राजनीतिक दलों के लिए नियमन की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से चुनाव आयोग और विधि आयोग को नोटिस दिया जाना एक सही कदम है। इस मामले की प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई होनी चाहिए, क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिन्होंने राजनीति को धंधा बना लिया है।

ऐसे लोग केवल पैसा उगाहने या अपना रसूख कायम करने के उद्देश्य से राजनीतिक दल गठित करते हैं और चुनाव लड़ते अथवा लड़वाते हैं। राजनीतिक दलों के नियमन की मांग करने वाली याचिका के अनुसार काले धन को सफेद करने वालों के साथ अलगाववादी तत्व भी फर्जी राजनीतिक दलों का गठन करने लगे हैं और इनमें से कुछ अपनी राजनीतिक सक्रियता के नाम पर पुलिस सुरक्षा भी हासिल कर लेते हैं। इसे महज आरोप नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हाल में आयकर विभाग की छापेमारी में कई फर्जी राजनीतिक दल पता चले।

कुछ समय पहले अकेले उत्तर प्रदेश में 20 ऐसे पंजीकृत और गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का मामला सामने आया था, जो दानदाताओं से चंदा लेकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर शेष राशि दानदाताओं को वापस कर देते थे। इस प्रक्रिया में कालेधन और टैक्स चोरी के पैसे का इस्तेमाल होता था। इसे राजनीति की आड़ में किए जाने वाले घोटाले के अलावा और कुछ नहीं कह सकते।

राजनीतिक दल गठित करके गैर कानूनी काम करने का धंधा इसीलिए फल-फूल रहा है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह अपना संगठन बनाकर उसे राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कराने के लिए स्वतंत्र है। देश में ऐसे न जाने कितने राजनीतिक दल हैं, जो कागजी हैं और जो एक अकेले व्यक्ति द्वारा ही संचालित होते हैं। यह ठीक है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी को भी राजनीतिक दल बनाने और चुनाव लड़ने का अधिकार होना चाहिए, लेकिन इसके कुछ तो ठोस नियम-कानून होने चाहिए। चुनाव आयोग अपने यहां हजारों की संख्या में पंजीकृत राजनीतिक दलों के दर्जे को तब तक समाप्त नहीं कर सकता, जब तक वे छह वर्ष तक कोई चुनाव न लड़ें।

कागजी दलों के लिए इस शर्त का दुरुपयोग करना बहुत आसान है। कागजी राजनीतिक दल इसलिए गठित होते हैं, क्योंकि उन्हें टैक्स में छूट के साथ कई विशेषाधिकार भी मिलते हैं। यदि राजनीति करने के नाम पर की जानी वाली मनमानी पर रोक लगानी है तो चुनाव आयोग को अधिकार संपन्न बनाना होगा। यह ठीक नहीं कि कोई मान्यता प्राप्त दल कितनी भी देशघाती हरकत करे, चुनाव आयोग के पास उसकी मान्यता खत्म करने का अधिकार नहीं। यह भी विचित्र है कि अपने देश में संगीन आरोपों में जेल में बंद लोग भी चुनाव लड़ने में समर्थ हैं, पर मामूली मामले में भी जेल गया कोई व्यक्ति वोट नहीं डाल सकता।