संपादकीय: आरक्षण में क्रीमी लेयर, सीजेआई गवई के बयान से फिर शुरू हुई बहस
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने एससी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की बात कही है, जिस पर पहले भी चर्चा हो चुकी है। उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ केवल पात्र लोगों को मिलना चाहिए, और वंचित वर्गों के समर्थ लोगों को इससे रोका जाना चाहिए। उनका मानना है कि एक आईएएस अधिकारी और एक गरीब मजदूर के बेटों को एक समान नहीं माना जा सकता।
HighLights
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने अनुसूचित जाति आरक्षण में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू करने की आवश्यकता को लेकर जो विचार व्यक्त किए, वे नए नहीं हैं। वे इसके पहले भी ऐसा कह चुके हैं। तथ्य यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण में उपवर्गीकरण को मान्यता प्रदान की थी।
सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ में न्यायाधीश गवई भी थे। स्पष्ट है कि वे इसके प्रबल पक्षधर हैं कि क्रीमी लेयर का जो सिद्धांत अन्य पिछड़ा वर्ग अर्थात ओबीसी आरक्षण में लागू है, वही अन्य आरक्षित वर्गों यानी अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण में भी लागू किया जाए। यह स्वाभाविक है कि उनके इस कथन पर अलग-अलग राय सामने आएगी और एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने के उनके विचार की आलोचना भी होगी, लेकिन न्याय और नीति यही कहती है कि आरक्षण की व्यवस्था को इस तरह लागू किया जाए कि पात्र लोगों को ही उसका लाभ मिलना सुनिश्चित हो सके।
ऐसा तब होगा, जब वंचित वर्गों के समर्थ यानी क्रीमी लेयर वाले लोगों को आरक्षण का लाभ रोने से रोका जाएगा। एसी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था बनाए जाने के पक्ष में न्यायाधीश गवई ने यह बिल्कुल सही कहा कि आइएएस और गरीब मजदूर के बेटों को एक जैसा नहीं माना जा सकता।
यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि आरक्षण का उद्देश्य वंचित एवं पिछड़े तबकों के उन लोगों के उत्थान के विशेष प्रयत्न किए जाना है, जो वास्तव में सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं। आम तौर पर सामाजिक रूप से ऐसे पिछड़े लोग आर्थिक रूप से भी कमजोर होते हैं। आरक्षण में क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू करने के विरोध में यह तर्क दिया जाता है कि आरक्षित वर्ग के किसी व्यक्ति के उच्च पद पर पहुंच जाने के बाद भी कई बार उसे उपेक्षा या भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
इस तर्क को खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन इससे यही तो सिद्ध होता है कि आरक्षण सामाजिक विषमता और आर्थिक असमानता दूर करने का एकमात्र उपाय नहीं है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश में कमजोर वर्गों के तमाम लोग बिना आरक्षण सामाजिक-आर्थिक रूप से सक्षम बने हैं। आरक्षण वास्तव में पात्र यानी कमजोर लोगों के ही उत्थान में सहायक बने, इसके लिए अन्य उपायों के साथ जैसे एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण को मान्य किया गया, वैसे ही क्रीमी लेयर के सिद्धांत को भी अपनाया जाना चाहिए।
इसी क्रम में यदि आरक्षित वर्गों के वे समर्थ लोग जो आरक्षण का लाभ लेकर उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं, स्वेच्छा से उसका परित्याग करें तो सकारात्मक माहौल का निर्माण होगा और मुख्य न्यायाधीश ने जो विचार व्यक्त किए, उन्हें और बल मिलेगा।













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