विचार: वास्तविकता से मुंह मोड़ती आधुनिकता, लिव-इन-रिलेशनशिप की स्थिरता सवालों के घेरे में
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि संबंध टूटने पर दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाया जा सकता, यह तभी मान्य होगा जब ठोस सबूत हों। न्यायालय ने लिव-इन संबंधों को लेकर सख्त टिप्पणी की है, कहा कि ऐसे संबंध भारतीय मूल्यों के विपरीत हैं और अक्सर कानूनी विवादों का कारण बनते हैं। युवा पीढ़ी लिव-इन को आधुनिक मानती है, पर बाद में विवाह की स्थिरता और सुरक्षा की ओर लौटती है। न्यायालय ने विवाह संस्था को नष्ट करने की योजना पर चिंता जताई है।
HighLights
संबंध टूटने पर दुष्कर्म का आरोप नहीं
लिव-इन भारतीय मूल्यों के विपरीत
विवाह संस्था को नष्ट करने की योजना
डॉ. ऋतु सारस्वत। सर्वोच्च न्यायालय की यह हालिया टिप्पणी चर्चा का विषय बनी कि 'किसी संबंध के समाप्त हो जाने या अप्रिय हो जाने मात्र से उसे बाद में दुष्कर्म के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। विवाह के झूठे वादे पर लगाए गए दुष्कर्म के आरोप तभी स्वीकार्य होंगे, जब वे स्पष्ट और ठोस साक्ष्य से समर्थित हों। वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंध का टूट जाना पुरुष के खिलाफ दुष्कर्म के आपराधिक मामले की आधारशिला नहीं बन सकता।’
औरंगाबाद के एक वकील पर दुष्कर्म के मामले को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने यह भी कहा, ‘हर बिगड़े हुए संबंध को दुष्कर्म के अपराध में परिवर्तित करना न केवल अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि आरोपित पर अमिट कलंक और गंभीर अन्याय भी थोपता है। आपराधिक न्याय प्रणाली का ऐसा दुरुपयोग अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है।’
यह पहला मौका नहीं है कि न्यायालय ने लिव-इन-में रह रहे जोड़ों पर ऐसी तल्ख टिप्पणी की हो। जून 2025 में शाने आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘लिव-इन संबंध भारतीय मध्यमवर्गीय समाज के मूल्यों के विपरीत हैं और अक्सर कानूनी विवाद का कारण बनते हैं, जिसका महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।’
अभी भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था ऐसे संक्रमण काल से गुजर रही है, जहां कथित नारीवादी समूह यह सिद्ध करने में लगे हैं कि स्त्री की वास्तविक स्वतंत्रता विवाह से मुक्ति में है। यही कारण है कि देश में ऐसी युवतियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जो विवाह को बंधन और दकियानूसी अवधारणा मानकर उसे नकार रही हैं और उसके विकल्प में लिव-इन रिलेशनशिप को महत्व दे रही हैं।
आज की भारतीय युवा पीढ़ी स्वयं को आधुनिक मानते हुए परंपरागत नियमों की अनदेखी कर लिव-इन रिलेशनशिप को स्वतंत्र सोच का हस्ताक्षर मानकर स्वयं की पीठ थपथपाती दिखती है, पर कुछ समय बाद वह स्वयं को ऐसे चक्रव्यूह में फंसा पाती है, जिससे बाहर निकलना आसान नहीं। अदनान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (2023) मामले में न्यायालय ने कहा था, ‘पहली नजर में लिव-इन रिश्ता बहुत आकर्षक लगता है…, पर समय बीतने पर… ऐसे जोड़ों को अहसास होने लगता है कि उनके रिश्ते को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है और वह जीवन भर नहीं चल सकता…।’
