में मानती हैं। बिहार में सड़कों का जो जाल बिछा है और बिजली, पानी की सुविधा बढ़ने के साथ कानून एवं व्यवस्था में जो सुधार हुआ है, उसका श्रेय नीतीश कुमार को जाता है।
जदयू-भाजपा ने यह जो दिखाया कि नीतीश पहले से अधिक सक्षम और प्रभावी सरकार दे सकते हैं, उसके कारण ही राजग को प्रचंड जीत मिली। राजग के मुकाबले महागठबंधन ने जिन मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाया, उन्होंने सुर्खियां तो बटोरीं, लेकिन जनता ने उन्हें महत्व नहीं दिया। ऐसा ही एक मुद्दा था वोट चोरी का। चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर को वोट चोरी करार दिया गया।
इसे लेकर राहुल एवं तेजस्वी ने वोटर अधिकार यात्रा निकाली और यह संदेश देने की कोशिश की कि चुनाव आयोग गलत काम कर रहा है। एसआइआर को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई, पर विपक्ष को वहां से भी कोई राहत नहीं मिली। कांग्रेस और राजद ने जिस मुद्दे को खूब उछाला, उसकी चुनाव आते-आते हवा निकल गई, क्योंकि बिहार के लोग समझ गए कि एसआइआर एक जरूरी प्रक्रिया है।
बिहार में राजग की विजय केवल नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की कैमेस्ट्री का ही नतीजा नहीं, वह इस गठबंधन के सभी घटकों के बीच बेहतर सामंजस्य का भी परिणाम है। राजग के मुकाबले महागठबंधन अनबन और अविश्वास से ग्रस्त दिखा। इसका एक प्रमाण यह रहा कि 11 सीटों पर उसके प्रत्याशी आमने-सामने थे। इसकी तुलना में राजग ने सीट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार में तालमेल दिखाया।
इसी कारण भाजपा, जदयू के साथ-साथ चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा के दलों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया। पिछली बार जदयू इसलिए कमजोर साबित हुआ था, क्योंकि चिराग पासवान ने नीतीश को निशाने पर लेते हुए अलग चुनाव लड़ा था। चूंकि राजग ने प्रचंड जीत हासिल की है, इसलिए बिहार के लोगों की नीतीश सरकार से उम्मीदें कहीं अधिक बढ़ गई हैं। बिहार अभी भी एक पिछड़ा हुआ राज्य है और यहां बहुत कुछ करना बाकी है।
इतनी बड़ी जीत के साथ जो सरकार बनेगी, उसे लोगों की बढ़ी हुई अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह ठीक है कि धीरे-धीरे बिहार सही रास्ते पर आ गया है, लेकिन उसे पिछड़े राज्य की छवि से मुक्त होने की आवश्यकता है। बिहार के लोगों में जो मेधा है, उसका कोई सानी नहीं, पर उद्योग-धंधों के अभाव से राज्य पिछड़ गया है। अब यहां की डबल इंजन की सरकार से उम्मीद है कि वह बिहार को तेजी से विकास की ओर ले जाए।













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