डॉ. शमिका रवि। गुजरात के द्वारका में एक कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी ने पूछा था कि कितनी महिलाओं ने पांचवीं कक्षा से आगे पढ़ाई की है। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि अधिकांश बुजुर्ग महिलाओं ने हाथ उठाए। जब कारण पूछा गया तो बताया गया कि गायकवाड़ शासनकाल में अगर पिता अपनी बेटियों को नहीं पढ़ाते थे तो उन पर जुर्माना लगता था। उस समय नियमों का कड़ाई से पालन होता था। इसी वजह से कई सास तो पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन उनकी बहुएं नहीं पढ़ पाईं।

यह उदाहरण एक बड़ी सच्चाई बताता है कि केवल अच्छी नीयत ही काफी नहीं है। इसके साथ जवाबदेही, नेतृत्व और नीतियां भी जरूरी हैं। मोदी के नेतृत्व में भारत में यही बदलाव देखने को मिल रहा है। यह परिवर्तन नियम-कानूनों का नहीं, बल्कि सोच बदलने से जुड़ा है। यह परिवर्तन सिर्फ बेटियों के स्कूल जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय समाज की नींव, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और जनसांख्यिकी को बदलने का है, ताकि बेटियों को बदलाव का सबसे सशक्त वाहक बनाया जा सके और यह शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।

गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही मोदी ने समझा कि कन्या भ्रूण हत्या और लड़कियों की अशिक्षा जैसी समस्याएं सिर्फ कानूनों से हल नहीं हो सकतीं। इसके लिए जनता का सोच बदलना जरूरी था। बेहतर सुविधाएं और प्रोत्साहन भी देने थे। वर्ष 2003 में शुरू हुई कन्या केलवणी मुहिम इसी बदलाव का जरिया बनी। इस अभियान ने बेटियों की शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई और स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय जैसी बड़ी समस्या का हल निकाला।

शौचालय के अभाव में कई बच्चियां किशोरावस्था में पढ़ाई छोड़ देती थीं। उक्त योजना के नतीजे बड़े सकारात्मक रहे। एक समय राष्ट्रीय औसत से कम रही गुजरात में महिला साक्षरता दर बढ़कर 70 प्रतिशत तक पहुंच गई। तब राष्ट्रीय औसत 64 प्रतिशत था। सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लक्षित जिलों में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर 90 प्रतिशत तक घट गई।

मोदी ने इस नीति को सिर्फ सरकारी योजना नहीं रहने दिया, बल्कि जनांदोलन बना दिया। उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में मिले उपहारों की नीलामी से लड़कियों की शिक्षा के लिए 19 करोड़ रुपये जुटाए और खुद 21 लाख रुपये का व्यक्तिगत योगदान भी दिया। इन प्रयासों से एक मजबूत संदेश गया कि बेटियों की शिक्षा केवल सरकार का काम नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है।

गुजरात की सफलता से प्रेरित होकर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को 2015 में पूरे देश में शुरू किया गया। इसके दो उद्देश्य थे। पहला कन्या भ्रूण हत्या रोकना और दूसरा बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना। शुरुआत में यह योजना 100 ऐसे जिलों में लागू हुई जहां लिंगानुपात की स्थिति सबसे खराब थी। बाद में यह पूरे देश में लागू की गई। इस योजना का लिंगानुपात सुधार पर सीधा असर पड़ा।

वर्ष 2015 में प्रति 1,000 लड़कों पर लड़कियों की जो संख्या 919 थी, वह 2019-21 तक बढ़कर 929 हो गई। लिंगानुपात में सुधार तो इस तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है। बड़ा बदलाव शिक्षा के जरिये आकार ले रहा है। बेटियों की शिक्षा कई सकारात्मक परिवर्तनों का माध्यम बनती है। पढ़ी-लिखी महिलाएं आम तौर पर देर से शादी करती हैं और कम बच्चे पैदा करती हैं।

भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) अब 2.0 पर आ गई है, जो जनसंख्या को स्थिर रखने के स्तर से भी कम है। यह बदलाव सीधे तौर पर महिलाओं की बढ़ती शिक्षा और कामकाज में भागीदारी से जुड़ा है। शिक्षित महिलाएं गर्भावस्था और प्रसव के समय देखभाल को लेकर भी सावधानी बरतती हैं। बालिका शिशु मृत्यु दर में आ रही कमी इस रुझान को पुष्ट भी करती है।

कामकाजी आबादी में महिलाओं की भागीदारी को लेकर जरूर कुछ चुनौतियां कायम हैं, लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान-तकनीक और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में उनकी संख्या बढ़ रही है। ये वे क्षेत्र हैं, जहां पढ़ाई और कौशल का सबसे अधिक महत्व है। महिलाएं अब सैन्य अधिकारियों से लेकर टेक स्टार्टअप्स के सीईओ पद को सुशोभित कर रही हैं, जिनकी कल्पना कभी उनके करीबियों ने भी नहीं की होगी।

अध्ययन बताते हैं कि शिक्षित माताओं के बच्चे पढ़ाई में बेहतर करते हैं और उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। यह सशक्तीकरण का एक सकारात्मक चक्र है, जो हर पीढ़ी को प्रभावित करता है। मध्य प्रदेश के हालिया सर्वे के अनुसार 89.5 प्रतिशत लोग बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के बारे में जानते हैं और 63.2 प्रतिशत का कहना है कि इस योजना ने उन्हें बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया।

समाज में जल्दी शादी टालने और बेटियों की उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने का समर्थन भी बढ़ा है। ये रुझान उस सोच में बदलाव को दर्शाते हैं, जहां कभी बेटियों को पूरी तरह से स्कूल जाने से रोक दिया जाता था। बेटियों की शिक्षा को प्रोत्साहन और इस मोर्चे पर अब तक की प्रगति हमारे समाज के विकास और पूरे देश में बदलते सांस्कृतिक सोच का एक महत्वपूर्ण क्षण है।

यह बदलाव गहरा और स्थायी है, जिसे युवा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सोच-समझकर बनाई गई प्रभावी नीतियां संभव बना रही हैं। इन पहलों का दीर्घकालिक असर और भी स्पष्ट होगा, क्योंकि यह सकारात्मक चक्र न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि पूरे समुदायों को बेहतर बनाता है। आज की पढ़ी-लिखी बेटियां सिर्फ छात्राएं नहीं हैं, वे कल की संभावित नेता, नीति-नियंता और बदलाव लाने वाली शक्ति हैं। शिक्षित बेटियों की भविष्य में पारिवारिक आय में योगदान करने और बच्चों की शिक्षा में निवेश करने की अधिक संभावना भी होती है।

महिला शिक्षा में प्रत्यक्ष दिख रही प्रगति को लेकर हम भविष्य को लेकर आशान्वित हो सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में शुरू किए गए बदलाव आगे और गति पकड़ेंगे। इससे एक ऐसा समाज आकार लेगा, जहां हर लड़की को सीखने, बढ़ने और सफल होने का समान अवसर मिले। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है, क्योंकि जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप पूरे समाज को आगे ले जाते हैं।

(लेखिका प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य हैं)