मानव विज्ञानी जेडी अनविन एक विस्तृत और गहन शोध के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि किसी भी समाज के सांस्कृतिक पतन के पीछे मुख्य कारण यौन परंपरा में ढील है। अनविन के अनुसार संस्कृति का उच्चतम उत्कर्ष सबसे शक्तिशाली संयोजन विवाह पूर्ण शुद्धता के साथ ‘पूर्ण एकपत्नीत्व’ था। वे संस्कृतियां जिन्होंने कम से कम तीन पीढ़ियों तक इस संयोजन को बनाए रखा, वे साहित्य, कला, विज्ञान, वास्तुकला और कृषि सहित हर क्षेत्र में सभी अन्य संस्कृतियों से आगे रहीं। निश्चित रूप से वह युवा पीढ़ी जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही विकास और आत्म-संतुष्टि का अंतिम मानदंड मानती है, उसके लिए समाज, संस्कृति और सामूहिक उत्तरदायित्व का प्रश्न अप्रासंगिक और कभी-कभी दमनकारी तक प्रतीत होता है।
यदि लिव-इन संबंधों को विवाह की तुलना में अधिक सुरक्षित, स्वतंत्र और आधुनिक विकल्प माना जाए, तो यह विचारणीय है कि ऐसे संबंध टूटने के बाद तमाम युवक-युवतियां आपराधिक आरोपों, भावनात्मक विवादों और कानूनी संघर्षों में क्यों उलझ जाते हैं? यदि यह व्यवस्था वास्तव में उनके हितों की रक्षा करती, तो अदालतों में ऐसे मामलों की संख्या लगातार न बढ़ती। इसका सबसे विरोधाभास तो तब दिखता है, जब लिव-इन को ‘सशक्तीकरण’ और ‘स्वतंत्रता’ का प्रतीक मानने वाली युवतियां कुछ वर्षों के सहजीवन के बाद उसी साथी से विवाह की अपेक्षा करने लगती हैं।
स्वतंत्रता के नाम पर विवाह जैसी संस्था को पुरातन या बाधक बताने वाली महिलाएं अंततः इसी विवाह संस्था में स्थिरता, सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति तलाशने लगती हैं। यह दर्शाता है कि लिव-इन का आकर्षण भले ही शुरुआत में आधुनिक और सुविधाजनक प्रतीत हो, किंतु समय के साथ सामाजिक वास्तविकताएं और भावनात्मक अपेक्षाएं उन्हें फिर उसी ढांचे की ओर लौटने के लिए प्रेरित करती हैं, जिसे वे पहले अनावश्यक बंधन मानकर अस्वीकार कर चुकी होती हैं।
अदनान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और तीन अन्य के मामले में ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी में कहा था कि विवाह संस्था व्यक्ति को जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति, प्रगति और स्थिरता प्रदान करती है, वह लिव-इन-रिलेशनशिप कभी नहीं दे सकता। लिव-इन को इस देश में विवाह संस्था के अप्रचलित हो जाने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसे कई तथाकथित विकसित देशों में विवाह संस्था की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। हम भविष्य में अपने लिए बड़ी समस्या पैदा करने जा रहे हैं।
इस देश में विवाह संस्था को नष्ट करने और समाज को अस्थिर करने और देश की प्रगति में बाधा डालने की व्यवस्थित योजना है। कुछ फिल्मों और टीवी धारावाहिकों से विवाह संस्था का खात्मा हो रहा है। विवाहित रिश्तों में साथी के साथ बेवफाई और स्वतंत्र लिव-इन-रिलेशनशिप को प्रगतिशील समाज की निशानी बताया जा रहा है। युवा पीढ़ी ऐसे दर्शन की ओर आकर्षित हो रही है, क्योंकि उन्हें इसके दीर्घकालिक परिणामों का पता नहीं है।… एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते में कूदना किसी भी तरह से संतोषजनक जीवन नहीं है। हर मौसम में साथी बदलने की अवधारणा को स्थिर और स्वस्थ समाज की पहचान नहीं माना जा सकता।
विवाह संस्था व्यक्ति के जीवन को जो सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है, वह लिव-इन रिलेशनशिप से संभव नहीं। ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
न्यायालय की यह टिप्पणी चेतावनी देती है कि यदि युवा पीढ़ी आधुनिकता के नाम पर वास्तविकता से आंखें चुराती रही, तो भविष्य में इस भ्रम की कीमत उसे भारी सामाजिक और व्यक्तिगत संकटों के रूप में चुकानी पड़ेगी। तब वापसी का कोई मार्ग भी शेष नहीं रहेगा।
(लेखिका समाजशास्त्री हैं)













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