जागरण संपादकीय: जारी रहे एसआईआर, सुप्रीम कोर्ट ने भी माना आवश्यक काम
तथ्य यह है कि अनेक दल इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता बीएलओ का काम आसान करें। उचित यह होगा कि आम लोग बीएलओ का सहयोग करें। लोकतंत्र को पुष्ट करने वाली एसआईआर प्रक्रिया सही तरीके से संपन्न हो, यह जिम्मेदारी आम जनता की भी है। सरकारी कर्मियों की तरह आम लोगों के भी कुछ दायित्व होते हैं। उन्हें अपने नागरिक धर्म का निर्वाह करना चाहिए। कई जगह यह देखने में आ रहा है कि बीएलओ को कुछ लोगों के यहां बार-बार जाना पड़ रहा है या फिर फोन करना पड़ रहा है।
HighLights
मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह यह कहा कि यह एक आवश्यक काम है और संबंधित कर्मचारियों यानी बीएलओ को इसे करना ही होगा, उसके बाद इस प्रक्रिया के खिलाफ खड़े लोगों को यह समझ आ जाए तो अच्छा कि इस पहल का विरोध करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
यह विचित्र है कि विपक्षी दल एसआईआर के खिलाफ न केवल संसद में मोर्चा खोले हुए हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाओं का ढेर लगाए हुए हैं। इसके पहले वे बिहार में इस प्रक्रिया के दौरान वोट चोरी का आरोप लगाते हुए सड़कों पर उतरे थे। यह व्यर्थ की कसरत ही सिद्ध हुई थी। बावजूद इसके विपक्षी दल यह समझने को तैयार नहीं कि वे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।
आखिर जब अतीत में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण होता रहा है और अभी हाल में बिहार में इस काम को कहीं कम समय में किया गया, तब फिर विपक्षी दल किस आधार पर यह आस लगाए हैं कि सुप्रीम कोर्ट 12 राज्यों में जारी इस प्रक्रिया को रोक देगा? सुप्रीम कोर्ट लगातार यही संकेत दे रहा है कि वह एसआईआर को रोकने के पक्ष में नहीं, लेकिन शायद विपक्षी दल दीवार पर लिखी इबारत पढ़ने को तैयार नहीं। यह राजनीतिक हठधर्मी ही है।
विपक्षी दलों की इस बात में तो कुछ तत्व दिखता है कि एसआईआर का काम कर रहे बीएलओ दबाव में हैं, लेकिन इस समस्या का समाधान यह नहीं कि इस प्रक्रिया को रोक दिया जाए। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि वे एसआईआर कर रहे कर्मचारियों की संख्या बढ़ाएं, उनके काम का बोझ कम करें और आवश्यक हो तो उन्हें अवकाश भी दें।
इससे इन्कार नहीं कि एसआईआर का काम अपेक्षाकृत श्रमसाध्य है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इस कारण उसे कराया ही न जाए। ऐसे तो कल को कोई यह भी कह सकता है कि जनगणना एक जटिल काम है और उसे न कराया जाए तो अच्छा। यदि कोई काम तनिक कठिन या समय खपाऊ है तो वह अनावश्यक नहीं हो जाता। जो विपक्षी दल एसआईआर के विरोध में खड़े हैं, उन्हें बताना चाहिए कि क्या उनके बीएलए बीएलओ की मदद कर रहे हैं?
तथ्य यह है कि अनेक दल इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता बीएलओ का काम आसान करें। उचित यह होगा कि आम लोग बीएलओ का सहयोग करें। लोकतंत्र को पुष्ट करने वाली एसआईआर प्रक्रिया सही तरीके से संपन्न हो, यह जिम्मेदारी आम जनता की भी है। सरकारी कर्मियों की तरह आम लोगों के भी कुछ दायित्व होते हैं। उन्हें अपने नागरिक धर्म का निर्वाह करना चाहिए। कई जगह यह देखने में आ रहा है कि बीएलओ को कुछ लोगों के यहां बार-बार जाना पड़ रहा है या फिर फोन करना पड़ रहा है।












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