जागरण संपादकीय: सुस्ती से उपजी समस्या, दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर कैसे लगेगी लगाम?
समस्या यह है कि कोयला, लकड़ी और उपलों को न जलाया जाए, इसके लिए कोई उपाय नहीं किए जा पा रहे हैं। इसी तरह पत्तियों और कूड़े को जलाने का सिलसिला भी खत्म नहीं किया जा पा रहा है। हाल में दिल्ली में तंदूर में कोयला, लकड़ी के उपयोग पर तो पाबंदी लगा दी गई, लेकिन शेष उत्तर भारत में तो इस दिशा में कुछ भी नहीं किया जा रहा है।
HighLights
कोयला, लकड़ी और उपलों का जलाना प्रमुख समस्या
पत्तियों और कूड़े को जलाने पर नियंत्रण नहीं
उत्तर भारत में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की रोकथाम में सुस्ती पर फिर से नाराजगी जताई और यह कहा कि कोई काम नहीं हो रहा है। उसने अपने पहले के आदेश में कुछ संशोधन किए और पुराने वाहनों को दंडात्मक कार्रवाई से मिली छूट भी समाप्त की। उसकी ओर से दिल्ली और उसके आसपास बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कुछ और भी निर्देश दिए गए। बावजूद इसके इसमें संदेह है कि वायु प्रदूषण पर कोई प्रभावी नियंत्रण किया जा सकेगा।
इसका कारण यह है कि वायु प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया है कि अब तात्कालिक उपायों से कोई बात शायद ही बने। वायु प्रदूषण से मुक्ति के लिए दीर्घकालिक उपायों पर लगातार काम करना होगा। बीते कुछ वर्षों से हो यह रहा है कि जब वायु प्रदूषण सिर उठा लेता है, तब उससे निपटने के प्रयत्न किए जाते हैं। प्रति वर्ष सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण का एक कारण इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति भी है, लेकिन उसका तो कुछ किया नहीं जा सकता।
जो किया जा सकता है, वह यह कि प्रदूषण के सभी कारणों के निवारण पर एक साथ गंभीरता से ध्यान दिया जाए। दिल्ली और उसके आसपास प्रदूषण के बड़े कारणों में वाहनों का उत्सर्जन और सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल है। वाहनों के विषाक्त उत्सर्जन का मूल कारण ट्रैफिक जाम के चलते उनका अत्यंत धीमी गति से चलना है। न तो ट्रैफिक जाम का कोई समाधान खोजा जा पा रहा है और न ही सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल का निदान हो पा रहा है।
यह समझा जाना चाहिए कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली और उसके आसपास की ही समस्या नहीं है। अब यह उत्तर भारत की समस्या बन गया है। सच तो यह है कि ठंड के मौसम में स्वच्छ वायु अब देश के चंद हिस्सों में ही उपलब्ध होती है। इसकी वजह उन कारणों का निवारण न किया जाना है, जो हवा को दूषित करते हैं। अध्ययन यह बताते हैं कि 80 प्रतिशत प्रदूषण धूल एवं धुएं से होता है और उसमें उस धुएं की भी हिस्सेदारी है, जो लकड़ी, कोयला, उपले आदि जलाने से निकलता है।
समस्या यह है कि कोयला, लकड़ी और उपलों को न जलाया जाए, इसके लिए कोई उपाय नहीं किए जा पा रहे हैं। इसी तरह पत्तियों और कूड़े को जलाने का सिलसिला भी खत्म नहीं किया जा पा रहा है। हाल में दिल्ली में तंदूर में कोयला, लकड़ी के उपयोग पर तो पाबंदी लगा दी गई, लेकिन शेष उत्तर भारत में तो इस दिशा में कुछ भी नहीं किया जा रहा है। यही कारण है कि देश के अनेक ग्रामीण इलाकों में भी वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है। यह सही समय है कि इस पर गौर किया जाए कि खाना पकाने के लिए रसोई गैस का वास्तव में कितना इस्तेमाल हो रहा है?













कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।