राजीव सचान। सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता, लेकिन अपने देश में वह नियंत्रित होने का भी नाम नहीं ले रहा है। इसके हैरान-परेशान करने वाले उदाहरण सामने आते ही रहते हैं। ताजा उदाहरण पंजाब में रोपड़ रेंज के डीआइजी हरचरण सिंह भुल्लर की गिरफ्तारी के रूप में है। भुल्लर को एक स्क्रैप व्यापारी से आठ लाख रुपये की रिश्वत मांगने पर गिरफ्तार किया गया।

उन्होंने रिश्वत लेने के लिए जिस दलाल को रख रखा था, उसकी भी गिरफ्तारी हुई। खबरों के अनुसार डीआइजी साहब स्क्रैप व्यापारी से आठ लाख रुपये महीने की रिश्वत मांग रहे थे। सीबीआइ ने उन्हें गिरफ्तार करने के बाद मोहाली, अंबाला आदि शहरों में उनके कई ठिकानों पर छापेमारी की तो साढ़े सात करोड़ रुपये नकद और ढाई किलो सोना मिला। उनके पास से 50 से ज्यादा संपत्तियों के दस्तावेज मिले और मर्सिडीज, आडी समेत कई महंगी गाड़ियां भी।

कहना कठिन है कि उन्होंने भ्रष्टाचार के जरिये कितनी संपत्ति जमा की होगी, क्योंकि अभी इसका विवरण नहीं आया है कि उनके बैंक खातों में कितना पैसा है और लाकरों में क्या रखा है? जो आसानी से कहा जा सकता है, वह यह कि वे दोनों हाथों से संपदा बटोर रहे थे और उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। वे संपन्न घर के थे। उनके पिता पंजाब के डीजीपी रह चुके हैं।

क्या यह कहा जा सकता है कि भुल्लर अकेले ऐसे अफसर होंगे, जो अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार में लिप्त थे? ऐसा हर्गिज नहीं कहा जा सकता। वैसे भी वे पहले ऐसे अधिकारी नहीं, जो भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हों। हर माह-दो माह में ऐसे भ्रष्ट अधिकारी सामने आते ही रहते हैं, जिनके पास से काली कमाई के करोड़ों-अरबों रुपये मिलते हैं।

भुल्लर की गिरफ्तारी के एक दिन बाद ही गुवाहाटी में नेशनल हाईवे एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक और रीजनल अफसर एम. रीतेन कुमार सिंह को सीबीआइ ने दस लाख रुपये की रिश्वत लेते पकड़ा। उनके पास से 2.62 करोड़ रुपये नकद मिले। इसके अलावा यह भी पता चला कि उनके दिल्ली-एनसीआर में 9 लक्जरी फ्लैट, एक प्रीमियम आफिस स्पेस और तीन रेजिडेंशियल प्लाट भी हैं। इसके साथ ही एक फ्लैट बेंगलुरु में, चार फ्लैट, दो प्लाट गुवाहाटी में, दो प्लाट और कृषि भूमि इंफाल में भी मिली। उनके यहां नौ महंगी गाड़ियां भी पाई गईं।

सीबीआइ को उनकी कई संपत्तियां बेनामी होने का संदेह है। वे नेशनल हाईवे-37 के काम की समयसीमा बढ़ाने और कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी करने के बदले दस लाख रुपये की रिश्वत ले रहे थे। अब आप यह और अच्छे से समझ सकते हैं कि अपने देश में दोयम दर्जे का निर्माण क्यों होता है और क्यों सड़कें, पुल आदि बनने के कुछ समय बाद ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि जहां किसी तरह का निर्माण है, वहां भ्रष्टाचार है। इसी तरह जहां भी किसी तरह की सरकारी अनुमति, अनुमोदन, निरीक्षण-परीक्षण, प्रमाणन, नवीनीकरण आदि है, वहां भी लेन-देन है। कहीं-कहीं तो इसके रेट तय हैं।

अपने देश में जायज काम भी नाजायज तरीके यानी पैसे लेकर होते हैं। इससे सरकारी कामों की गुणवत्ता गिरती है और नियम-कानूनों की अनदेखी होती है। इसके नतीजे में अव्यवस्था फैलती है, असंतोष बढ़ता है और देश की प्रगति थमती है। इसी कारण भारत के विकसित बनने का सपना पूरा होना कठिन है। आखिर जब देश को विकसित बनाने में सहायक बनने वाला तंत्र ही उसमें बाधक बनेगा तो यह लक्ष्य कैसे पूरा होगा?

भ्रष्ट सरकारी तंत्र किस तरह देश को क्षति पहुंचा रहा और उसकी बदनामी करा रहा, इसका एक उदाहरण बीते दिनों विषाक्त कफ सीरप से 25 से ज्यादा बच्चों की मौतों के रूप में सामने आया। प्रारंभिक जांच-पड़ताल में पता चला कि दवा निर्माण से लेकर परीक्षण की प्रक्रिया अनदेखी-उपेक्षा का शिकार थी। यह समझना किसी के लिए भी कठिन नहीं होना चाहिए कि इस अनदेखी-उपेक्षा के मूल में भ्रष्टाचार ही रहा होगा।

जब विषाक्त कप सीरप का मामला सतह पर था, तब देश भर से नकली-मिलावटी खोया, मिठाई आदि के सैंपल बड़े पैमाने पर पकड़े जाने की खबरें आ रही थीं। यदि ऐसी खबरें बड़े त्योहारों के समय ही आती हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि शेष दिनों नकली-मिलावटी खाद्य सामग्री नहीं बनती-बिकती। वास्तव में यह काम हर समय होता है।

सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार इसलिए है, क्योंकि हमारे औसत नेता भ्रष्ट हैं। इनमें पार्षद से लेकर मंत्री तक शामिल हैं। सरकारें यह दावा करती हैं कि वे भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस की नीति पर चल रही हैं। यदि ऐसी कोई नीति सचमुच होती तो क्या हरचरण सिंह भुल्लर और रीतेन कुमार सिंह जैसे अधिकारी अकूत संपदा के स्वामी बन सकते थे? उक्त दोनों अधिकारियों को जेल भेज दिया गया और वे निलंबित भी कर दिए गए।

इस बारे में सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि क्या ये दोनों कठोर दंड के भागीदार बनेंगे? भुल्लर ने जेल ले जाते समय कहा कि उन्हें भरोसा है कि कोर्ट इंसाफ करेगा। पता नहीं रीतेन कुमार सिंह ने क्या कहा, लेकिन वे भी अदालतों पर भरोसा जता रहे हों तो हैरानी नहीं। इसलिए नहीं कि देश ने देखा कि दिल्ली हाई कोर्ट के जिस जज के यहां करोड़ों के अधजले नोट मिले, वे तकनीकी रूप से अभी भी जज बने हुए हैं।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)