प्रणय कुमार। राजस्थान सरकार ने छल-बल या प्रलोभन के माध्यम से किए जाने वाले मत परिवर्तन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से जो ‘धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक’ पारित किया था, वह राज्यपाल की स्वीकृति के बाद कानून बन गया है। इस अधिनियम में जबरन या कपटपूर्ण मतांतरण के विरुद्ध अत्यंत कठोर दंडात्मक प्रविधान किए गए हैं।

इस कानून के अनुसार, मतांतरण से जुड़े सभी अपराध गैर-जमानती होंगे, जिनकी सुनवाई सत्र न्यायालय में की जाएगी और आरोपितों को आसानी से जमानत नहीं मिलेगी। मतांतरण का प्रश्न केवल आस्था या व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विषय नहीं है, बल्कि यह समाज की एकता, सांस्कृतिक संतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों से छल-बल, प्रलोभन या लालच के माध्यम से मतांतरण कराने के अनेक मामले सामने आए हैं।

भारत जैसे सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध राष्ट्र में इस प्रकार की गतिविधियां न केवल धार्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता के लिए चुनौती बनी हुई हैं, बल्कि वे सामाजिक समरसता को भी कमजोर कर रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में राजस्थान सरकार ने यह कानून बनाकर संदेश दिया है कि किसी भी प्रकार का जबरन या कपटपूर्ण मत परिवर्तन न तो व्यक्तिगत अधिकारों के नाम पर स्वीकार्य होगा और न ही समाज के हित में सहनीय। भारत में मतांतरण सदियों से पोषित, संरक्षित, सुनियोजित वैश्विक अभियान का हिस्सा है। इस्लाम और ईसाइयत द्वारा संचालित मतांतरण की प्रक्रिया ने भारत की सनातन संस्कृति और दर्शन को उसकी उदारता, सहिष्णुता और सर्वसमावेशी दृष्टिकोण के कारण हमेशा से निशाने पर रखा है।

आज देश का शायद ही कोई राज्य ऐसा हो, जहां मतांतरण के कपटपूर्ण धंधे को संगठित रूप से न चलाया जा रहा हो। मतांतरण में लिप्त लोग दलित, वंचित और भोले-भाले निर्धन समुदायों को अपना शिकार बनाते हैं। जब प्रलोभन से बात नहीं बनती, तो वे छल, कपट, झूठे चमत्कार और मिथ्या धार्मिक एवं जातिवादी विमर्श का सहारा लेते हैं। कोई सेवा और चिकित्सा के नाम पर यह धंधा करता है, तो कोई जन्नत-दोजख के बहाने। स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि देश के कई क्षेत्रों में मतांतरण ने स्थानीय जनसांख्यिकी और सांस्कृतिक संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। संपन्न माना जाने वाला पंजाब भी पिछले कुछ समय से मतांतरण कराने वाले पादरियों की सक्रियता का शिकार है।

देश के लगभग दस राज्यों ने मतांतरण रोधी कानून बना रखे हैं। इनमें से कुछ राज्यों ने राजस्थान की तरह अपने मतांतरण रोधी कानून को कठोर भी किया है। इनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है, लेकिन इसके बाद भी मतांतरण की खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं। बीते दिनों ही बरेली से खबर आई कि सुमित मैसी नामक पादरी को उसके साथियों समेत मतांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पुलिस के अनुसार ये लोग सामाजिक रूप से कमजोर तबके को निशाना बना रहे थे। इसके पहले खबर आई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मतांतरण रोधी कानून की कुछ धाराओं के बारे में कहा कि वे संविधान की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं।

यह भी ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट चार राज्यों के मतांतरण रोधी कानूनों पर उनसे जवाब मांग चुका है। स्पष्ट है कि मतांतरण रोधी कानूनों को कठोर करने की अपनी सीमाएं हैं। यदि हम मतांतरण रोधी कानूनों के प्रभाव का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि कानून तो बना दिए जाते हैं और उन्हें कठोर भी कर दिया जाता है, पर उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाता।

मतांतरण में लिप्त लोग समाज के जिन वर्गों को अपना शिकार बनाते हैं, उनमें उतनी जागरूकता नहीं होती कि वे इन तत्वों के विरुद्ध समय पर समुचित कानूनी कार्रवाई कर सकें या उनकी तिकड़मों को समय रहते भांप सकें। आखिर कठोर कानून होने के बावजूद मतांतरण के अपराध में संलिप्त सजा पाने वाले आरोपितों की संख्या लगभग नगण्य क्यों है? मतांतरण पर लगाम न लग पाने का एक कारण सामाजिक भी है। आज भी हिंदू समाज जातियों के नाम पर बंटा है। यदि सामाजिक समरसता के भाव को एक सिरे से दूसरे सिरे तक प्रबल नहीं किया गया तो विभाजनकारी शक्तियां समाज को बांटने के उद्देश्य में सफल होती रहेंगी।

अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए लालायित राजनीतिक दल कोढ़ में खाज का काम कर रहे हैं। वे जातीय भेदभाव की आग में घी डालते हैं और कई बार मतांतरण रोधी कानूनों की आलोचना करते हैं। मतांतरण रोकने के लिए समाज के भीतर से ही एकता और समरसता की भावना एवं सांस्कृतिक चेतना का संचार होना चाहिए। केवल विचारों के स्तर पर ही नहीं, जमीन पर भी सेवा, सहयोग, शिक्षा एवं चिकित्सा के सहस्रों प्रकल्प तथा संकल्प साकार होने चाहिए।

मतांतरण केवल आस्था, उपासना एवं पूजा पद्धति आदि का ही रूपांतरण नहीं है। वह राष्ट्रांतरण भी है। जब तक यह बोध समाज के प्रत्येक वर्ग तक नहीं पहुंचेगा, तब तक मतांतरण रोधी कानून पूरी तरह सफल नहीं हो सकेंगे, भले ही उन्हें कितना कठोर क्यों न किया जाता रहे। मतांतरण रोधी कानूनों को कठोर बनाने के साथ इसके लिए भी प्रयत्न होने चाहिए कि किसी का भी छल-कपट से मतांतरण होने ही न पाए। ये प्रयत्न सरकार के प्रत्येक अंग के साथ समाज को भी करने होंगे।

(लेखक शिक्षाविद् हैं)