जागरण संपादकीय: संसद सत्र का औचित्य, शुरुआत हंगामे से ही हुई
संसदीय प्रक्रिया के लिए यह कोई शुभ संकेत नहीं कि विधेयक बिना किसी चर्चा के पारित हो जाएं। यदि विधेयक बिना चर्चा पारित होने लगेंगे तो फिर संसद सत्र बुलाने का औचित्य ही खत्म हो जाएगा। हैरानी नहीं कि संसद के इस सत्र में कुछ और विधेयक बिना चर्चा के ही पारित हो जाएं। इस सिलसिले को रोका जाना चाहिए और यह तब रुकेगा, जब पक्ष-विपक्ष संसद चलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।
HighLights
विधेयक बिना चर्चा पारित होना ठीक नहीं।
संसद सत्र बुलाने का औचित्य खत्म हो जाएगा।
पक्ष-विपक्ष संसद चलाने को प्राथमिकता दें।
जैसी आशंका थी, वैसा ही हुआ, संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हंगामे से ही हुई। सबसे अधिक हंगामा मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर को लेकर हुआ। विपक्ष की मांग है कि बिहार के बाद अन्य राज्यों में जारी एसआइआर को लेकर सदन में चर्चा कराई जाए। इस पर चर्चा हो तो सकती है, लेकिन आखिर सरकार इस पर विपक्ष के उन सवालों का जवाब कैसे दे सकती है, जो वस्तुतः चुनाव आयोग को देने हैं?
एसआइआर की प्रक्रिया चुनाव आयोग की ओर से कराई जा रही है और इसे लेकर उठे सवालों का सही-सटीक जवाब वही दे सकता है। ऐसा नहीं है कि चुनाव आयोग एसआइआर को लेकर उठे सवालों का जवाब देने से मना कर रहा है। वह राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात के समय तो उनके सवालों का जवाब दे ही रहा है, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है।
बिहार में एसआइआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में न जाने कितनी बार सुनवाई हुई। इस दौरान चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों के वकीलों की ओर से उठाए गए हर सवाल का जवाब दिया। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में एसआइआर पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं समझी, इसलिए यह सहज ही समझा जा सकता है कि वह चुनाव आयोग के जवाब से संतुष्ट रहा।
अब 12 राज्यों में एसआइआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। इसमें संदेह है कि इस सुनवाई से विपक्षी दलों को कुछ हासिल हो सकेगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट एसआइआर में किसी तरह की त्रुटि नहीं देख रहा है। एसआइआर पर रोक की सूरत इसलिए भी नहीं दिखती, क्योंकि बिहार की तरह अन्य राज्यों में भी ऐसा होना समय की मांग है।
यह समझा जाए तो बेहतर कि मतदाता सूचियों को ठीक करने का एक ही उपाय है और वह है एसआइआर। विपक्ष एसआइआर को लेकर अपने सुझाव तो दे सकता है, लेकिन यदि वह यह चाहेगा कि ऐसा किया ही न जाए तो यह संभव नहीं। एसआइआर को लेकर संसद में हंगामा कर विपक्ष चर्चा में भले आ गया हो, लेकिन एक तरह से वह हारी हुई लड़ाई लड़ते हुए दिख रहा है। इसका पता इससे चलता है कि लोकसभा में हंगामे के बीच ही मणिपुर से संबंधित जीएसटी विधेयक बिना किसी चर्चा के पारित हो गया। बिना चर्चा विधेयक पारित होना अपवाद तो हो सकता है, लेकिन उसे चलन नहीं बनने देना चाहिए।
संसदीय प्रक्रिया के लिए यह कोई शुभ संकेत नहीं कि विधेयक बिना किसी चर्चा के पारित हो जाएं। यदि विधेयक बिना चर्चा पारित होने लगेंगे तो फिर संसद सत्र बुलाने का औचित्य ही खत्म हो जाएगा। हैरानी नहीं कि संसद के इस सत्र में कुछ और विधेयक बिना चर्चा के ही पारित हो जाएं। इस सिलसिले को रोका जाना चाहिए और यह तब रुकेगा, जब पक्ष-विपक्ष संसद चलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।

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