अवधेश कुमार। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का भाजपानीत राजग और राजद की अगुआई वाले महागठबंधन के दल अपने-अपने नजरिये से विश्लेषण कर रहे हैं। राजद के नेता इस पर संदेह जता रहे हैं कि उसे सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत मिला, फिर सीटें इतनी कम क्यों आईं? कांग्रेस का भी कहना है कि उसे लोजपा (आर) से अधिक मत मिले, फिर भी उसकी सीटें उससे कम क्यों? इसकी आड़ लेकर महागठबंधन के दल चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। यह साफ है कि यदि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी विपक्षी दल पराजित होते हैं तो वे इसी तरह के तर्क देंगे और पूरी चुनाव प्रक्रिया, चुनाव आयोग, मतदान प्रतिशत, मतगणना आदि पर प्रश्न उठाएंगे। इसलिए इस पहलू से जुड़े सभी तथ्यों का विश्लेषण आवश्यक है।

यह सच है कि बिहार में राजद को सर्वाधिक 23 प्रतिशत वोट मिले जबकि सीटें केवल 25 मिलीं। वहीं भाजपा को 20.08 प्रतिशत मत में 89 सीटें तथा जदयू को 19.25 प्रतिशत मत में 85 सीटें मिलीं। राजग में चिराग पासवान की लोजपा (आर) को 4.97 प्रतिशत वोट में 19 सीटें मिल गईं, जबकि कांग्रेस 8.71 प्रतिशत मत पाकर भी केवल छह सीटें ही जीत पाई। प्रथमदृष्ट्या भारतीय चुनाव और अंकगणित को न समझने वाले इसे अन्याय करार देंगे और दे भी रहे हैं। ध्यान रखिए, 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 19.46 प्रतिशत और जदयू को 15.39 प्रतिशत मत मिले थे। तब भाजपा 74 और जदयू 43 सीटों पर सिमट गई थी। लोजपा (आर) 5.66 प्रतिशत मत पाकर भी केवल एक सीट जीत सकी थी।

बिहार में इस बार भाजपा और जदयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़े, जबकि राजद 143 सीटों पर। राजद 42 अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा, लिहाजा उसे मत भी ज्यादा मिले। ज्यादा मत प्रतिशत पाकर भी लोजपा (आर) पिछली बार इसलिए नहीं जीत सकी थी, क्योंकि वह अकेले चुनाव मैदान में थी। जबकि इस बार वह राजग का हिस्सा थी। लिहाजा कम मत प्रतिशत में ज्यादा सीटें जीतीं। कांग्रेस को 2020 में 9.48 प्रतिशत मत मिले थे, जो इस बार घट गए। यह इसलिए हुआ, क्योंकि कांग्रेस 2020 में 70 सीटों पर लड़ी थी, जबकि इस बार 61 सीटों पर। मत प्रतिशत के मामले में असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम और बसपा लगभग समान रहीं, लेकिन एआइएमआइएम ने पांच सीटें जीतीं, जबकि बसपा ने केवल एक। 2020 की तुलना में राजद के मतों में 0.11 प्रतिशत की कमी आई, जबकि भाजपा के मत 1.34 प्रतिशत और जदयू के मत में 3.86 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के उदाहरण से यह और स्पष्ट हो जाता है। तब राजद केवल 18.4 प्रतिशत मत पाकर 80 स्थानों पर विजयी रहा था, जबकि भाजपा 24.4 प्रतिशत मत पाकर भी 53 स्थानों पर सिमट गई थी। इस बार महागठबंधन में सबके मत प्रतिशत गिरे हैं। सीपीआइ (एमएल) का मत 3.16 से घटकर 2.84 प्रतिशत रह गया। जहां तक लोजपा (आर) की बात है तो उसने 2020 में 137 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इस कारण उसका मत प्रतिशत ज्यादा था। स्पष्ट है कि यह जरूरी नहीं कि किसी राजनीतिक पार्टी का मत प्रतिशत ज्यादा है तो उसे सीटें भी अधिक मिलेंगी। इस बार राजद को प्रति सीट औसतन 80 हजार 742 मत मिले, जबकि भाजपा को प्रति सीट औसत 99 हजार 813 वोट, जदयू को 95 हजार 714 और लोजपा को 89 हजार 191 मत मिले।

इसी से पता चलता है राजद को कितना कम वोट मिला। कुल लड़ी गई सीटों पर राजद का मत 39.6 प्रतिशत रहा, जबकि भाजपा का 48.3 प्रतिशत, जदयू का 46.3 प्रतिशत और लोजपा का 43.1 प्रतिशत। इस तरह भाजपा का अपनी लड़ी गई सीटों पर मत प्रतिशत राजद से 8.7 प्रतिशत, जदयू का 6.5 एवं लोजपा का 3.5 प्रतिशत ज्यादा रहा। यानी 9.3 प्रतिशत का अंतर रहा। लोजपा, हम और रालोमो के विरुद्ध 31 सीटों पर चुनाव लड़कर राजद ने केवल 11 सीटें जीतीं और 20 हार गया। हारी गईं सीटों पर राजद का औसत मत 37.8 प्रतिशत रहा, जबकि विजेता दलों का 46.6 प्रतिशत। यहां हार का औसत अंतर 8.9 प्रतिशत हुआ। इस प्रकार महागठबंधन राजग के मुकाबले प्रति सीट औसत मत हासिल करने में बहुत पीछे रहा। इससे साबित होता है कि मतदाताओं के बहुत बड़े वर्ग ने राजद, कांग्रेस सहित महागठबंधन को किसी सूरत में सत्ता में न आने देने का मन बना लिया था। राजग को मिला लगभग 47 प्रतिशत मत विपक्षी महागठबंधन से लगभग नौ प्रतिशत अधिक है।

इस बार रिकार्ड 66.91 प्रतिशत मतदान हुआ। आंकड़े बताते हैं कि बढ़ा हुआ मत पूरी तरह राजग के पक्ष में गया। इसका अर्थ हुआ कि बहुत बड़े वर्ग ने यह निश्चय कर मतदान किया कि उसे राजग को ही पूरी ताकत के साथ सत्ता में वापस लाना है। विपक्षी गठबंधन को यह विचार करना चाहिए कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में मत देने वाले उसके विरुद्ध क्यों गए? वस्तुत: चुनाव परिणाम का गणित वर्तमान एवं भविष्य की दृष्टि से राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के लिए डरावना है। वैसे भी गठबंधन में किसी एक घटक का वोट कम या ज्यादा है यह बहुमत से विजय वाली प्रणाली में मायने नहीं रखता। गठबंधन को कुल कितने वोट मिले यह मायने रखता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)