विचार: अस्थिरता पैदा करने वाला ट्रंप प्रशासन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित फैसलों से दुनिया में अस्थिरता आई है। अमेरिका में 'स्पोइल्स सिस्टम' के तहत समर्थकों को पद मिलते हैं, जबकि भारत में योग्यता आधारित सिविल सेवा है। ट्रंप के फैसलों में प्रक्रियाओं का पालन न होने से भ्रम फैला। स्पोइल्स सिस्टम में भाई-भतीजावाद बढ़ता है, जबकि भारत की सिविल सेवा राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षित है। अस्थिरता पैदा करने वाली इस प्रणाली के विपरीत, भारत की व्यवस्था बेहतर है।
अजय कुमार। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित फैसलों से आए दिन दुनिया भर में कोई नई हलचल देखने को मिल रही है। इस हलचल के कुछ सूत्र कहीं न कहीं अमेरिकी नौकरशाही से भी जुड़े हैं। अमेरिका, मेक्सिको और ब्राजील जैसे देशों में स्पोइल्स सिस्टम प्रणाली लागू है। शासन-प्रशासन संबंधी हलकों में इसे ‘लूट आधारित पद वितरण प्रणाली’ भी कहा जाता है।
इससे यही आशय है कि जब कोई पार्टी या नेता सत्ता में आता है तो उनके समर्थकों, कार्यकर्ताओं और वफादार लोगों को सरकारी पदों, नौकरियों और नियुक्तियों में प्राथमिकता मिलती है। इसमें योग्यता पर राजनीतिक निष्ठा को वरीयता दी जाती है। इसके विपरीत भारत, जर्मनी, जापान, कनाडा देशों में स्थायी सिविल सेवा की व्यवस्था है, जो नीतिगत निरंतरता को सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध होती है। आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्पोइल्स सिस्टम को संस्थागत स्वरूप देने वाला अमेरिका पहला देश था।
वर्ष 1829–1837 के बीच राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन ने इसे आगे बढ़ाया। जैक्सन और उनके समर्थकों की दलील थी कि सरकारी पद किसी एक स्थायी वर्ग के एकाधिकार में नहीं होने चाहिए और उनमें बदलाव होते रहने चाहिए। ऐसी व्यवस्था ने अक्षमता, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अस्थिरता को बढ़ावा दिया तो उसमें सुधार की मांग भी उठती रही।
वर्ष 1881 में राष्ट्रपति जेम्स ए. गारफील्ड की हत्या ने अमेरिकी संसद को पेंडलटन सिविल सेवा सुधार अधिनियम पारित करने के लिए प्रेरित किया। इसके लागू होने से कई संघीय पदों के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं, कार्यकाल की सुरक्षा और मेरिट-आधारित भर्तियों की व्यवस्था हुई।
हालांकि कुछ लिपिकीय एवं तकनीकी नौकरियां ही इस योग्यता आधारित प्रणाली के दायरे में आ सकीं, जबकि वरिष्ठ पद राजनीतिक अनुकंपा के अधीन ही रहे। आज भी विदेश, रक्षा, न्याय, घरेलू सुरक्षा, वित्त और कई नियामकीय एजेंसियों में शीर्ष पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां ही होती हैं। कैबिनेट सचिव से लेकर राजदूत तक करीब 4,000 अहम पदों पर नियुक्ति राष्ट्रपति ही निर्धारित करते हैं।
ट्रंप के अप्रत्याशित फैसलों के आलोक में इस व्यवस्था की कार्यप्रणाली को समझा जा सकता है। पिछले महीने ट्रंप ने एकाएक एच1बी वीजा से जुड़े नियम बदल दिए। सामान्य तौर पर ऐसे फैसले एक स्थापित प्रक्रिया और व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिए जाते हैं। इसमें विभिन्न पक्षों के बीच परामर्श, कानूनी समीक्षा और संबंधित विभागों के साथ समन्वय जैसे पहलू जुड़े होते हैं। ट्रंप के उक्त फैसले से प्रतीत हुआ कि इसमें अपेक्षित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। इससे भ्रम और अफरातफरी का ऐसा माहौल बना कि माइक्रोसाफ्ट और एमेजोन जैसी दिग्गज कंपनियों को आननफानन अपने एच1बी वीजाधारकों को अमेरिका से बाहर जाने से बचने या जल्द से जल्द अमेरिका लौटने संबंधी निर्देश जारी करना पड़ा। सरकारी अधिकारियों की विरोधाभासी बयानबाजी ने स्थिति को और उलझा दिया।
