क्षमा शर्मा। दहेज को लेकर बीते दिनों एक ही दिन दो खबरें छपीं। पहली खबर में उच्चतम न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई में कहा कि विवाह एक पवित्र बंधन है। यह आपसी विश्वास और परस्पर सम्मान पर टिका है, किंतु दुख की बात यह है कि दहेज की बुराई की वजह से यह पवित्र रिश्ता व्यावसायिक लेनदेन बनकर रह गया है। दूसरी खबर उम्मीद जगाने वाली थी।

इस खबर के अनुसार एक लड़के ने शादी में मिले 31 लाख रुपये यह कहते हुए लौटा दिए कि वह लड़की के पिता की मेहनत की कमाई को नहीं ले सकता। ऐसी खबरें उम्मीद भी जगाती हैं।
हो सकता है कि एक दिन ऐसा आए जब दहेज बीती बात हो जाए, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिखता, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने अपने समक्ष पेश मामले में यह भी कहा कि दहेज की बुराई को अक्सर उपहार या मर्जी से दिए गए चढ़ावे के रूप में छिपाने की कोशिश की जाती है, लेकिन असल में वह सामाजिक रुतबा दिखाने और पैसे के लालच को पूरा करने का जरिया बन गया है।

न्यायालय ने यह टिप्पणी एक ऐसे व्यक्ति की जमानत याचिका रद करते हुए की, जिस पर आरोप था कि उसने पत्नी को शादी के चार महीने बाद दहेज के लिए जहर दे दिया। शीर्ष न्यायालय ने यह माना कि दहेज एक बहुत गंभीर अपराध है और इसके कारण महिलाओं पर अन्याय हो रहा है। दहेज की मांगों के कारण क्रूरता भी बढ़ती जाती है। एक महिला की कोई गलती नहीं होती, लेकिन दूसरों के लालच के कारण उसकी जान चली जाती है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पढ़कर करीब चार दशक पहले दूरदर्शन पर प्रसारित एक कार्यक्रम याद आ गया। उसमें एक अस्पताल के बर्न वार्ड से एक ऐसी महिला का इंटरव्यू दिखाया गया था, जिसे उसके पति ने जला दिया था। जब दूरदर्शन के लिए यह कार्यक्रम बनाने वाले लोग इस स्त्री के पति के पास पहुंचे थे तो वह पूरी बातचीत में मुस्कुराता रहा था, जैसे उसने कोई बहुत बड़ा काम किया हो।

उसी दौरान एक महिला की बेटी को दहेज के लिए जलाकर मार दिया गया था। यह वृद्ध महिला उन दिनों स्त्री संगठनों द्वारा आयोजित हर धरने-प्रदर्शन में आती थी और अपनी बेटी के साथ हुए अन्याय को बताती थी। बाद में उन्होंने शक्तिशालिनी नाम से एक संगठन भी बनाया।

कुछ समय पहले प्रायः अखबारों में ऐसी खबरें आती थीं कि स्टोव फटने के कारण बहू की जलने से मौत हो गई। बहुत बार तो घरों में रसोई गैस होने के बावजूद बहू को न जाने क्यों स्टोव पर खाना बनाना पड़ता था? सच यही है कि कोई स्टोव फटता नहीं था, बल्कि बहू पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा दी जाती और उसे दुर्घटना का रूप दे दिया जाता था। यह स्थिति संपन्न कहे जाने वाले घरों तक में थी।

यही कारण है कि देश में दहेज संबंधी धारा 498 ए काफी कठोर है। यदि किसी महिला की शादी के सात वर्ष के अंदर जलने या किसी चोट से मृत्यु हो जाती है, तो उसे न्याय संहिता की धारा 80 के अंतर्गत दहेज हत्या के रूप में ही देखा जाता है।

वर्ष 1961 में बनाए गए दहेज निरोधक अधिनियम के अंतर्गत दहेज लेना या देना अपराध है, मगर देखा यह गया है कि कानून एक तरफ है और समाज अपनी गति से चलता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार बढ़ा है, दहेज की मांग भी उसी तरह सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती गई है। पहले जो काम साइकिल से चल जाता था, वह अब कार से भी नहीं चलता। बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो दहेज का इस रूप में समर्थन करते हैं कि नई गृहस्थी सुचारु रूप से चल सके, इसके लिए सामान के लेनदेन की प्रथा शुरू की गई।

एनसीआरबी के अनुसार 2017 से 2023 के पांच सालों में भारत में प्रति वर्ष दहेज के कारण सात हजार मृत्यु दर्ज की गईं। एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार 2023 में दहेज से संबंधित अपराधों में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई और अदालतों में दहेज के हजारों मामले लंबित हैं। स्पष्ट है कि दहेज अब भी एक गंभीर समस्या है। कुछ समय पहले विश्व बैंक ने भारत के ग्रामीण इलाकों में हुई शादियों का एक अध्ययन किया था। इसमें पाया गया कि 95 प्रतिशत विवाह में दहेज दिया गया। इस अध्ययन से यह भी पता चला कि पांच सालों में छह हजार से अधिक हत्याओं के पीछे सीधे तौर पर दहेज का हाथ था।

ऐसे नारे आज भी दिखाई देते हैं कि दहेज लेना और देना अपराध है, लेकिन बढ़ते उपभोक्तावाद, दिखावे की इच्छा और तड़क-भड़क वाली शादियों की मांग ने दहेज में कई गुना वृद्धि की है। जिसका जितना बड़ा सरकारी पद, उसे उतना ही अधिक दहेज। इसमें दहेज देने वाले माता-पिता की भूमिका भी होती है। अफसोस यह कि लोग दूसरों के सामने उदाहरण पेश करते हैं कि देखो फलां के विवाह में इतनी नकदी और इतना सामान मिला, तो हमारा बेटा क्या किसी से कम है। कुछ साल पहले एक महिला ने बताया था कि उसके एक रिश्तेदार का यूपीएससी में चयन हो गया तो अगले ही दिन एक व्यक्ति सूटकेस भरकर नोट लेकर उनके घर पहुंच गया।

हम अक्सर महिलाओं की स्थितियां सुधारने की बातें करते हैं, लेकिन न जाने क्यों दहेज जैसे राक्षस से नहीं निपट पाते। आज के दौर में जब बड़ी संख्या में लड़कियां पढ़-लिख रही हैं, अपने पांवों पर खड़ी हो रही हैं, तब दहेज को अपने आप खत्म हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। अध्ययन बताते हैं कि लड़कियों को गर्भ में मार देने के पीछे लड़के की चाहत के अलावा एक बड़ा कारण दहेज भी है।

(लेखिका साहित्यकार हैं)