जागरण संपादकीय: मनरेगा में बदलाव, बदलेगी रोजगार की गारंटी
यह भी उल्लेखनीय है कि मजदूरी के दिवस बढ़ाने के साथ राज्यों को वर्ष में 60 दिन काम रोकने का अधिकार दिया गया है। इसकी मांग भी होती थी। सरकार इस अधिनियम में बदलाव के जरिये ग्रामीण विकास को एक ऐसी दिशा देना चाहती है, जिससे विकसित भारत के लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सके।
HighLights
मनरेगा का नाम और प्रावधान बदले गए
विपक्ष ने महात्मा गांधी की उपेक्षा का आरोप लगाया
ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए बदलाव
केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा का नाम बदलते हुए जिस तरह उसके कई प्रविधान भी बदले और इससे संबंधित संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया, उस पर विपक्ष की आपत्ति पर आश्चर्य नहीं, क्योंकि अब सरकार की हर पहल का विरोध होता है। चूंकि मनरेगा का नया नाम विकसित भारत गारंटी फार रोजगार एंड अजीविका मिशन ग्रामीण अर्थात वीबी-जी राम जी कर दिया गया है, इसलिए विपक्ष अधिक हमलावर है।
उसे यह कहने का अवसर मिल गया है कि सरकार महात्मा गांधी की उपेक्षा कर रही है। सरकार विपक्ष को यह अवसर उपलब्ध कराने से बच सकती थी, लेकिन शायद उसने ऐसा इसलिए किया ताकि इस अधिनियम में जो आमूल-चूल बदलाव प्रस्तावित हैं, उनका वह अधिक विरोध न कर सके।
हालांकि सरकार ने नाम बदलने के औचित्य को सही ठहराया है, लेकिन इसमें संदेह है कि विपक्ष इससे संतुष्ट होगा। वैसे इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि पहली बार किसी योजना का नाम अथवा उसके प्रविधान नहीं बदले गए। मनरेगा भी मूल रूप में नरेगा थी। उसमें महात्मा गांधी का नाम बाद में जोड़कर मनरेगा किया गया था।
मनरेगा को जिस समय लागू किया गया, उस समय परिस्थितियां भिन्न थीं। सामाजिक सुरक्षा की सबसे प्रभावी योजना के रूप में प्रचलित इस अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता एक लंबे समय से महसूस की जा रही थी। विपक्ष के नेता समय-समय पर बदलाव की इस आवश्यकता को रेखांकित भी करते थे, लेकिन अब वे किसी तरह के बदलाव के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं।
यह समझा जाना चाहिए कि मनरेगा से वे उद्देश्य पूरे होने में कठिनाई हो रही थी, जिनके लिए उसे लाया गया था। ऐसे मामले सामने आ रहे थे, जो यह बता रहे थे कि इस योजना में कई तरह की खामियां घर कर गई हैं। बतौर उदाहरण, जहां मजदूरी आधारित कार्य होने चाहिए थे, वहां मशीनों का इस्तेमाल होता था। इसी तरह ग्रामीण विकास के ठोस काम नहीं होते थे। अब सरकार ऐसी व्यवस्था करने जा रही है, जिससे गांवों में बुनियादी ढांचे का निर्माण हो सके। बदले हुए अधिनियम से ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका और आय के अवसरों को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जा सकेगा।
यह भी उल्लेखनीय है कि मजदूरी के दिवस बढ़ाने के साथ राज्यों को वर्ष में 60 दिन काम रोकने का अधिकार दिया गया है। इसकी मांग भी होती थी। सरकार इस अधिनियम में बदलाव के जरिये ग्रामीण विकास को एक ऐसी दिशा देना चाहती है, जिससे विकसित भारत के लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सके।
उचित यह होगा कि संसद में इस विधेयक के गुण-दोष के आधार पर व्यापक बहस हो ताकि इस अधिनियम को कहीं प्रभावी रूप दिया जा सके। सुधार की पहल के अतिरंजित विरोध से बचा जाना चाहिए।













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