जैसे वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने बताया कि यह शुल्क हर साल लिया जाएगा, जिस पर व्हाइट हाउस ने बाद में स्पष्टीकरण जारी किया कि केवल नए आवेदकों से लिया जाना वाला यह शुल्क एक बार लिया जाएगा। स्पष्ट है इसमें मानक प्रक्रियाएं नहीं अपनाई गईं।
चूंकि स्पोइल्स प्रणाली के अंतर्गत होने वाली नियुक्तियां राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत ही प्रभावी रहती हैं, इसलिए उनके भीतर ब्लैक स्वान यानी अप्रत्याशित निर्णयों का समर्थन करने की प्रवृत्ति भी अधिक देखने को मिलती है, ताकि हर प्रकार की स्थिति में अधिकारी अपने पद पर बने रह सकें। स्पष्ट है कि यह प्रणाली एकाएक लिए जाने वाले निर्णयों और त्वरित नीतिगत परिवर्तनों को संरक्षण प्रदान करती है। इसके विपरीत विशुद्ध योग्यता आधारित या स्थायी नौकरशाही में पेशेवर प्रशासक नीतिगत निरंतरता के साथ ही राजनीतिक परिदृश्य के स्तर पर भी स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। स्पोइल्स प्रणाली के और भी नुकसान हैं।
पदाधिकारी दीर्घकालिक हित के बजाय अपने अल्पकालिक हित या स्वार्थों को पोषित करने की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं। हालांकि इस प्रणाली का एक लाभ यह है कि इसमें दबाव वाले मुद्दों पर निर्णायक फैसलों की गुंजाइश मिलती है और इसमें लालफीताशाही के चलते होने वाली देरी की आशंका घट जाती है, लेकिन मेक्सिको, फिलीपींस और इंडोनेशिया आदि में किए गए शोध यही संकेत करते हैं कि ऐसी प्रणालियों में भाई-भतीजावाद, पक्षपात और सार्वजनिक धन-संसाधनों के दुरुपयोग की आशंका कहीं अधिक बढ़ जाती है। इसके विपरीत, मानक भर्ती और जवाबदेही तंत्र के साथ योग्यता-आधारित प्रणालियां उक्त जोखिमों को कम करती हैं। संभवत: यही कारण रहा होगा कि भारत के राष्ट्र निर्माताओं ने ऐसी योग्यता आधारित सिविल सेवा के महत्व को पहचाना, जो पूर्वाग्रह एवं पक्षपात से मुक्त हो।
उन्होंने संविधान में इसकी तटस्थता को स्थापित किया। सार्वजनिक सेवा आयोगों को एक निष्पक्ष और पेशेवर नौकरशाही के अग्रदूत के रूप में स्थापित किया और सुनियोजित रूप से इसे राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षित रखा। ऐसा नहीं है कि मेरिट आधारित नौकरशाही प्रणाली प्रत्याशित फैसलों को लेकर पूरी तरह से मुक्त है, लेकिन इसमें ऐसे झटकों की आशंका अपेक्षाकृत कम होती है। स्पोइल्स प्रणाली के उलट इसमें संस्थागत मानकों, विशेषज्ञता और प्रक्रियात्मक विधि का कड़ाई से पालन होता है।
इस संदर्भ में भारत को भाग्यशाली कहा जा सकता है कि यहां एक पेशेवर एवं स्थायी सिविल सेवा प्रणाली लागू है। हालांकि कोई भी प्रणाली अपने आप में पूर्ण या त्रुटिरहित नहीं, लेकिन अंतर्निहित निगरानी एवं नियंत्रण के साथ ही निरंतरता का भाव इसे इस रूप में बेहतर बनाता है कि यह उन व्यवधानों से बचाने में उपयोगी है, जिनकी कई बार देश को दूरगामी कीमत चुकानी पड़ती है।
स्पष्ट है कि स्पोइल्स प्रणाली शांतिपूर्ण समय में उपयोगी हो सकती है, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान यह न केवल विफल हो जाती है, बल्कि अव्यवस्था और दीर्घकालिक क्षति के लिए उत्प्रेरक भी बन जाती है।
(लेखक संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं पूर्व रक्षा सचिव हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।