जनहित याचिकाओं की आड़ में कैसे और किसके हित साधे जाते हैं, इसका पता उस याचिका से चलता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से पांच लापता रोहिंग्या घुसपैठियों का पता लगाने की मांग की गई। इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार सुनने के बाद याचिकाकर्ता ने भले ही यह सफाई दी हो कि उनका इरादा यह सुनिश्चित करना है कि रोहिंग्याओं का प्रत्यर्पण तय प्रक्रिया के तहत किया जाए, लेकिन उन्होंने जिस तरह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लिया, उससे यह सहज ही समझा जा सकता है कि वे उन्हें शरणार्थी के रूप में भारत में रहने देने की सुविधा चाह रहे थे।

यह याचिका यह भी बताती है कि कुछ लोग शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच का अंतर समझने के लिए तैयार नहीं। घुसपैठिए किसी भी देश से आए हों, वे नरमी के हकदार नहीं हो सकते और तब तो बिल्कुल भी नहीं, जब वे भारत की सीमाओं में प्रवेश करके छल-कपट से भारतीय नागरिक बनने की चेष्टा करते रहते हों। यह चेष्टा न केवल अवैध तरीके से भारत आए रोहिंग्या करते हैं, बल्कि बांग्लादेश के घुसपैठिए भी।

अंततः ये सभी घुसपैठिए देश के संसाधनों पर बोझ ही बनते हैं। इसकी भी अनदेखी न की जाए कि छल-कपट से भारतीय नागरिक बन गए बांग्लादेशी बंगाल और असम के कुछ इलाकों में चुनाव नतीजे प्रभावित करने में समर्थ हो गए हैं। यह खतरनाक स्थिति है।

यह पहली बार नहीं, जब अवैध रूप से घुस आए रोहिंग्याओं के प्रति हमदर्दी जताते हुए उन्हें राहत देने की अपेक्षा व्यक्त की गई हो। जब भी घुसपैठिए रोहिंग्याओं का पता लगाने और उन्हें निकाल बाहर करने की कोई पहल होती है, कुछ कथित मानवाधिकारवादी उनके बचाव में सामने आ जाते हैं। एक बार तो ऐसे लोगों ने यह फर्जी कहानी गढ़ी थी कि रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंक दिया गया।

ऐसे ही लोग तब भी सक्रिय हो जाते हैं, जब बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर करने की कोई कोशिश होती है। इसका ही परिणाम है कि बांग्लादेश और म्यांमार से होने वाली घुसपैठ थम नहीं रही है। यह सामान्य बात नहीं कि बंगाल और पूर्वोत्तर की सीमा से घुसे रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों ने जम्मू और हैदराबाद तक में अपने ठिकाने बना लिए हैं। ऐसा तभी हो सकता है, जब कोई उनकी मदद कर रहा हो।

स्पष्ट है कि घुसपैठियों का पता लगाने के साथ ही उनकी मदद करने वालों की भी पहचान करनी होगी। यह आसान काम नहीं, क्योंकि कुछ दलों के नेता संकीर्ण राजनीतिक कारणों से घुसपैठियों को शरण देने का काम करते हैं। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या घुसपैठियों को शरणार्थी मानने की मानसिकता पर प्रहार किया। उसे जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग को भी रोकना होगा।